Thursday, August 30, 2007

मुक्तक-माला-७

(आगरा की आग)


१.


अपनी लगाई आग में, जल रहे हैं लोग ।

आग का तो काम है जलना जलाना रोज ।

दूजे की भूल देख, अपनी इन्सानियत छोड़ी,

ना मालूम कहाँ खॊ गए हैं, आदमी के होश ।


२.


भीतर की आग, बाहर भी वही काम करेगी ।

आस-पास सब जगह, जहाँ पाँव धरेगी ।

पहले जरा उसका, इस्तमाल समझ ले इन्सां,

फिर आग यही, हरिक शै रोशन करेगी ।


३.
जलता है कोई शख्स अगर, यह आँख रोती है।

हर इक नयी कब्र में,नयी आग बोती है ।

सब जानते हैं कौन मुजरिम इस खता का है,

ना जाने फिर भी क्यूँ, इन्सानियत सोती है।

Sunday, August 26, 2007

नकारे नही विचारे



लोग भले जो कहे,लेकिन प्रेत होते है इस बात को वैज्ञानिक भी नकार नही पा रहे। उन्हें भी इन की मौजूदगी का एहसास हो रहा है।यह सच है कि भारतीय और अन्य धर्म-ग्रंथ इन के अस्तित्व की मौजूदगी को स्वीकारते हैं। लेकिन आज इन को नकार कर कुछ लोग यह जाहिर करना चाहते हैं कि इन के विषय में बाते करने वाले व चर्चा करने वालें जाहिल गँवार लोग हैं ।आज कई विज्ञानिक शरीर और आत्मा के सम्बंधों के बारे मॆ खोज करने में लगे हैं। b.b.c की इन खबरों को पढ़े -






एक पद मनमोहन के नाम

कृपया ढंढोरची का चिट्ठा किलकाएं ।

Friday, August 24, 2007

आया प्रभात



जाग मन अब नींद से, आया प्रभात ।

पक्षियॊं का शोर अब चहो ओर है ।
पर संभल, नयी नही यह भोर है ।
रोशनी ने छेड़ दी शहनाईयाँ,
छुप के बैठा हरिक मन में चोर है ।
खुद को कचौटा करती है यह बात ।
जाग मन अब नीदं से, आया प्रभात ।

भोर की जिज्ञासा, सभी के मन बसी ।
सदा दूसरों की लगामें, हमनें कसी ।
झाँक भीतर अपनें, कभी देखा नही,
आईनों में देख मुख, आती हँसी ।
चाहता कौन सुनना, दूसरों की बात ।
जाग मन अब नीदं से, आया प्रभात ।

चल रहा कब से धरा का बोझ बन ।
ठूँठ-सा, लिए नग्नता खड़ा है तन ।
जान कर भी तू बना, अंजान है,
कर रहे तेरा हरण, तेरा जतन ।
किसको देना चाह रहा, यहाँ मात ।
जाग मन अब नींद से, आया प्रभात ।

बोझ नित बढ़ता, जो तेरा पग बढ़ा ।
शब्द बंधन हो गया, जिसको गड़ा ।
पलट पड़ती कानों मे, शहनाईयाँ,
पर्वतों के सामनें, जो शब्द जड़ा ।
चल गया जो तीर फिर आए ना हाथ ।
जाग मन अब नीदं से, आया प्रभात ।

Wednesday, August 22, 2007

इस टिप्पणी को पढ़कर.........

