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Friday, August 16, 2013

फिर तेरी यादें आई.....


फिर तेरी यादें आई ये मन तरसा है।
 इस भरी दोपहरी में सावन बरसा है।

दिन का चैंन गया रातों की नींद गई,
मोहब्बत लगती हमको अब कर्जा है।

अब दिल के बदले दिल नही मिलता।
किसी भी मौसम में गुल नही खिलता।

वो जो कहते थे हजारॊ यहाँ अपने हैं,
रोनें को एक भी कंधा  नही मिलता।



5 comments:

  1. ये इतना आत्मकेंद्रित दौर है, कि रोने के लिए कोई कन्धा मिलना नामुमकिन सा ही है...

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  2. बहुत खूब सुंदर रचना,,,

    स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,
    RECENT POST: आज़ादी की वर्षगांठ.

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  3. दिल से निकले भीगे से जज़्बात....
    बहुत सुन्दर!!

    अनु

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  4. सब अपने मद में मदराये,
    अपना अपना बोझ उठाये।

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  5. Ab dil ke badale dil nahee milta aur
    rone ke liye koi kandha nahee milta.

    Anubhav ke bol. Aisee hee hoti ja rahee hai ye duniya.

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