आप का लेख पढा। कट्टरवादीयों पर लिखा लेख बहुत अच्छा है। लेकिन आप ने जो पंजाब के बारे में लिखा ।उस का सम्बध कट्टरवाद से नही है ।यह एक विचारणीय विषय है।जो आज सिक्ख समुदाय के साथ हो रहा है वह कल किसी अन्य समुदाय या धर्म(संप्रदाय) के साथ भी हो सकता है।राम रहीम सिहँ ने जो किया,वह सिक्ख गुरूऒ का अपमान तो है ही साथ ही दूसरे सिक्खों के ऐतिहासिक परम्परा में संशय की स्थिति पैदा करने की कोशिश भी की गई है। राम रहीम सिहँ ने, जिस तरह गुरू गोबिन्द सिहँ जी ने अपने अनुयाइयों को अमृतपान कराया था। उस ने भी ठीक उसी प्रकार, सिर्फ थोड़ा बहुत नाम व अमृत छकाने की परम्परा को बदल कर, वही कार्य दोहराया है।जिस से बाद में संशय पैदा होना स्वाभाविक है।मान लो कल हिन्दू या मुसलमानो के जनैउ संस्कार या सुनत संस्कार का नाम बदल कर कोई अन्य राम रहीम सिहँ सरीखा गुरू उस को दूसरे नाम से प्रचारित कर अपने संम्पदाय मे विलीन करना चाहेगा तो आप क्या उस का विरोध नही करेगें ? आज मात्र सिक्खों को नही सभी को इस विषय पर गंभीरता से विचार करनें की जरूरत है।कुछ दूसरे धर्मावलंबीयों ने सिक्खो की माँग को उचित ठराया है। जो कि एक अच्छा कदम है।
क्या फ़र्क पड्ता है, किसी की जान तो नही ले रहा....!!!!! ये अकाली तो तलवार हाथ मे लेकर जान लेने पर उतारु है किसी की जान ले लो ये किस पन्थ मे लिखा है.. ये तो साफ़ है एक ताकतवर समुदाय कमज़ोर का सफ़ाया करने पर तुला है.कोई कैसे भी लोगो मे प्यार बाटे क्या फ़र्क पड्ता है....!!!!!
ReplyDeleteये कॉपी राइट का माम्ला है. अब अगर कोई सिखों की तरह दाढ़ी बढ़ा ले तो क्या? उसकी दाढ़ी काटेंगे कि सर?
ReplyDeleteमुझे तो इन सब फसादों में फिजूलगर्दी ज्यादा दिखती है. बस कुछ लोग हैं जिनके लिये रोटी कपडा मकान और सम्मान मुख्य काम कुछ के लिये ये सब....
ReplyDeleteसर्वेश्वर दयाल सक्सेना की एक कविता है
गोली लगने पर
एक के मुंह से निकला राम
एक के अल्लाह
और तीसरे के मुंह से निकल्ल रोटी
पोस्टमार्टम की रिपोर्ट बताती है की
तीसरा भूखा था.
Dear Paramjit Baali..
ReplyDeleteyou mentioned anout researching Tantra and Mantra..I would like to interact with you and would like to know from you.. can you deliberate on that? Awaiting to interact with you. Kavi Kulwant
singhkw@barc.gov.in
दोस्त आप का लेख तकनीकी रूप में बिल्कुल सही है...परन्तु मैं धार्मिक विषय के लेखों पर टिप्पणी करने से परहेज रखता हूं...बात का बडतंग बनते देर नही लगती . और टांग टूटने का खतरा रहता है. :)
ReplyDeleteबेनाम जी ने लिखा है
ReplyDeleteये कॉपी राइट का माम्ला है. अब अगर कोई सिखों की तरह दाढ़ी बढ़ा ले तो क्या? उसकी दाढ़ी काटेंगे कि सर?
.....मैं इसके समर्थन में हूं.
अगर किसी पंथ के अनुयायी अपने बच्चों की सुन्नत कराने लगें या उनको जनेऊ पहनाने लगें तो आपको कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए.
इस प्रकरण में यदि बाबा राम रहीम ने खुद को सिख पंथ का गुरू घोषित किया होता तो विरोध जायज माना जाता.
