हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
वह हमेशा मुझ से पूछती है - तुम छोड़ क्यों नही देते? उस के इस सवाल का उत्तर पता नही क्यूँ मेरे भीतर से नही आता। ऐसा लगता है यदि कुछ बोला तो भीतर से कहीं टूट जाऊँगा। इस लिए सदा मौन रह जाता हूँ। अपने को भीतर से खाली पाता हूँ।
मैं बाहर आकर खुले आकाश को ताकता हूँ। जैसे वहाँ से कोई जवाब मिल जाए। लेकिन ये क्या? आकाश में तो पंछी उड़ते नजर आते हैं। मुझे लगता है कि ये पंछी मेरे भीतर से निकल कर वहाँ पहुँचे होगें। मैं मन में उन्हें वापिस बुलानें की कल्पना करनें लगता हूँ। लेकिन वे पलट कर नहीं देखते। उड़ते जाते हैं दूर बहुत दूर उड़ते हुए आँखों से ओझल हो जाते हैं। मैं खाली आकाश में तब भी उन्हें खोजता हूँ। तुम फिर वहीं पूछती हो - तुम छोड़ क्यों नही देते ? लेकिन मैं उसे कैसे समझाऊं छोड़ना मेरे बस में नही है। यदि छोड़ना मेरे बस मे होता तो भी क्या मै छोड़ना चाहता? मै फिर अपने आप से पूछता हूँ। लेकिन जवाब अब भी नही मिलता। मैं फिर आकाश कि ओर ताकता हूँ अब आकाश में सिर्फ तारे चमक रहें हैं। चाँद बादलों के पीछे से झाँकता हुआ मुझे मुँह चिड़ा रहा है ऐसा मुझे लगता है। उस की चाँदनी कभी घट जाती है कभी बड़ जाती है। जानता हूँ यह सब बादलों के कारण हो रहा है। लेकिन मुझे महसूस होता है कि बादल चाँद को सता रहा है। तुम हमेशा कि तरह फिर पूछती हो- तुम छोड़ क्यों नही देते ? मैं फिर मौन हो जाता हूँ। आँखें बन्द कर अपनें भीतर से पूछता हूँ। लेकिन यहाँ सवाल सवाल बना अब भी मेरे सामनें खड़ा रहता है। मै धीरे-धीरे अपनें भीतर के अंधकार में डूबनें लगता हूँ। वह सवाल भी मेरे साथ डूबनें लगता है। डूबते समय मैं सोच रहा हूँ। क्या सुबह होनें पर यह सवाल फिर वह पूछेगी? तुम छोड़ क्यों नही देते? लेकिन मैं अब वहाँ नही हूँ। चारों ओर मौन है अंधेरा है चाँद को बादल अब भी सता रहा है। ("बिखरे हुए फूल" से)