Tuesday, March 27, 2007

स्लाइड शो बनाए अपने ब्लोगर को सजाए

वैसे तो आप सभी स्लाइड शो के बारे में जानते ही होगें । लेकिन फिर भी आप चाहे तो आप पेंट पर अपनी पेंटिग बना कर (या फोटो लगा कर) स्लाइड शॊ बना कर सब को अपनी पेंटिग दिखा सकते हैं ।स्लाइड को छोटा करने के लिए एच टी एम एल कोड मे लम्बाई-चोड़ाई को आपनी सुविधा अनुसार परिवर्तन कर छोटा य़ा बड़ा कर सकते हैं ।सुविधा के लिए यहाँ पर क्लिक करें ।साइड पर बने स्लाइड शॊ को देखें। कहिए कैसा लगा ?

Sunday, March 25, 2007

एक रह्स्यमय सत्य घटना

कुछ दिन पहले ही मुझे एहसास हुआ कि मैनें अपनी रूचियों के संबंध में जो बातें लिखी थी। उस से संबंधित कोई भी बात आपके साथ नही बाँटी । इसी लिए एक घट्ना यहाँ लिख रहा हूँ। यकीन मानिए यह बिल्कुल सत्य घट्ना है। इस घटना का संम्बंध मुझ से ही जुड़ा है। बात बहुत बरस पुरानी है । उस समय मेरी उमर पाँच-छे साल के लगभग रही होगी । हम लोग नेता जी नगर मे रहते थे। उन दिनों शादियों का सीजन चल रहा था । हमारे किसी खास अपने रिश्तेदार के घर शादि थी । हमे भी उन का न्यौता मिला था । सो जाना तो जरूरी था । ऎसे मौके कॊ कोई छोडता कहाँ है। शादि भी ज्यादा दूर नही थी । इस लिए सारा परिवार ही चार दिन पहले ही वहाँ पहुँच गया । ताकि शादि की सारी रस्मों मे शामिल हो सके ।
वहाँ पहुँच कर बड़े लोग तो औपचारिकता निभानें मे मशगूल हो गए और मै तथा मेरा बड़ा भाई, अपने हमउमर दोस्तों की तलाश में लग गए । वहाँ दो ग्रुप बन चुके थे सो हम बड़े ग्रुप मे शामिल हो गए ।यहाँ जिस घटना के बारे मे मै बता रहा हूँ, वह शाम के तीन बजे के आस-पास घटी थी ।
हम सभी घर से बाहर आ गए थे। भीतर ज्यादा जगह नही थी । पता नही अचानक क्या हुआ कि सभी सडक पर एक साथ दोड़ने लगे । उन की देखा-देखी मै भी उन के साथ दोड़ने लगा । शायद हम घर से अभी ज्यादा दूर नही गए थे कि अचानक पता नही क्या हुआ कि मै सड़्क पर गिर पडा । जब कि मुझे अच्छी तरह याद है कि ना तो मेरा पैर किसी से टकराया था और ना ही मै ज्यादा तेज ही दोड रहा था। कुछ देर बाद जब मैं खड़ा हुआ तो मुझे ऎसा लगने लगा जैसे ६-७ बज चुके हो । क्यूँकि उस समय मूझे ऎसा ही दिखाई दे रहा था । मेरी आँखों के सामनें ही मेरे बाकि साथी मुझ से काफि आगे निकल चुके थे। मैने उठ कर फिर दोड़ने की कोशिश की,मगर मुझे ऎसा महसूस हुआ जैसे मुझे कोई आदृश्य शक्ति कदम उठाने ही नही दे रही । मेरी मष्तिक ने काम करना ही बन्द कर दिया हो ,मुझे कुछ सूझ नही रहा था कि क्या करूँ ।