Tuesday, June 26, 2012

पिता की याद में



वो मर के भी मेरी,आँखों में बस गये।
आँख मूँदनें से पहले ,  देख हँस गये।

ताउम्र इस अदाको समझना हुआ मुश्किल,
जाने से पहले मुझको वो कैसे कस गये।

सोचता रहता हूँ ..हँसी का है राज क्या।
लौटकर आयेगें क्या ऐसा कुछ कहा।

आज भी राह तक रहा हूँ यार, तुम्हारी ,
क्यूँ छॊड़ तन्हा ,जहां से तू चला गया।

गुरू दोस्त सारथी मेरा आसरा थे तुम।
बीच रास्ते पर छॊड़ क्यों हुए तुम गुम।

बहार आने को थी कुछ ठहर तो जाते,
क्या कमी थी प्रेम में जो ऐसे डस गये।

वो मर के भी मेरी,आँखों में बस गये।
आँख मूँदनें से पहले ,  देख हँस गये।

9 comments:

  1. बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति

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  2. पिता हों न हों उनका साया हमेशा रहता है किसी न किसी रूप में ... भावनात्मक रचना ...

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  3. पिता के ना होने पर भी उनका आशीर्वाद साथ रहता है. सुंदर श्रधांजलि.

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  4. साथ सदा संवाद बना है, आँखों में रह रह आता है..

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  5. .....भावनात्मक रचना परमजीत जी

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  6. आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)

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  7. कभी कभी लगता है कि शायद वे मर कर ही अधिक जीवन्त हो गए, कम से कम मेरे लिए।
    घुघूती बासूती

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  8. भावुक कर देने वाली सुंदर कृति

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