"ये क्या है?....हें...हें..हें ..."
इस टिप्पणी को पढ़्कर पहले तो मै चौंका,मुझे लगा कि मै कार्टून के जरीए जो कहना चाहता था वह साफ-साफ कह नही पाया या फिर,समझा नही पाया । लेकिन जब श्रीश जी ने टिप्पणी की तो समझ आया कि ,नही भाई हमारी बात समझी गई है । फिर उस टिप्पणी को समझ कर मेरा दिल भी खुश हो गया ।क्योकि इस टिप्पणी के कारण मुझे एक पुराना किस्सा याद आ गया ,जो कभी अपने किसी बडे बुजुर्ग के मुँह से सुना था । आज आप को सुनाता हूँ ...अरे नही! आप के लिए लिखता हूँ ।

बात पुरानी है । दो आदमीयों मे किसी बात पर बहस हो रही थी ।उनको बहस करते देख वहाँ से गुजरने वाले काजी साहब भी रुक गए और उन की बहस सुनने लगे।

" मै कहता हूँ मौला किसी की परवाह नही करता ।" हमिद मिया ने बोला ।लेकिन रफी मिया उन से सहमत नही थे।
वे बोले-"मै कहता हूँ मौला सब की परवाह करता है ।"

"अरे मिया! आप गलती कर रहे हैं उस ने आज तक किसी की नही सुनी ।"

"नही मै नही मानता। वह तो सब की सुनता है ।"रफी मिया अपनी जिद पर अड़े थे।
"जब भी उस से कुछ माँगों वह देता है " रफी मिया बोले।

" वह कुछ नही देता ।"

" क्या तुमने कभी कुछ माँग कर देखा है?" रफी मिया ने पूछा ।
" हाँ मैने कई बार उस से माँगा है वह कुछ नही देता ।" हमिद मिया ने स्पष्ट किया।

अब तक काजी साहब इन की बहस सुन रहे थे । लेकिन अब उन से भी रहा नही गया और वे भी बहस के बीच में कूद पड़े । और लगे उन को समझानें-
" देखो! मोला के बारे में ऐसा मत बोलो कि वह कुछ नही देता..अगर सही तरीके से माँगोगे तो वह जरूर देगा ।"
"काजी साहब ! आप सही फरमा रहे हैं ।..लेकिन हमिद मिया की समझ मे नही आ रहा ।" रफी मिया को अब काजी साहब का साथ भी मिल गया था ।

काजी साहब को रफी का साथ देते देख हमिद मिया और गर्मी खा कर बोला-
" मैं आप लोगों को इस का सबूत दे सकता हूँ.....।"
"अच्छा! तो दो सबूत ।"काजी साहब ने सबूत माँगा ।
"अभी कल ही मैने मौला से सो रूपया माँगा । मैने कहा बच्चे की फीस जमा करानी है..अभी सो रुपये दे दो । दो दिन बाद लौटा दूँगा..मगर उसने नही दिए।" हमिद मिया खींजते हुए बोले।
हमिद मिया की बात सुन कर काजी साहब कुछ चौंकें और रफी की ओर देखते हुए पूछा-
" तुम किस मौला की बात करते हो ?"
"वही! जिस मौला ने सारी दुनिया बनाई है।"
अब काजी साहब ने हमिद मिया से पूछा-
"तुम भी उसी मौला की बात कर रहे हो ना?"
अब हमिद मिया बोले-
" मै तो मौला हलवाई की बात कर रहा था । "

लगता है आज यही सब कुछ हो रहा है । हम कहते कुछ हैं, लोग समझते कुछ हैं । या तो हमें समझाना नही आ रहा या फिर वह वही समझना चाहते है, जो उन्हे पसंद है । एक कविता देखे - " भ्रम"


हम ने उन से

डरते-डरते पूछा-

"क्या आप प्यार करती हैं?"

"हाँ।"

वह धीरे से बुदबुदाई।

"शादि करोगी?"

"हाँ,करूँगी।"

"कब?"

इस बात पर वह कुछ शर्माई..

कुछ घबराई...

और एक कार्ड हमारे हाथ मे थमाके बोली-

"ये लिजिए...भाई।"

Monday, August 20, 2007

ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है क्या ?

आप किसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहते है ?

