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Wednesday, August 27, 2014

जो होना है... वह होता है

कुछ बात नही सोची हमनें
पर शाम को खूब निहारेगें
पागल मन खुद से खेलता है
लम्बी लम्बी तलवारों से।
सजता है तन खुश मन होता
रातों को  तन्हा रोता है
कोई तो देखे, अभिलाषा
अक्सर मन की फिर खोता है।
कहते हैं सपनें कभी-कभी
सच भी हो जाया करते हैं
जीवन तो वैसे नीरस है
पर सतरंगी रंग भरते हैं।
तब चलो कहीं हम भी जाकर
 इक नीड़ बना बैठें अपना
कोई तो द्वारे आएगा
निर्मित कर लें ऐसा सपना।
लेकिन सपनों का बंधन तुम
अन्तरमन से जोड़ों ना तुम
टूटे सपनें दुख देते हैं
उनके पीछे  दोड़ो ना तुम ।
बस! देखना है, देखों भालो
जो होना है... वह होता है ।
अनुकूल हुआ खुश ये मनवा,
विपरीत हुआ क्यों रोता है।
जो भेद प्राकृति का समझा
उसने जीना सब जान लिआ।
सपना क्या सच है जीवन में
झूठा-सच्चा सब मान लिआ।