Pages

Sunday, December 23, 2007

कमजोर आदमी

यह पलकें
सदा भीगी रहती हैं।
कभी धूँए से
कभी आग से,
कभी दर्द से।

अब कब और कैसे सूखेगा पानी?
कब खतम होगी यह कहानी?
"वो" भी इन से मुँह फैर बैठा है।
पता नही इन से क्यों ऐंठा है?

हरिक आदमी
अपनी ताकत इसी पर अजमाता है।
सताए हुए को और सताता है।

आज फिर
एक कहानी याद हो आई?
जो किसी ने थी सुनाई।

अर्जुन ने एक बार
जब वह वन में घूम रहे थे
श्रीकृष्ण के साथ ,
पूछा था-"भगवान!आप सताए हुए को क्यों सताते हो?"
"जब कि हमेशा उसे अपना बताते हो।"

कृष्ण बोले-"अभी बताता हूँ.."
"पहले मेरे बैठनें को एक ईट ले आओ।
"अर्जुन तुरन्त चल दिया।
लेकिन बहुत देर बाद ईंट ले कर लौटा।
कृष्ण ने उसे टोका
और पूछा-"इतनी देर क्यों लगा दी?"
"पास में ही तो दो कूँएं थे वही से क्यों नही उखाड़ ली?"
अर्जुन बोला-"प्रभू! वह टूटे नही थे,ईट कैसे निकालता?"
कृष्ण बोले-"मै भी तो इसी तरह सॄष्टी को हूँ संम्भालता।"

टूटे को सभी और तोड़ते हैं।
मजबूत के साथ अपने को जोड़ते हैं।
ऐसे में,
कैसे कमजोर आदमी को
संम्बल ,सहारा मिलेगा।
क्या उस का चहरा भी
कभी खिलेगा?

11 comments:

  1. टूटे को सभी और तोड़ते हैं।
    मजबूत के साथ अपने को जोड़ते हैं।
    बाली जी
    इन दो पंक्तियों में आप ने कितनी कडुवी सच्चाई बयां कर दी है. वाह.
    बेहतरीन रचना.
    नीरज

    ReplyDelete
  2. हरिक आदमी
    अपनी ताकत इसी पर अजमाता है।
    सताए हुए को और सताता है।
    -----------------------
    सत्य को बयान करती हुई यह पंक्तियाँ
    दीपक भारतदीप

    ReplyDelete
  3. वाह साहब वाह. क्या बात कही है परमजीत भाई, और किस अंदाज़ में कही है !! बधाई.

    ReplyDelete
  4. behad sundarta se varnan kiya hai,tut ko sab aur todte hai,sahi kaha,aur krishna arjun ki kahani ek dam sahi,shukran itni aache vichar radarshit karne ke liye.kuch sikh lekar hi ja rahe hai hum.the person who helps himself,lord also help him.

    ReplyDelete
  5. पढ़ी हुई बात को किसी से दुबारा पढ़वा लेने की आपकी कला स्तुत्य है। यह कथा मैंने किसी अन्य रूप और अन्य प्रतीकों से पहले सुन या पढ़ रखी थी, लेकिन आपने जिस तरीके से प्रस्तुत किया है औऱ शब्दों को शिल्प के साथ जिस खूबसूरती से सजाया है, काबिले तारीफ है। बहुत-बहुत बधाई।

    ReplyDelete
  6. भाई,
    आपकी उपस्थिति देखकर बेहद-बेहद खुशी हुई , मैं हमेशा आपके ब्लॉग पर आता था और बिना कुछ पाये मायुश होकर चली जाता था , आज भी अनमने ढंग से ही आपके ब्लॉग पर आया मित्र, मगर आपकी सार्थक उपस्थिति देखकर चौंक गया एकबारगी , आपकी कविता कमजोर आदमी अच्छी लगी , इस क्रम को बनाए रखें !

    ReplyDelete
  7. Hi,
    i have seen this site www.hyperwebenable.com where they are providing free websites to interested bloggers.
    I have converted my blog myblogname.blogspot.com to myname.com at no cost.
    Have your own brand site yourname.com instead of using free services like yourname.blogspot.com or yourname.wordpress.org.
    Have complete control of your website.
    You can also import your present blog content to new website with one click.
    Do more with your website with out limits @ www.hyperwebenable.com/freewebsite.php
    regards
    sirisha

    ReplyDelete
  8. बहुत ही सत्य को प्रस्तुत करती कविता है.
    क्या खूब लिखा है की
    टूटे को सभी और तोड़ते है.
    मज़बूत के साथ अपने को जोड़ते है.

    बिल्कुल एकदम सत्य है.

    ReplyDelete

आप द्वारा की गई टिप्पणीयां आप के ब्लोग पर पहुँचनें में मदद करती हैं और आप के द्वारा की गई टिप्पणी मेरा मार्गदर्शन करती है।अत: अपनी प्रतिक्रिया अवश्य टिप्पणी के रूप में दें।