हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
कहा गया है कि देखना जीवन के सात आश्चर्यों में से एक है , वही व्यक्ति वास्तव में देखने की क्रिया में पारंगत होता है जो अपने भीतर देखता है ! समीर भाई ने ठीक ही कहा है कि बहुत कम ही लोग इस कला में पारंगत होते हैं ! बधाईयाँ एक बार फ़िर बेहतर प्रस्तुति के लिए .
आप द्वारा की गई टिप्पणीयां आप के ब्लोग पर पहुँचनें में मदद करती हैं और आप के द्वारा की गई टिप्पणी मेरा मार्गदर्शन करती है।अत: अपनी प्रतिक्रिया अवश्य टिप्पणी के रूप में दें।
सच है. अपने भीतर उतरने की कला में कम ही पारंगत हैं.
ReplyDeleteवाह क्या बात कही है आपने. आईने दिखा दिया. और इस आईने के सामने सब ....... खड़े हैं.
ReplyDeletebahut achhi poem hai!
ReplyDelete"हम कभी
अपने भीतर
उतर नही पाते हैं।"
mere traf se-
क्यूँकि
हम कभी
अपने अंदर
नही झाँकते हैं..!!!
regards,
www.rewa.wordpress.com
कहा गया है कि देखना जीवन के सात आश्चर्यों में से एक है , वही व्यक्ति वास्तव में देखने की क्रिया में पारंगत होता है जो अपने भीतर देखता है ! समीर भाई ने ठीक ही कहा है कि बहुत कम ही लोग इस कला में पारंगत होते हैं ! बधाईयाँ एक बार फ़िर बेहतर प्रस्तुति के लिए .
ReplyDeleteमेरा वजूद टूटके बिखरा यहीं कहीं
ReplyDeleteमेरी नज़र से ढूँढ लो होगा यहीं कहीं.
देवी