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Thursday, August 9, 2007

कौन है वह ?


कौन है वह ?

वही जो कल था ।

क्यूँ आता है रोज-रोज?

पता नही ।

बस खाली जाता है ।

फिर भी मैं थक जाता हूँ ।

अपने को अक्सर भरमाता हूँ ।

सब ऐसे ही जीते हैं

सब रीते हैं

बस इक "मैं" से भरे हुए

जीवन-भर जीते हैं ।

साँसों को पीते हैं ।


इस सराय में

एक पथिक ठहरा है

इस सराय से नाता बहुत गहरा है

लेकिन इसका मालिक

कभी नजर नही आता है ।

लेकिन बहुत अजीब है ।

बिना चेताए बिना बताए

इस सराय से हमको

बाहर कर जाता है ।

कौन है वह ?

5 comments:

  1. बहुत बढिया! हमारा जीवन ऐसे ही बीतता है,दिन आते हैं और चले जाते हैं ।लेकिन अंहकार नही मरता ।समय के साथ-साथ वह बढता ही जाता है और यह भी सच है मौत का फरमान उपरवाला हमें बिना बताए ही जारी कर देता है।आप ने अपने विचारो को बहुत अच्छि तरह रचना में व्यक्त किया है।

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  2. हम बस अपने मैं के साथ ही जीते है ये बात आपकी सत्‍य है ।

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  3. बहुत बढिया और हृदय स्पर्शी
    दीपक भारतदीप

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