अपने साथियों को जोर से आवाज देकर रोकने के लिए बुलाने की कोशिश की पर मेरी आवाज इतनी धीमी निकली के जैसे कोई दबी जुबान से बात कर रहा हो। मै परेशानी मे इधर-उधर ताकने लगा । घर वापसी का रास्ता मेरे दिमाग पर बहुत जोर देने पर भी मुझे याद नही आ रहा था । तभी मेरी नजर अपने से कुछ दूरी पर खड़े एक जवान साधू पर पड़ी । जिसने गेरूएं वस्त्र पहने हुए थे। कंधे तक उस के बाल लट्क रहे थे, जो मेरी तरफ एक टकटकी बाँध कर देखे जा रहा था । उस की आँखों से आँखों के टकराते ही मुझे ऎसा मह्सूस हुआ जैसे उस की आँखों से होकर कोई आदृश शक्ति निकल कर मुझे उस की ओर खीच रही हो । (उस की आँखो की चमक को याद कर आज भी मेरे मन मे सिरहन-सी दोड़ जाती है)मैने बहुत मुश्किल से उस की आँखों से अपनी नजर हटाई । अब तक मै समझ चुका था कि मै अपना शादि वाला घर नही ढूढं पाऊंगा । मै रोने लगा । पता नही कितनी देर तक रोता रहा था । मेरा ध्यान तब टूटा जब एक वृद महिला ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझ से मेरे रोनें का कारण पूछा । मैनें उसे अपनी पूरी कहानी सुनाई । वह समझ गई कि यह जिस के घर आया था उस घर का पता इसे मालूम नही ।वह मुझे साथ लेकर अपने घर की ओर चल दी ।
घर पहुँच कर उसने अपने लड़्के को बुला कर काफि देर तक बातें करती रही और अन्त मे कहा-"इसे थानें पहुँचा आओ । इस की किस्मत अच्छी थी जो मै वक्त पर पहुँच गई । वर्ना आज एक मुश्टंडा साधू इसे उठा ले जाता ।" मै उस समय छोटा तो था पर थोडा बहुत तो समझता ही था और मै उस के साथ भी इसी लिए चल पड़ा था क्यूँकि मुझे उस साधू से भय लग रहा था । वह महिला तो शायद अपने किसी काम से उस ओर निकल आई थी । या यूँ कहूँ मेरा भाग्य उस समय मुझ पर मेहरबान हो गया था ।
अपनी माँ के कहने पर वह मुझे थानें ले कर चल पड़ा । जब हम थानें के गेट पर पहुँचे तो अचानक मेरा हाथ उस के हाथ से छूट गया । वह लड़्का जो मुझे थानें ले कर आया था कुछ आगे निकल गया । तभी मेरी नजर फिर उसी साधू पर पड़ी,जिस के भय के कारण मै यहाँ तक पहुँचा था । उस की चमकती आँखों से आँखें मिलते ही, फिर मुझे उस की ओर एक खिचाव-सा महसूस होनें लगा । अभी मेरा पहला कदम ही उस की ओर उठा था (जबकि मै अपने को रोकने की भरसक कोशिश कर रहा था )कि वह लड़्का लौट आया और फिर मुझे झिड़्कते हुए ,हाथ पकड़ कर लगभग खीचंते हुए ,अन्दर थानें मै ले गया । उस ने सारी बात थाने मे बैठे पुलिस वाले को बताई और मुझे वही छोड़ कर लौट गया ।
देर रात गए जब मेरे पिता थानें में मेरे गुम होने की रिपोर्ट लिखाने थानें पहुँचे तो उन्हें मेरे बारे में जानकारी मिली। तब जाकर उन्होने मुझे मेरे पिता को सौपा और मेरी भी जान मे जान वापिस आई।
आज इतने बरस बीतने के बाद भी मै इस घटना को भूल नही पाया और मेरा इस घट्ना को आप को सुनानें का भी एक कारण है । क्यूँकि मै नही चाहता कि कभी किसी बच्चे के साथ ऎसी दुर्घट्ना हो जो मेरे साथ घटी । आप को सावधान करना भी चाहूँगा कि आप कभी भी किसी फकीर, साधू या किसी माँगने वाले की आँखों मे आँखे डाल कर बात न करें । हो सकता है वह आप को सम्मोहित कर रहा हो और आपको किसी प्रकार का नुकसान पहुँचाए । आप अपने घर के छोटॆ बच्चों को भी इन तथाकथित साधूऒं से सावधान रहने की हिदायत जरूर दे ।

