हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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Tuesday, March 27, 2007
स्लाइड शो बनाए अपने ब्लोगर को सजाए
Sunday, March 25, 2007
एक रह्स्यमय सत्य घटना
वहाँ पहुँच कर बड़े लोग तो औपचारिकता निभानें मे मशगूल हो गए और मै तथा मेरा बड़ा भाई, अपने हमउमर दोस्तों की तलाश में लग गए । वहाँ दो ग्रुप बन चुके थे सो हम बड़े ग्रुप मे शामिल हो गए ।यहाँ जिस घटना के बारे मे मै बता रहा हूँ, वह शाम के तीन बजे के आस-पास घटी थी ।
हम सभी घर से बाहर आ गए थे। भीतर ज्यादा जगह नही थी । पता नही अचानक क्या हुआ कि सभी सडक पर एक साथ दोड़ने लगे । उन की देखा-देखी मै भी उन के साथ दोड़ने लगा । शायद हम घर से अभी ज्यादा दूर नही गए थे कि अचानक पता नही क्या हुआ कि मै सड़्क पर गिर पडा । जब कि मुझे अच्छी तरह याद है कि ना तो मेरा पैर किसी से टकराया था और ना ही मै ज्यादा तेज ही दोड रहा था। कुछ देर बाद जब मैं खड़ा हुआ तो मुझे ऎसा लगने लगा जैसे ६-७ बज चुके हो । क्यूँकि उस समय मूझे ऎसा ही दिखाई दे रहा था । मेरी आँखों के सामनें ही मेरे बाकि साथी मुझ से काफि आगे निकल चुके थे। मैने उठ कर फिर दोड़ने की कोशिश की,मगर मुझे ऎसा महसूस हुआ जैसे मुझे कोई आदृश्य शक्ति कदम उठाने ही नही दे रही । मेरी मष्तिक ने काम करना ही बन्द कर दिया हो ,मुझे कुछ सूझ नही रहा था कि क्या करूँ ।अपने साथियों को जोर से आवाज देकर रोकने के लिए बुलाने की कोशिश की पर मेरी आवाज इतनी धीमी निकली के जैसे कोई दबी जुबान से बात कर रहा हो। मै परेशानी मे इधर-उधर ताकने लगा । घर वापसी का रास्ता मेरे दिमाग पर बहुत जोर देने पर भी मुझे याद नही आ रहा था । तभी मेरी नजर अपने से कुछ दूरी पर खड़े एक जवान साधू पर पड़ी । जिसने गेरूएं वस्त्र पहने हुए थे। कंधे तक उस के बाल लट्क रहे थे, जो मेरी तरफ एक टकटकी बाँध कर देखे जा रहा था । उस की आँखों से आँखों के टकराते ही मुझे ऎसा मह्सूस हुआ जैसे उस की आँखों से होकर कोई आदृश शक्ति निकल कर मुझे उस की ओर खीच रही हो । (उस की आँखो की चमक को याद कर आज भी मेरे मन मे सिरहन-सी दोड़ जाती है)मैने बहुत मुश्किल से उस की आँखों से अपनी नजर हटाई । अब तक मै समझ चुका था कि मै अपना शादि वाला घर नही ढूढं पाऊंगा । मै रोने लगा । पता नही कितनी देर तक रोता रहा था । मेरा ध्यान तब टूटा जब एक वृद महिला ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझ से मेरे रोनें का कारण पूछा । मैनें उसे अपनी पूरी कहानी सुनाई । वह समझ गई कि यह जिस के घर आया था उस घर का पता इसे मालूम नही ।वह मुझे साथ लेकर अपने घर की ओर चल दी ।
घर पहुँच कर उसने अपने लड़्के को बुला कर काफि देर तक बातें करती रही और अन्त मे कहा-"इसे थानें पहुँचा आओ । इस की किस्मत अच्छी थी जो मै वक्त पर पहुँच गई । वर्ना आज एक मुश्टंडा साधू इसे उठा ले जाता ।" मै उस समय छोटा तो था पर थोडा बहुत तो समझता ही था और मै उस के साथ भी इसी लिए चल पड़ा था क्यूँकि मुझे उस साधू से भय लग रहा था । वह महिला तो शायद अपने किसी काम से उस ओर निकल आई थी । या यूँ कहूँ मेरा भाग्य उस समय मुझ पर मेहरबान हो गया था ।
