होली खेलें कैसे नंदलाल ,राधा रूठी रे।
पहले बनूँगी मैं नंदलाल, राधा रूठी रे।
नाची बहुत बंसी पे तेरी,मेरे कान्हा प्यारे।
अब चाहूँ बंसी मैं बजाऊं,नाचें कान्हा प्यारे।
तब चाहे मोहे रंग दे जितना,जैसे कहे मैं नाचूँ,
सदियों से नाच-नाच कर थक गए पैर हमारे।
होली खेले कैसे नंदलाल ,राधा रूठी रे।
पहले बनूँगी मैं नंदलाल, राधा रूठी रे।
मैं ग्वाला बन गाएं चराऊँ,पानी तुम भर लाना रे।
जमनामें नहाओ जब तुम,निवस्त्र तुम्हें सताऊँ रे।
लोक -लाज तज,सुन बंसी मेरी नंगे पाँवों आ जाना,
कैसा लगता कान्हा तब तुम्हे,हम को जरा बताओ रे।
होली खेले कैसे नंदलाल ,राधा रूठी रे।
पहले बनूँगी मैं नंदलाल, राधा रूठी रे।
राधा की इस माँग के कारन, कान्हा चुप-छुप जाए रे।
बड़े-बूढें राधा को बोलॆं ,उलटी गंगा ना, बहाओ रे।
पर राधा नही रूकनें वाली,ह्ठ कब किसनें छोड़ा है,
परमजीत अब कोई आके इन सब को समझाओ रे।
होली खेले कैसे नंदलाल ,राधा रूठी रे।
पहले बनूँगी मैं नंदलाल, राधा रूठी रे।