Wednesday, March 21, 2007

कवितांजली

गज़ल

जब भरे हुए जामों को, कोई होठों से लगाए,
तुम ही बता दो यार कोई कैसे मुस्कराएं।

दिल की अन्धेरी शब में घुटकर मरे तमन्ना,
तब किसकी आरजू को हँस कर गले लगाएं।

दुनियामे जबहम आए थे दुनियाकी ठोकरों मे,
है कौन जो झुक के हमको, थाम अब उठाए।

हमें भेजनें वाले थी क्या खता हमारी ,
पत्थरों के इस जहाँ में,किसे दर्द ये बताएं ।



मुक्तक

जलेगी शंमा जो परवाने भी आएंगें
आपके लिए साकि हम भी संग गुनगुनाएगें
रात कितनी है बाकि किसी को खबर नही-
सहर होने तलक शायद ही ठहर पाएंगें ।


जिस राह पर चले हम, उसपर वीरांनियाँ हैं,
यहाँ हरिक की, अपनी-अपनी कहानियाँ हैं।
हसरत थी इस दिलको, कोइ रह्बर मिलेगा-
इसी ख्वाइशमें यहाँ गई कितनी जवानियाँ हैं


अकेला

हर चीज़ बिखर जाती है यहाँ

इस वक्त की जालिम ठोकर से

तुम झरना अपनें को मानों

पर रहते हो बस पोखर से।

जो एक जगह पर खड़ा-खड़ा

मोसम की मार से सूख गया

क्षण-भर मे खोता है खुद को

जब साँस का डोरा टूट गया।

फिर क्यूँ ना तज नफरत को इस

दिल मे ये प्यार सजाते नही

इन सपनों को नयनों मे भर

इक प्यार की दुनिया बसाते नही।

चुपचाप से क्यूँ यूँ बैठे हो

संग मेरे तुम क्यों गाते नही

ये वक्त गुजर जाए ना कहीं

बीते पल लौट के आते नही ।

मै भी ना यहाँ कल होऊंगा

तुम भी ना यहाँ रह पाऒगे

मिलकर बैठे तो झूम लेगें

व्यथित अकेले गाऒगे।


नया सवेरा

अनायास होता है सब कुछ

हम तकते रह जाते हैं

कोई अन्धेरा कहीं से निकल

हम पर लिपट जाता है

स्वयं से जन्मा ये अन्धकार

अब स्वयं को ही डराता है

मेरे मन

तुम अब अन्धेरे की बात मत करना

ये शनै-शनै मिट जाएगा

क्यूँकि कोई रात

कितनी भी काली या भयानक हो

रात के बाद

नया सवेरा आएगा ।

बीते साल

एक-एक कर पत्ते टूटेगें।

जानते हुए भी क्या

उस वृक्ष के सम्बंध

हमसे छूटेगे?

नही...नही

मुझे भूलने दो

किसी भी प्रश्न का उत्तर

मैं ना दे पाऊंगा ।

एक प्रश्न बन कर आया था

प्रश्न बना चला जाऊंगा ।

यदि तुम्हें उत्तर मिल जाए कभी

मुझे भी बताना।

मेरे बीते साल

मुझे मिल जाएगें

जिन्हें मै चाहता था

सजाना ।

जीवन-चक्र

सुबह

आँखें खोली

किसी ने एक वृत

मेरे आगमन से पूर्व बनाया

और मुझ से कहा-

इस वृत की रेखा पर दोडों

और इस का अन्त खोजों ।

अब मैं इस वृत की रेखा पर

और मोसम

मुझ पर दोड़ता है ।



Monday, March 19, 2007

पराविज्ञान-अंनुसंधान

क्या भूत-प्रेत व आत्माएं होती हैं ? आप क्या विचार रखते हैं ?
सभी ध्रर्म-ग्रन्थ आत्मा का अस्तिव स्वीकार करते हैं । श्रीगीता में भगवान श्रीकॄष्ण ने आत्मा को अजर-अमर माना है ।कुरान ऒर बाइबल भी आत्माओं को स्वीकारते हैं। फिर भी भूत-प्रेतों,जिन्नों को माननें वालों को अन्धविश्वाशी कहा जाता है ।क्या धर्मग्रन्थों की कही बातें झूठी हैं? कृपया बताएं ।
मै इस की जानकारी चाह्ता हूँ । इसी लिए मैनें इस प्रश्न को परिचर्चा में भी उठाया है । क्यूँकि हम जिन धार्मिक ग्रन्थों का संम्बल लेकर चल रहे हैं उन की कसोटी इस बात पर निर्भर करती है कि ये कही बातें सत्य है या असत्य । आज इन बातों को गंभीरता से लेना होगा । इसे मात्र अंधविश्वास कहना गलत होगा । इन्हें गलत कहनें का सीधा अर्थ होगा कि जिस का संम्बल लेकर हम चल रहे हैं वह सब भी गलत है। हमारे धार्मिक ग्रंथ मंत्रों से भरे पडे़ हैं ।जैसे- गायत्री मंत्र, प्रणव मंत्र और भी ना जानें हजारो-हजार मंत्र भरे पड़े हैं हमारे ग्रन्थों में । साथ में इस बात का भी दावा है कि मंत्रों में शक्ति होती है । इनसे आपकी कई समस्याओं का समाधान भी होता है । क्या ये असत्य है ? यदि ये सब गलत है तो हम किस दिशा की ओर जा रहे हैं ? तब हमारी आस्था का क्या होगा ?
आप सोच रहे होगें आज कम्पयूटर के युग में मैनें कौन-सा विषय चुना है । मेरा इस विषय को चुननें का कारण मात्र इतना है कि मैं इसे अन्धविश्वास नही मानता, बल्कि इसे भी एक विज्ञान मानता हूँ ।मंत्र विज्ञान वास्तव में ध्वनि-विज्ञान है,जो विभिन्न प्रकार की ध्वनियों को एक विशेष संयोजन मे रखकर उच्चारित करनें से एक विशेष प्रकार की शक्ति का प्रभाव उत्पन्न कर देता है जो हमारे अनुकूल परिस्थितयाँ उत्पन्न करनें में सहायक होता है।अब यह साधक के विवेक पर निर्भर करता है कि वह इस शक्ति का प्रयोग कैसे करे।
भूत-विज्ञान पर अपनें विचार बाद में लिखूँगा.......पहले आपके विचार जानना चाहता हूँ । कमेंट्स अवश्य करें ।