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Friday, March 14, 2008

गजल



मुस्कराता-सा हरिक चेहरा यहाँ लगता है।
चहरे पर चेहरा यह, बहुत खूब फबता है।

हम रोज तेरी महफिल में आते थे मगर,
जिक्र हमारा हुआ हो कभी,नही लगता है।

जाम हर बार तुम्हीं थमाते थे, हाथों में,
कहीं मोहब्बत थी ये तुम्हारी, क्यूँ लगता है।

मुस्कराता-सा हरिक चहरा यहाँ लगता है।
चहरे पर चहरा यह, बहुत खूब फबता है।

दर्द दिल में छुपाए यूँ ही हम तो जीए जाएंगें,
इस जमानें का है दस्तूर यही ,क्यूँ लगता है।

नही ऐसा मिला कोई, जो कहे तुम्हारा है,
हरिक शख्स यहाँ अपनें लिए, जीता मरता है।

4 comments:

  1. बहुत अच्छा लगा ये शेर,

    मुस्कराता-सा हरिक चहरा यहाँ लगता है।
    चहरे पर चहरा यह, बहुत खूब फबता है।

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  2. दर्द दिल में छुपाए यूँ ही हम तो जीए जाएंगें,
    इस जमानें का है दस्तूर यही ,क्यूँ लगता है।
    bahut khub

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  3. मुस्कराता-सा हरिक चेहरा यहाँ लगता है।
    चहरे पर चेहरा यह, बहुत खूब फबता है।
    ----------------------------
    दिल को छू लेने वालीं पंक्तियाँ
    दीपक भारतदीप

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  4. हम रोज तेरी महफिल में आते थे मगर,
    जिक्र हमारा हुआ हो कभी,नही लगता है।

    bahut hi achhi ghazal hai ..

    -tarun

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