हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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Wednesday, July 11, 2007
जीवन-चक्र
सुबह आँखें खोली किसी ने
एक वृत मेरे आगमन से पूर्व बनाया और मुझ से कहा- इस वृत की रेखा पर दोडों और इस का अन्त खोजों ।
अब मैं इस वृत की रेखा पर और मोसम मुझ पर दोड़ता है ।
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बढिया वृत्तीय कल्पना के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteक्या खुब लिखा है....
ReplyDeleteहमारा जीवन भी एक बैल की तरह एक वृत्त की रेखा पर ही व्यतित होता है..
मुझे तो बौद्ध-दर्शन का 12 चक्र याद आ गया… बहुत सच लिखा है इतनी छोटी सी कविता में काफी कुछ्…।
ReplyDeleteइसी दौड में सब लगे हैं जिसका कोई छोर नहीं और मौसम है हमारी अनगिनित महत्वाकांक्षायें. बढ़िया है.
ReplyDeletebahut badhiyaa.
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