क्या दूसरों के धार्मिक मामलों में दखल देने को ?
या किसी ईसाई द्वारा मोहम्मद साहब के कार्टून बनाएं जाने को ?
या किसी मुसलिम कलाकार द्वारा हिन्दू देवी-देवताओं के चित्र बनाने को ?
या कश्मीर की आजादी की बात करने वालों को ?
या विदेशों मे बैठें उन सिख संगठनों की माँग को जो एक अलग देश की माँग कर रहे हैं ?
या उन को जो कलाकार या लेखक होनें के नाते दूसरों की भावनाएं आहत करते हो ?
या उन को जो अपनी बात ना सुने जानें पर बंदूक उठा कर जोर जबरद्स्ती पर उतारू हो जाते हैं ?
या उस मीडिया को जो आज हमारे सामनें जो कुछ भी परोस रहा है,उस की आजादी को ?

यदि यही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है तो यह हमें कहाँ ले जाएगी ? जरा सोचिए ।

Wednesday, August 15, 2007

इसी लिए तिरंगा हमें प्यारा है

आज हम इस तिरंगे का सम्मान कैसे कर रहे हैं । हमारे राजनेता कैसा जहर फैला रहे हैं,यही इस रचना मे बताने की कोशिश की है ।आज हमारे धर्म के ठेकेदार हमे ऐसे ही बाँट रहे हैं ।



एक बस्ती में
जिसमें हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई
सभी रहते थे ।
हम सब आपस में हैं भाई-भाई
अक्सर कहते थे ।
लेकिन सभी के मन के भीतर
एक दूसरे को देख आग-सी जलती थी ।
एक को दूसरे की मौजूदगी
हमेशा ही खलती थी ।
जब भी कोई दिन त्यौहार आता था ।
हर कोई राग अपना-अपना गाता था ।
कहनें को वे सब भाई-भाई थे ।
लेकिन जरा-से मन मुटाव से
बन जाते कसाई थे ।

एक दिन उस बस्ती में

एक स्वतंत्रता सैनानी
रहनें को आया ।
उसके आने नें,
बस्ती का भाग्य चमकाया ।


एक उम्मीद जगी
शायद अब इस बस्ती को
नयी दिशा मिलेगी ।
प्रेम और एकता की
एक कलि खिलेगी ।
क्यूँकि सैनानी जान चुका था ।
इस बस्ती में रहने वालों के भीतर
क्या चलता रहता है ?
एक दूसरे के प्रति हमेशा
क्या खलता रहता है ।


वह जान चुका था
बस्ती वाले किसी भी त्यौहार पर
एक नही होते हैं ।
हमेशा इक-दूजे को नीचा दिखाने के लिए
राहों मे काँटें बोते हैं ।


इस लिए सैनानी ने विचारा
कोई ऐसा त्यौहार सोचा जाए
हरिक शख्स एक ही स्वर में गाए
जो दिन इन सभी को भाए ।
इस लिए उसे आजादी का दिन भाया ।
पन्द्राह अगस्त को जब तिरंगा लहराया ।
यह दिन हम बस्ती मॆ मनाएगें ।
तभी सब एक स्वर में गाएगें ।
सभी से यह दिन मनानें का आग्रह करूँगा ।
हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई की आपसी नफरत को
आपसी प्यार के रंग से भरूँगा ।


इस लिए उसनें सारी बस्ती को
निमंत्रण दे डाला ।
हिन्दू,मुस्लिम,सिख, ईसाई के मुखियों के गले में
सम्मान का हार डाला ।
इस तरह निश्चित समय पर पूरी बस्ती
एक मंच पर रम गई ।
खुशगवार मौसम में
एक महफिल जम गई ।


सभी औपचारिकता निभानें के बाद
सबसे पहले स्वतंत्रता सैनानी ने माइक संम्भाला
"यह तिरंगा क्यूँ है हमें प्यारा ?"
इस पर प्रकाश डाला ।


