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Sunday, January 6, 2008

मुक्तक माला-१०



१.


एक डोर मे पिरोये हैं मोती उसने।

दोस्ती नाम है उस की बनाई माला का।

हमे क्यों ना हो ऐतबार तुम पर ,

बंदा में भी हूँ उसी पाठशाला का।

२.


ज्यादा बोलनें से कोई अच्छा नही होता

ऊचाँ बोलनें से कोई सच्चा नही होता

भीड़ जहाँ हो वहीं सच हो, यह जरूरी तो नही,

ऐसी सोच रखना यारों, अच्छा नही होता।

३.


अब तो सच का साथ देने से भय लगता है।

अपनें कमजोर होनें का एहसास जगता है।

इसी लिए भीड़ मे भी लुट जाता है, कोई,

किसी के दिल में शोला नही भड़कता है।

४.


जब सभी रिश्ते ही बेमानी होने लगें।

जब जानबूझ कर नादानी होनें लगे।

तब हमें झूठ ही सच नजर आएगा,

ताजुब ना करना हरिक आँख रोनें लगे।

10 comments:

  1. परमजीत जी
    आपकी इस कविता से मैं कोई चुनींदा पंक्तियाँ नहीं रखा सकता और पूरी कविता कमेन्ट में रखना हास्यास्पद लगेगा. इसकी हर पंक्ति दिल को छू लेने वाली है.
    दीपक भारतदीप

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  2. आप बढिया लिखते है। बहुत दिनो बाद आया हूँ। अब लगता है कि आपकी टायपिंग की समस्या सुलझ गयी है। अब आता रहूंगा।

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  3. paramjit ji,hum bhi deepak ji se sahemat hai,kisi bhi ek muktak ki tariff nahi ki ja sakti,sari ki sari behtarin,lajawab hai.hame sabse jyada jo pasand aayi wo dosti ki mala,ek hi pathshala,aur
    jyada bolnewala bhi,har pankti mein sachhai hai.

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  4. "जब सभी रिश्ते ही बेमानी होने लगें।
    जब जानबूझ कर नादानी होनें लगे।
    तब हमें झूठ ही सच नजर आएगा,
    ताजुब ना करना हरिक आँख रोनें लगे।"


    वर्तमान समाज की विडम्बनाओं एवं विरोधाभासों पर एक सशक्त टिप्पणी !!

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  5. सीधी, सच्ची, सरस । यही सब पढ़कर ब्लॉगिंग का दीवाना होता जा रहा हूं।

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  6. आपके मुक्तकों को पढ़ने के बाद यह सहज एहसास होने लगा कि सचमुच जीवन कितना सुंदर है , बधाईयाँ!

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  7. परमजीत भाई - बहुत बेहतरीन - ख़ास कर यह पंक्तियाँ बहुत बहुत समर्थ, सच्ची और अच्छी लगी -
    "ज्यादा बोलनें से कोई अच्छा नही होता
    ऊचाँ बोलनें से कोई सच्चा नही होता
    भीड़ जहाँ हो वहीं सच हो, यह जरूरी तो नही,
    ऐसी सोच रखना यारों, अच्छा नही होता।"
    सादर - मनीष

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  8. "ज्यादा बोलनें से कोई अच्छा नही होता
    ऊचाँ बोलनें से कोई सच्चा नही होता"
    हमारा आज तो बोलने को जी चाह रहा है.. वैसे आते, पढ़ते और चले जाते... लेकिन आज कुछ पंक्तियाँ दिल में उतर गईं... बहुत खूबसूरत अर्थभरी बात कह गए..

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  9. आपकी कविताएँ बहुत अच्छी हैं, ये वास्तविकता पर आधारित हैं।
    धन्यवाद।

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