शायद इसीलिए
ज्यादातर सरदारों पर
चुटकलें बनाते हैं।
हरिक चुटकले में
उसे मूर्ख दिखाते हैं ।
इसी लिए मैनें
उनका इतिहास खंगाला
बहुत ध्यान से देखा-भाला।
जो समझा
उसे सुनाता हूँ-
इतिहास गवाह है-
जब हिन्दुओं को
जबरदस्ती
मुसलमान बनाया जा रहा था।
हर तरह से सताया जा रहा था।
उस समय़
सरदारों के
नोंवें गुरू
गुरू तेग बहादुर
दूसरों के धर्म की रक्षा हेतू
चाँदंनी चौक के चौराहे पर
अपना सिर कटाते हैं।
शायद इसीलिए
ज्यादातर सरदारों पर
चुटकलें बनाते हैं।
जब मुसलमानों के
नवाब और नवाबजादें
अपनी एय्याशीयों के लिए
अपनी ही जनता की
माँ-बहनों को उठाते थे ।
उस समय
सरदार आधी रात को
एय्याशियों मे डूबे मुगलों पर
अनायास हमला कर
उन्हें छुड़ा वापिस घर पहुचाते थे।
इसी लिए मुगल कह्ते थे-
हम इनकी माँ-बहन तो नही उठाते हैं
फिर क्यूँ ये नाहक हम से वैर बढाते हैं।
दूसरों की खातिर अपनी जान गवातें है।
क्या बारह बजें सरदारों के
दिमाग खराब हो जाते हैं ?
शायद इसीलिए
ज्यादातर सरदारों पर
चुटकलें बनाते हैं।
जब देश
गुलामी की जंजीरों में
जकड़ा हुआ था।
देश भगतों ने आजादी के लिए
अपना-अपना रास्ता
पकड़ा हुआ था।
ऎसे समय में
जलियाँ वाले बाग में
हजारों सरदार मारे जाते हैं।
हजारों काले पानी की सजा पाते हैं।
हजारों अग्रेजों से लड़ते हुए
सीनें पर गोली खाते हैं।
भगत सिहँ,उधम सिहँ सरीखे सरदार
हँसतें-हँसते फाँसी पर चड़ जाते हैं।
शायद इसी लिए ज्यादातर
सरदारों पर चुटकलें बनाते हैं।
भारत की कुल जनसख्याँ में
मात्र सवा प्रतिशत
सरदार पाए जाते हैं।
लेकिन सैना में
कुल सैना का
नौ प्रतिशत नजर आते हैं।
ना मालुम क्या सोच कर
ये सैना मे भरती हो जाते हैं ?
हँसते-हँसते वतन की रक्षा के लिए
सीनें पर गोली खाते हैं।
शायद इसी लिए ज्यादातर
सरदारों पर चुटकलें बनाते हैं।
कुछ नेताओं की
कुटिल राजनिति के कारण
कुछ कट्टरवादी सरदार
एक धार्मिक स्थल में घुस जाते हैं।
कुछ बुद्दिजीवी सरदार
उन से निपटनें का उपाय सुझाते हैं-
"धार्मिक स्थल को चारों ओर से
सैना से घेर कर
बिजली-पानी काटों।"
"भीतर छिपे कट्टरवादी अपने आप
भूख प्यास से हो बेहाल
बाहर आएगें ।"
"किसी की भावना को
ठेस भी नही पहुँचेगी
वह सब पकड़े जाएगें।"
लेकिन
राजनेताओं की ह्ठधर्मी ने
उस धार्मिक स्थल को
टैकों ऒर तोपों से उड़ा दिया।
अपने ही देश में खुद
साम्प्रदायिकता का
जहर फैला दिया।
जो लोग
अपनें ही घर में
खुद आग लगाते हैं
ऎसे लोग
अपनी लगाई आग में
खुद ही जल जाते हैं।
लेकिन
दूसरों द्वारा लगाई आग में
हजारों बेगुनाह
जिन्दा जलाए जाते हैं
अपनें ही देश में
अपनों से न्याय नही पाते हैं
इतनी तबाही के बाद भी
किसी के आगे
हाथ नही फैलाते हैं।
अपनें टूटे घरों,
धार्मिक स्थलों को
पहले से बेहतर बनाते हैं
इतना सब सहनें के बाद भी
देश की खातिर
मरने के लिए
आज भी
सब से आगे खड़े हो जाते हैं ।
शायद इसी लिए ज्यादातर
सरदारों पर चुटकलें बनाते हैं।
सरदारों के इतिहास का
एक छोटा हिस्सा खंगालने के बाद
मेरे मन में विचार आते हैं
जो लोग
देश ऒर दूसरों की खातिर
अपनी जान गँवाते हैं
आज-कल ऎसे लोग
दुनिया की नजर में
मूर्ख कहलाते हैं
शायद इसी लिए ज्यादातर
सरदारों पर चुटकलें बनाते हैं।
बाली जी सरदार वह है जो "देह शिवा वर मोहे यह, शुभ करमन से कबहु न डरो न डरो अरि सो जब जाय लरौ, निश्चय कर अपनी जीत करो"
ReplyDeleteजीवन जीता है वह अपने उपर हस कर भी सबको हसाता खिलखिलाता है और जब जरुरत पडती है तो उसी आन बान शान से जहा के लिये एक सीख छोड बलिदान हो जाता है,गुरु के बन्दे जिस मस्ती और शान से जीते है उसी मस्ती और शान से कुर्बान होने का जज्बा भी रखते है उनकी कोई क्या हसी उडायेगा सुरज को कोई क्या रोशनी दिखायेगा
आपकी कविता बहुत बहुत शानदार है जो हुआ हम सब उससे गुजरे है पर हमेशा आप पिछला तो याद कर नही जी सकते ना
बहुत सुंदर और भावपूर्ण कविता परमजीत जी। बस एक बात गुरुओं के समय में सिखों को हिंदुओं से अलग करके नहीं देखा जाता था। मुगल भी गुरुओं को हिंदू संत ही कहते थे। दशम गुरु जी द्वारा खालसा पंथ की स्थापना के बहुत बाद तक भी साझी पहचान कायम रही। बहुत बाद में जाकर रास्ते अलग हुए। हाँ सांस्कृतिक एकता आज भी बरकरार है।
ReplyDeleteसुंदर कविता ।
ReplyDeleteसवा लाख = एक सरदार (नाम ही काफी है)
अच्छी कविता है ।
ReplyDeletesuperlike.
ReplyDeleteCongrats............very nice
ReplyDeleteJOLLY UNCLE
nice
ReplyDeletevery nice
ReplyDeleteBahut sundar kavita.
ReplyDeleteShayad ye bhi aapko pasand aayen- Prevention of radioactive pollution , Sound pollution images
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