उस के बाद हिन्दू भाई ने माइक संभाला
और बड़े गर्व से बोला-
"इस तिरंगे का पहला रंग
हमारे धर्म की ओर करता इशारा है"
"इसी लिए तिरंगा हमें प्यारा है ।"


फिर ईसाई भाई ने माइक संम्भाला
और बड़े गर्व से बोला-
"इस तिरंगे का दूसरा रंग
हमारे धर्म की ओर करता इशारा है ।"
"इसी लिए तिरंगा हमें प्यारा है ।"


इस के बाद मुस्लिम भाई ने माइक सम्भाला
और बड़े गर्व से बोला-
"इस तिरंगे का तीसरा रंग
हमारे धर्म की ओर करता इशारा है ।"
"इसी लिए तिरंगा हमें प्यारा है ।"



यह सब देख-सुन कर
स्वतंत्रता सैनिक बड़ा परेशान हुआ ।
क्यूँकि अब एक सिख भाई का नाम ऐलान हुआ ।
स्वतंत्रता सैनिक समझ नही पा रहा था
कि सिख भाई अब क्या बोलेगा..
यह तो अब कुफ्र ही तोलेगा ।
क्यूँकि तिरंगे के तीनों रंग
हिन्दू,ईसाई,मुस्लिम ने बाँट लिए थे ।
इन्होनें जहर उगलने के
ये नये तरीके छाँट लिए थे ।



महफिल मे घिर गया बादल काला
जब उठकर सिख भाई ने माइक संम्भाला
और वह भी बड़े गर्व से बोला-
"सिख कौम शक्ति का नाम है
तिरंगे की खातिर इसी ने चुकाया
सब से बड़ा दाम है ।"
"अपने खून से इसे हमने पाला है ।
शक्ति का प्रतीक यह डंडा
हमने ही इस मे डाला है ।
जिसने तीनों रंगों को सम्भाला है ।"
"यह डंडा हमारा है"
"इसी लिए तिरंगा हमें प्यारा है ।"

स्वतंत्रता सैनानी सोच रहा था-
क्या इसी लिए आजादी हमनें पाई थी
शहीदों ने अपनी जान गवाई थी
हमनें कैसा बनाया देश से नाता है
धर्म के नाम पर इसको बाँटा है ।
आज कभी दिल्ली मे,कभी गुजरात में,
धर्म के नाम पर आग लगाते हैं ।
अमीर गरीब को दबाते हैं ।
अपनें देश का हर नेता
आज बनता जा रहा भाँड है
अपनी ही जनता को पैरों तले कुचलने वाला
एक बिगड़ेल साँड है ।
कुर्सी की खातिर
जाति, मजहबों मे बाँटता है ।
पागल कुत्ते-सा सभी को काटता है ।
आजादी के नाम पर
इक-दूजे के मुँह पर थूकता है ।
साफ सुथरी जगहों पर भी
यह अब मूतता है ।

लेकिन ना जानें क्यूँ
आज भी कभी-कभी जब भारत के गाँवों में,
या किसी गरीब के मुँह से
देश भक्ति के गीत कभी सुनता हूँ ।
फिर से उम्मीद के सपनें बुनता हूँ ।
शायद कभी ये आगे आएगा
जाति,मजहबों की दिवारे तोड़ पाएगा
अपने भाईयों के साथ मिलके गाएगा
ये भारत हमारा है
"इसी लिए तिरंगा हमें प्यारा है"
"इसी लिए तिरंगा हमें प्यारा है"

Thursday, August 9, 2007

कुत्ते का काटा

नोट-कृपया hototaa को hotaa पढे़ ।




कौन है वह ?


कौन है वह ?

वही जो कल था ।

क्यूँ आता है रोज-रोज?