अगर किसी पंथ के लोग सिर पर गोल टोपी पहन दाढ़ी बढ़ाकर व हाथ में बांसुरी लेकर विज्ञापन छपवाएं तो क्या हिन्दू और मुसलमान आपस में एक होकर दंगा करेंगे.
अगर करेंगे तो उसका औचित्य क्या होगा.
आप मित्रों की टिप्पणीयां पढने के बाद मुझे लगने लगा है कि यदि कोई किसी के धार्मिक इतिहास से मिलती-जुलती कारगुजारी करता है तो उसे नही रोकना चाहिए भले ही भविष्य में उस से बखेड़े खड़े होते रहे। जब कि मेरे निजि विचार हैं कि बिना दूसरों के मन हो आहत किए अपने धर्म का पालन करना ही सही रास्ता हो सकता है। विशेष जी पंजाब मे दंगा नही विरोध किया जा रहा है।और ना ही वेशभूषा को लेकर यहाँ सवाल उठाया गया है। वैसे आप सभी के विचारो का स्वागत है।
ReplyDeleteबाली जी, आप वरिष्ठ समझदार साथी है.. मेरा ख्याल है कि इस मसले पर अभी भी लोगों के अन्दर एक सफ़ाई नहीं बनी है.. आपने जो लिखा है वह काफ़ी संक्षिप्त है.. अगर हो सके तो आप इस मामले को ज़रा विस्तार से समझायें कि क्यों नाराज़ है हमारे सिख भाई.. इतने सारे लोग गुस्सा हैं तो कोई तो बात होगी..
ReplyDeleteवाली जी.यह आप का ही लिखा हे...
ReplyDeleteरोटी समस्या नही
रोटी तो बँट जाएगी
इन्सान में
इन्सानियत जब आएगी ।
भाई ,हिदु मुस्लिम,इसाई बनाने से पहले हम इन्सान बन जाए,बाकी बस सब आपने आप ठीक हो जाए गए,
राज जी, यह मेरी ही लिखी है ।लेकिन मैं किसी धर्म विशेष की पेरवी नही कर रहा। मै तो सिर्फ इतना चाहता हूँ कि इस समस्या से सभी को निजात कैसे मिले? क्यूँ कि ऎसी समस्याएं अक्सर उठती रहती हैं जो हमारे देश के लिए घातक हो सकती हैं। जब तक सभी मिल बैठ कर इस विषय पर कोई अचार संहिता(जो सब को मंजूर हो) नही बनाते तब तक यह समस्या का अंत नही होगा।
ReplyDeleteइसे मेरी प्रतिकि्रया न समझें । यह मेरी जिज्ञासा है । प्रत्येक धर्म गुरू ने धर्म पर मरना सिखाया है, मारना नहीं । राम रहीम सिंह ने अधर्म किया है तो उसका जवाब भी अधर्म से ही तो दिया जा रहा है ! उससे माफी माँगने के लिए पूरे दे में दबाव बनाना, उसके डेरे बन्द करने का फतवा जारी करना भी तो धर्म नहीं है । धर्म तो नितान्त व्यक्तिगत आैर आचरण का विषय है, प्रदर्शन का नहीं । संगठित धर्म न तो आदमी का भला करता है आैर न ही समाज का । मार्क्स ने शायद एेसी ही स्थितियों के आधार पर धर्मर को अफीम कहा होगा ।
ReplyDeletevishnu ji,आप की बात से मै सहमत हूँ "उससे माफी माँगने के लिए पूरे देश में दबाव बनाना, उसके डेरे बन्द करने का फतवा जारी करना भी तो धर्म नहीं है"
ReplyDeleteइसी लिए मैने कहा है-"आज मात्र सिक्खों को नही सभी को इस विषय पर गंभीरता से विचार करनें की जरूरत है। "
यह किसी एक धर्म विशेष का मामला नही है।उदार वादी सिख भी बात-चीत से समस्या का हल चाहते हैं।यह सुझाव कुछ अन्य धर्मावलंबीयों द्वारा भी आया है। जिसे उचित कदम ही मानना चाहिए।