अपनी माँ के कहने पर वह मुझे थानें ले कर चल पड़ा । जब हम थानें के गेट पर पहुँचे तो अचानक मेरा हाथ उस के हाथ से छूट गया । वह लड़्का जो मुझे थानें ले कर आया था कुछ आगे निकल गया । तभी मेरी नजर फिर उसी साधू पर पड़ी,जिस के भय के कारण मै यहाँ तक पहुँचा था । उस की चमकती आँखों से आँखें मिलते ही, फिर मुझे उस की ओर एक खिचाव-सा महसूस होनें लगा । अभी मेरा पहला कदम ही उस की ओर उठा था (जबकि मै अपने को रोकने की भरसक कोशिश कर रहा था )कि वह लड़्का लौट आया और फिर मुझे झिड़्कते हुए ,हाथ पकड़ कर लगभग खीचंते हुए ,अन्दर थानें मै ले गया । उस ने सारी बात थाने मे बैठे पुलिस वाले को बताई और मुझे वही छोड़ कर लौट गया ।
देर रात गए जब मेरे पिता थानें में मेरे गुम होने की रिपोर्ट लिखाने थानें पहुँचे तो उन्हें मेरे बारे में जानकारी मिली। तब जाकर उन्होने मुझे मेरे पिता को सौपा और मेरी भी जान मे जान वापिस आई।
आज इतने बरस बीतने के बाद भी मै इस घटना को भूल नही पाया और मेरा इस घट्ना को आप को सुनानें का भी एक कारण है । क्यूँकि मै नही चाहता कि कभी किसी बच्चे के साथ ऎसी दुर्घट्ना हो जो मेरे साथ घटी । आप को सावधान करना भी चाहूँगा कि आप कभी भी किसी फकीर, साधू या किसी माँगने वाले की आँखों मे आँखे डाल कर बात न करें । हो सकता है वह आप को सम्मोहित कर रहा हो और आपको किसी प्रकार का नुकसान पहुँचाए । आप अपने घर के छोटॆ बच्चों को भी इन तथाकथित साधूऒं से सावधान रहने की हिदायत जरूर दे ।
Wednesday, March 21, 2007
कवितांजली
जब भरे हुए जामों को, कोई होठों से लगाए,
तुम ही बता दो यार कोई कैसे मुस्कराएं।
दिल की अन्धेरी शब में घुटकर मरे तमन्ना,
तब किसकी आरजू को हँस कर गले लगाएं।
दुनियामे जबहम आए थे दुनियाकी ठोकरों मे,
है कौन जो झुक के हमको, थाम अब उठाए।
हमें भेजनें वाले थी क्या खता हमारी ,
पत्थरों के इस जहाँ में,किसे दर्द ये बताएं ।
मुक्तक
जलेगी शंमा जो परवाने भी आएंगें
आपके लिए साकि हम भी संग गुनगुनाएगें
रात कितनी है बाकि किसी को खबर नही-
सहर होने तलक शायद ही ठहर पाएंगें ।
जिस राह पर चले हम, उसपर वीरांनियाँ हैं,
यहाँ हरिक की, अपनी-अपनी कहानियाँ हैं।
हसरत थी इस दिलको, कोइ रह्बर मिलेगा-
इसी ख्वाइशमें यहाँ गई कितनी जवानियाँ हैं
अकेला
हर चीज़ बिखर जाती है यहाँ
इस वक्त की जालिम ठोकर से
तुम झरना अपनें को मानों
पर रहते हो बस पोखर से।
जो एक जगह पर खड़ा-खड़ा
मोसम की मार से सूख गया
क्षण-भर मे खोता है खुद को
जब साँस का डोरा टूट गया।
फिर क्यूँ ना तज नफरत को इस
दिल मे ये प्यार सजाते नही
इन सपनों को नयनों मे भर
इक प्यार की दुनिया बसाते नही।
चुपचाप से क्यूँ यूँ बैठे हो
संग मेरे तुम क्यों गाते नही
ये वक्त गुजर जाए ना कहीं
बीते पल लौट के आते नही ।
मै भी ना यहाँ कल होऊंगा
तुम भी ना यहाँ रह पाऒगे
मिलकर बैठे तो झूम लेगें
व्यथित अकेले गाऒगे।
नया सवेरा
अनायास होता है सब कुछ
हम तकते रह जाते हैं
कोई अन्धेरा कहीं से निकल
हम पर लिपट जाता है
स्वयं से जन्मा ये अन्धकार
अब स्वयं को ही डराता है
मेरे मन
तुम अब अन्धेरे की बात मत करना
ये शनै-शनै मिट जाएगा
क्यूँकि कोई रात
कितनी भी काली या भयानक हो
रात के बाद
नया सवेरा आएगा ।
बीते साल
एक-एक कर पत्ते टूटेगें।
जानते हुए भी क्या
उस वृक्ष के सम्बंध
हमसे छूटेगे?
नही...नही
मुझे भूलने दो
किसी भी प्रश्न का उत्तर
मैं ना दे पाऊंगा ।
एक प्रश्न बन कर आया था
प्रश्न बना चला जाऊंगा ।
यदि तुम्हें उत्तर मिल जाए कभी
मुझे भी बताना।
मेरे बीते साल
मुझे मिल जाएगें
जिन्हें मै चाहता था
सजाना ।
जीवन-चक्र
सुबह
आँखें खोली
किसी ने एक वृत
मेरे आगमन से पूर्व बनाया
और मुझ से कहा-
इस वृत की रेखा पर दोडों
और इस का अन्त खोजों ।
अब मैं इस वृत की रेखा पर
और मोसम
मुझ पर दोड़ता है ।