पता नही ।

बस खाली जाता है ।

फिर भी मैं थक जाता हूँ ।

अपने को अक्सर भरमाता हूँ ।

सब ऐसे ही जीते हैं

सब रीते हैं

बस इक "मैं" से भरे हुए

जीवन-भर जीते हैं ।

साँसों को पीते हैं ।


इस सराय में

एक पथिक ठहरा है

इस सराय से नाता बहुत गहरा है

लेकिन इसका मालिक

कभी नजर नही आता है ।

लेकिन बहुत अजीब है ।

बिना चेताए बिना बताए

इस सराय से हमको

बाहर कर जाता है ।

कौन है वह ?

Monday, August 6, 2007

आज कौन-सा डै है ?


आज कौन-सा डे है ?

आज हम आपको बताएंगें ।


कभी फ्रैंड्स डे

कभी मदरस डे

विदेशी तरज पर मनाएंगें ।


आने वाले दिनों में

तीन सो पैंसट डे भी बदल जाएगें ।


फिर हर दिन

डोग डे

कैट डे

रैट डे

कह कर याद किए जाएंगें ।

झगड़नें वालों के नाम


अब की बार जो बादल बरसा

रपट गिरे हम आँगन में ।

अपनों से ही खफा हो गए

जैसे कोई बेगानों से ।

कोई इन्हें समझाए यारों

दोस्त मिलते हैं किस्मतवालों को ।

आपस की रंजिश में पड़कर

खोना ना इन दिवानों को ।

सब की गुस्ताखी की सजाएं

यारों हम को दे डालों ।

हँसते-हँसते सह लेगें हम

उठते हुए तूफानों को ।

रंजिश में डूबे यारों,

जरा हमारी बात सुनों--

चार दिनों तक सजनी है महफिल

लौटेंगे फिर, निज धामों को ।


Sunday, August 5, 2007

चलो ! अब तो जग जाएं

सो चुके बहुत हम,

चलो! अब तो जग जाएं ।


बोझिल नैयनों में सपनें कहाँ ठहरेंगें

तिमिर निशाचर ग्रसनें को

तैयार यहाँ।

खड़ा शुष्क मन एंकाकी

कोलाहल भीतर

सुन नहीं पाता अक्सर

स्वय़ं से बात जो कहता

अपनें ही उत्थान-पतन की चर्चाओं में

खो जाता है मकड़ी के जालों-सा उलझा

शंकाओं के सागर में, कहीं डूब ना जाए।


सो चुके बहुत हम,

चलों ! अब तो जग जाएं।



मधुमासों की गणना, किसने रखी है

मुदित मनोहर मदमाती महकी जब बगिया।

निजता का आभास बहुत,भरमा जाता है

विस्मृत हो स्वयं से, कही समा जाता है

जब जगता है लगता है,मैं बहक गया था

अपने भीतर उठती-गिरती,सागर लहरों में

आनंदित हो नर्तन करती जो मुसकाती

कुछ गाती थी फिर भी,मै जान ना पाया

दोहराने को अक्सर, उनको मन करता है ।

समझ ना पाया हो जो स्वर,वे कैसे गाएं ?



सो चुके बहुत हम,

चलो! अब तो जग जाएं।


क्षण-भर की वह जाग थी क्या,जान ना पाया

शुभ्र प्रकाश-वेलाएं अंनत दिनकर-सी लगती

भीतर खिचंता गया,भीतर के भीतर

जैसे सागर में गिरे कोइ नमक की ढेहली
समझ ना पाया वह,सच था या सपना

हुआ विलीन कैसे,अपने ही भीतर

सोच-सोच थक गया, कोई संगी समझाएं ।


सो चुके बहुत हम,

चलो! अब तो जग जाएं ।


संवेदनाऒं के बाण,अक्सर पीड़ा दे जाते

यहाँ सभी अपने हैं मैं सोच रहा था

नैयनों में काली बदली,कब घिर जाती

गरज,बरस शब्दों की,बंजर धरती पर

नदी,नालों,पोखर पर्वत घाटी के भीतर

हो विलीन जाती है पर मै खोज रहा था

ऐसे में क्यूँ ओस कणों से प्यास बुझाएं ।


सो चुके बहुत हम ,

चलो! अब तो जग जाएं ।

नीले पीले फूल(कहानी)

आज मैने एक कहानी एक चिट्ठाकार शंमा जी की पोस्ट पर पढी । बहुत अच्छी लगी । शायद आप भी पसंद करे यही सोच कर उस का लिकं यहाँ दे रहा हूँ कृपया नीले पीळे फूळ पर किल्काएं - नीले पीले फूल

Friday, August 3, 2007

हिन्दुस्तान अमरीका बन जाए तो कैसा होगा..



