Wednesday, September 12, 2007

इस शहर में .........

इस शहर में कोई नहीं अपना नजर आत। ।


कोई परिंदा गीत यहाँ, क्यूँ नही गात।।




बस आसूँओं की बरसात हैं, तन्हाईयां मेरी,


कोई भी शख्स दिल को मेरे, क्यूँ नही भाता।




आया था मैं तेरे लिए, इस शहर में यार,


ढूंढा मैनें बहुत मगर, नजर तू नही आता।




जाऊँ कहाँ बता मैं, भटक रास्ता गया,


कोई रिश्ता है दिल का, या कोई नही नाता।


10 comments:

  1. बढ़िया है भाई!! रिस्ता=रिश्ता !

    ReplyDelete
  2. समीर जी,सुधार के लिए धन्यवाद।

    ReplyDelete
  3. सुंदर अभिव्यक्ति परमजीत जी !

    ReplyDelete
  4. कोई तुम्हें हंसायेगा इसका इंतजार कभी मत करना
    गढ लो बहाने कोई भी, मन करे तो अकेले में हंसना
    अपने मन से बाहर निकल कर देखो, वही है साथी एक
    उससे बात करो तो, बहेगा खुशी का अनवरत झरना

    दीपक भारतदीप

    ReplyDelete
  5. हिंदी दिवस पर मेरी तरफ़ से बधाई
    दीपक भारतदीप्

    ReplyDelete
  6. बहुत खूब भाई। इस दिल को छू लेने वाली रचना के लिए हार्दिक बधाई।

    ReplyDelete
  7. आपके प्रयास सराहनीय है और में अपने ब्लॉग पर आपका ब्लॉग लिंक कर दिया है।
    रवीन्द्र प्रभात

    ReplyDelete
  8. Paramjitji,jab bhee apke blog pe aati hun aanand aa jata hai!
    Meree aurbhee kahaniya mere blogme prakashit kee hain...zaroor padhiyega aur tippaniya deejiyega.
    Apne blog ko mai blogvani se jod nahee payee hun!

    ReplyDelete
  9. अच्छी अभिव्यक्ति है, क्रम बनाए रखें.

    ReplyDelete
  10. अगर अपने ब्लोग पर " कापी राइट सुरक्षित " लिखेगे तो आप उन ब्लोग लिखने वालो को आगाह करेगे जो केवल शोकिया या अज्ञानता से कापी कर रहें हैं ।

    ReplyDelete

आप द्वारा की गई टिप्पणीयां आप के ब्लोग पर पहुँचनें में मदद करती हैं और आप के द्वारा की गई टिप्पणी मेरा मार्गदर्शन करती है।अत: अपनी प्रतिक्रिया अवश्य टिप्पणी के रूप में दें।