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Sunday, May 20, 2012

मरी हुई उम्मीदे



ये कैसे लोग दिख रहे हैं वतन में मेरे
नश्तर -से चुभोते हैं ये बदन पे मेरे।
किससे करे शिकायते थानेदार हैं वो-
कोहराम -सा मचा है अमन में मेरे।

कोई सुनता नही किसी की बात यहाँ
देश भक्त बन बैठे है घात लगाये यहाँ
अब कौन बचायेगा इन जयचंदों से..
उम्मीद दम तोड़ चुकी लगता है यहाँ।

जनता भेड़ चाल चलने की आदी है
गजब की बढ रही यहाँ आबादी है
कत्ल करने वाले यहाँ पद पाते हैं
इसी राज मे छुपी देश की बर्बादी है।



Tuesday, May 1, 2012

तुम्हारा हाल क्या पूछे....



तुम्हारा हाल क्या पूछे अपना हाल तुम-सा है....
हरिक दोस्त भी अपना खुद में आज गुम-सा है।

मोहब्बत मे वफा वादे कसमें कौन समझा है ।
गुल के साथ खारों को यहाँ पर कौन समझा है।
बहारों की तमन्नायें यहाँ हर दिल में खिलती है,
मौसम एक-सा रहता नही ये कौन समझा है।

उन्हें उम्मीद है , दिन आज नही कल बदलेगें ।
गिरे हैं आज तो क्या है हम कल तो संभलेंगें।
रास्तों  मे नदी नालों पहाड़ों   का बसेरा   है,
आयेगा जब वक्त अपना रास्ते भी तो सँवरेगें।

रही किस्मत हमारी तो खुदा मेहरबां होगा।
दोस्तों में  अपना भी कोई तो कद्र-दां होगा ।
मोहब्बत को समझेगा वफा़यें मेरी समझेगा,
जहां में  कहीं  कोई अगर फटेहाल मुझ -सा है।

तुम्हारा हाल क्या पूछे अपना हाल तुम-सा है....
हरिक दोस्त भी अपना खुद में आज गुम-सा है।