हमारे लिए इन पाँच बातों को बताना सरल नही है क्यूँकि हमने अमरीका देखा तो है लेकिन सिर्फ नक्शों में । लेकिन जब हमने देखा कि इस में हिस्सा लेने हेतू बड़े-बड़े महारथीयों ने कमरकस ली है । वे सभी अपनें-अपनें अस्त्र-शस्त्र ले कर युध क्षेत्र की ओर कूच कर गए हैं और कुछ कूच करने की तैयारी में लगें हैं तो हमें भी जोश आ गया । हमनें भी अपनें खच्चर को तैयार किया और हाथ में अनुगूँज का झंडा ले युध में आप का साथ देनें आ पहुँचे हैं । हम अच्छी तरह जानते हैं कि हम ही पहले नम्बर पर होगें अगर अनुगूँज पीछे से गिनना शुरू करेगी/करेगा । अब पाँच बातें पढ़ कर हमें धन्य करें ।


१. हिन्दुस्तान अमरीका बन जाए तो यहाँ के नेताओं की मौज हो जाएगी । क्यूँकि अपनें नेता अपनी आदत तो बदलने से रहे । पहले चारा खा जाते थे फिर मसाईल और बंम और भी जो कुछ उपलब्ध होगा ,खा जाएगें और डकार भी नही लेगें । हर क्षेत्र में अपना यह हुनर अजमानें में लगे रहेगें । वैसे भी लालू जी से दाँव-पेंच सीखने विदेशी आते ही रहते हैं । फिर बुश के पद का इस्तमाल बाबा जी की आत्मा से साक्षात्कार कराने मे कोई विरोध नही कर सकेगा । वह अपने प्रभावशाली कुतर्कों से अपनी हर कारगुजारी को आसानी से सही साबित कर सकेगें ।


२. हिन्दुस्तान के अमरीका बनने पर विकसित देशो में आ जाएगें । लोगों को फैमिली बढनें की चिन्ता नही रहेगी । इस का भरपूर फायदा उठाया जाएगा । हम चीन से उस का जनसंख्या के आधार पर प्रथम रहने का गौरव उस से छीन लेगें । हमारे देश की जनसंख्या बहुत जल्दी ही दुगनी हो जाएगी । क्यूँकि हम मानते हैं कि बच्चें भगवान की देन होते हैं । हमारी सोच तो बदलने से रही ।


३. हमारे यहाँ जो थोडे बहुत अपने बड़े़-बूढों की इज्जत घर मे होती है । फिर उन के लिए बुजुर्ग-आश्रमों की जरूरत बढ जाएगी । क्यूँकि वैसे ही बच्चे अपने माँ-बाप की इज्जत कम ही करते हैं ।फिर शिल्पा के पद चिन्हों पर, हमारे दॆश की युवा पीड़ी को चलनें में भी कोई अड़चन नही आएगी । ऐसे दृश्य हर जगह देखने को मिल जाएगें । निशब्द और चीनी कम जैसी फिल्मों को हमारे यहाँ के बुजुर्ग भी अपने जीवन में उतारनें का भरसक प्रयत्न करेगें ।


