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Wednesday, July 11, 2007

जीवन-चक्र

सुबह
आँखें खोली
किसी ने



एक वृत
मेरे आगमन से
पूर्व बनाया
और मुझ से कहा-
इस वृत की रेखा पर दोडों
और इस का अन्त खोजों ।



अब मैं इस वृत की रेखा पर
और मोसम
मुझ पर दोड़ता है ।

5 comments:

  1. बढिया वृत्‍तीय कल्‍पना के लिए धन्‍यवाद

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  2. क्या खुब लिखा है....

    हमारा जीवन भी एक बैल की तरह एक वृत्त की रेखा पर ही व्यतित होता है..

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  3. मुझे तो बौद्ध-दर्शन का 12 चक्र याद आ गया… बहुत सच लिखा है इतनी छोटी सी कविता में काफी कुछ्…।

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  4. इसी दौड में सब लगे हैं जिसका कोई छोर नहीं और मौसम है हमारी अनगिनित महत्वाकांक्षायें. बढ़िया है.

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