४. हमारे नेता जोर-शोर से पहले समस्याओं को खड़ा करेगें और फिर अपना लोहा मनवानें के लिए पड़ोसी देशों मे व आर्थिक रूप से कमजोर देशों पर, हमले कर के अपनी धाक जमाने में कामयाब होनें लगेगें और हम बताएगें कि कैसे पहले तमिलनाडू में लिट्टे को ट्रेनिंग दे कर समस्या पैदा की जाती है और फिर शांती सैनाएं भेज कर समस्या को समाधान करनें की वाह वाही दुनिया में लूटी जाती है , भले ही इस काम में हमारे जवान बेवजह मारे जाएं । वैसे हमारे कुछ पुराने नेताओं को इस काम में महारत तो हासिल पहले ही थी । वह इसे अपने देश में भी अपनी कुर्सी बचाने के लिए समय-समय पर इस्तमाल करते रहे हैं । लेकिन अमरीका बनने पर इस का और अधिक विस्तार हो सकेगा ।


५. महिलाओ को पूरी आजादी मिल सकेगी । तलाक आसानी से मिल सकेगें और अन्त मे ..........हमारे बिहार मे क्रांती आ जाएगी । कैसे ?....यह लालू जी और बिहार के सांसद बताएगें । हमारे देश में होने वाले सभी चमत्कारों पर शोध के विधार्थी अनुसंधान करेगें । स्वामी जी के सभी आसन पेटेंन्ट किए जा सकेगें ।
इस से ज्यादा हम कुछ नही बता सकते । क्यूँकि भारत अतुलनीय है ।

Thursday, August 2, 2007

मोहल्ले की हलचल-२

वाह ! री माँ ! ये हैं तेरे अपने ?

आज अचानक शोर सुन कर मै घर से बाहर निकला । तो देखा पड़ोस के दरवाजे पर खड़ा एक शख्स हमारे पड़ोस में रहने वाले गुप्ता जी से झगड़ रहा था । उस लड़ने वाले शख्स को हमने पहले कभी नही देखा था । हम अभी सोच ही रहे थे कि वह शख्स हमें देख हमारे पास आ गया । पहले तो सोचा कि अन्दर हो लें । क्योकि पड़ोस का मामला था ,अगर गुप्ता जी देखेगें तो हो सकता है हम से नाराज ही ना हो जाए । लेकिन फिर सोचा इन्सानियत के नाते बात सुनने मे हमारा क्या जाएगा । जब उसने देखा कि हम उस की बात सुनेगे तो वह शुरू हो गया-
" जी देखिए गुप्ता जी, ने खुद ही हमें अभी फोन कर के मेरी मिसेज को धमकी दी है कि हम इधर आए तो ये टाँगे तोड़ देगें । अब हम पूछ रहे हैं कि क्यों बुलाया है तो बात करने को भी राजी नही हो रहे ।"
हम उन्हे जानते तो थे नही सो पहले उन की बात अनसुनी कर के पूछा "आप कहाँ रहते हैं? क्या इन के आफिस मे काम करते हैं?"
वह आश्चार्य से हमे दॆखते हुए बोले-" जी आप हमें नही जानते ! हम गुप्ता जी के जीजा जी हैं ।"
फिर शायद उनको खुद ही ध्यान आ गया । वे स्वयं ही बोले-"आप को कैसे पता होगा आप लोग तो कुछ ही समय पहले यहाँ आए हैं।"
फिर उन्होने अपनी कहानी सुनाई । तब जा कर हमे पता लगा कि ये गुप्ता जी के जीजा जी हैं ।
अब जरा आप से पड़ोसीयों का थोड़ा परिचय कराना चाहूँगा । गुप्ता जी अपनी माँ के साथ अपनी पत्नी और दो बच्चों सहित रह रहे हैं। उस मकान की मालकिन भी उन की माँ है । लेकिन गुप्ता जी कभी अपनी माँ पर एक फूटी कोड़ी भी खर्च नही करते । उन्होने अपनी माँ को एक अलग -थलग कमरा दे रखा है । जिस में ना लाइट है ना ही उन्हें घर के नल से पानी भरने की इजाजत है । उन की माँ अपना खाना खुद ही बनाती है और खुद ही कपडे़ धोती है।
उन की माँ का सारा खर्च यही शख्स जो उन के दामाद हैं,उठाता है । लेकिन गुप्ता जी ने इन के व इनकी पत्नी यानी कि गुप्ता जी की बहन की, घर पर आने की रोक लगा रखी है । उन्होने ही बताया कि महीने का खर्चा देनें इन की पत्नी ही आती है । लेकिन वह घर पर नही आ सकती इस लिए वह अपनी माँ को फॊन कर पास के मंदिर मे बुला लेती है । फोन भी वह पड़ोस के किसी घर में करती है । उस पड़ोसी की जानकारी उन्होने नही दी । आज उन्हें फोन क्यों किया गया इसका भी उन्होने ही खुलासा किया कि आज सुबह माता जी ने दुखी हो कर पुलिस को फोन कर दिया था । जिस कारण से ये गुप्ता जी उन्हें धमका रहे हैं । क्यूँकि गुप्ता जी समझते हैं कि उन्होने यह कदम अपनी बेटी और दामाद के कहने पर ही उठाया है ।
अभी हम बात कर ही रहे थे कि उन की पत्नी यानी गुप्ता जी की बहन भी पहुँच गई । फिर जो होना था वही हुआ । वह सीधा माँ के कमरे में घुस गई । कुछ देर बाद ही झगड़ा फिर शुरू हो गया । सभी अडोस-पड़ोस के लोग देख सुन रहे थे लेकिन कोई बीच मे पड़्ने की हिम्मत नही जुटा पा रहा था । हम चाह कर भी कुछ नःई कर सकते थे । क्यूँकि हमे उन के बीच जानें कि आज्ञा नही थी । अपने बड़ो की बात टालने की हम मे भी हिम्मत नही है । क्यूँकि उन हमारे बड़ो ने एक बार इन के बीच की समस्या का समधान करने का सुझाव गुप्ता जी की माँ को दिया था । लेकिन इतना सब कुछ होते हुए भी वह माँ बेटे और पोते-पोती का मोह छोड़्ने को तैयार नही है । वह कहती है कि कुछ भी हो पर हैं तो मेरे अपने । जब मरूँगी तो यही तो मुझे आग देगें । हम भी कुछ नही बोल पाते । बुजर्गों या यूँ कहे बूढों को समझाना बहुत मुश्किल होता है । हम अपने मन मे सोच रहे थे कि-
"वाह! री माँ ये तेरे अपने ।"

Wednesday, August 1, 2007

अगर मर्द औरत हो जाए

कृपया ढंढोरची का चिट्ठा पर किल्काएं ।

मोहल्ले की हलचल-१

खंडित-विचार



आज जो बीज
तुमने बोया है
उस का फल
उस बीज के

वृक्ष बनने पर
तब नजर आएगा
जब उस पर फल आएगा ।

अभी से उस के
कटु या मधुर होनें का
अनुमान लगाना
मात्र ऐसा ही है
जैसे कल्पनाऒं के घोड़े दोड़ाना
एक बेसुरा गीत गाना ।


जिसे तुमनें

मीठा समझ बोया था

जरूरी नही

वह मीठा ही निकले

समय का फैर

उस स्वाद को

बदल सकता है

तुम्हारे सपनों को

मसल सकता है


सब का पथ
एक-सा नही होता
हरिक बच्चा
भूख से नही रोता
हरिक के अपने-अपने कारण हैं
हरिक के अपने-अपने निवारण हैं



मेरे करने से अगर कुछ होता
यहाँ कोई नही रोता
कौन चाहता है
नही सुखी होना
फूलों की जगह
काँटों को बोना
मगर कहीं कुछ
अनबूझा भी है
उस के बिना
किसी को कब कुछ
सूझा भी है




जब तक समर है भीतर
तुम सदा हारोंगे
अपने आप को कभी
दूजों को मारोगे