हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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Thursday, April 16, 2009
मत पूछिए..............
मत पूछिए क्या सोच घर से निकल पड़ा। हरिक कदम पे मुझको, पत्थर मिला पड़ा।
छोड़ा था घर जिस के लिए, उसे ढूंढते रहे, वो घर अपनें बैठा रहा, जिद पे रहा अड़ा।
क्यों मान दिल की बात दिल लगा बैठे, तड़पना तमाशा बना , वो हँसता रहा खड़ा।
अब आखिरी साँसों में, जाना तेरा वजूद, परमजीत अपनें भीतर कब से था पड़ा।
जीवन है जंग ऐसा पत्थर पड़े मिलेंगे। होते सफल है जिसमें हो हौंसला बड़ा।।
सादर श्यामल सुमन 09955373288 मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं। कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।। www.manoramsuman.blogspot.com shyamalsuman@gmail.com
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जीवन है जंग ऐसा पत्थर पड़े मिलेंगे।
ReplyDeleteहोते सफल है जिसमें हो हौंसला बड़ा।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
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shyamalsuman@gmail.com
क्यों मान दिल की बात दिल लगा बैठे,
ReplyDeleteतड़पना तमाशा बना , वो हँसता रहा खड़ा।
अब आखिरी साँसों में, जाना तेरा वजूद,
परमजीत अपनें भीतर कब से था पड़ा।
gehre bhav kuch dil ke kareeb,bahut khub
acha raha
ReplyDeleteसच के बहुत करीब ...
ReplyDeleteसुंदर ......
सच के करीब सुन्दर लगा हर शेर
ReplyDeleteबहुत दिन बाद आपको पढ़कर काफ़ी अच्छा लगा
ReplyDeleteहर शेर लाजवाब्।
ReplyDeleteaatma ka sundar roop prastut kiya aapne.............satya to yahi hai magar hum use hi nhi khojte.
ReplyDeletevah bahut badhiya gajal....Bali ji..
ReplyDeleteapko hardik badhai.
HemantKumar
लाजवाब रचना है .............हर शेर खूबसूरत है
ReplyDeleteलाजवाब ...
ReplyDeleteएक और सुन्दर रचना के लिए साधुवाद.
ReplyDelete... प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!!!!!
ReplyDeleteSabhi aashar bade ache hai...!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteलाजवाब रचना अब आखरी सासों मे जाना तेरा बजूद आखिर ढूंड ही लिया
ReplyDeleteखूबसूरत रचना .
ReplyDeleteसुन्दर रचना. पत्थरों को हटाते चलें ताकि दूसरा न गिर पड़े.
ReplyDeletebahut badiya.....
ReplyDeleteसुन्दर रचना .शुभकामनायें.
ReplyDeleteमत पूछिये क्या सोच घर से निकल पड़ा
ReplyDeleteहरेक कदम पे मुझको पत्थर मिला पड़ा
वाह वाह...बलि जी तुसीं ते कमाल कर दित्ता....!!
अब आखिरी सांसों में जाना तेरा वजूद
परमजीत अपने भीतर कबसे था पडा
अब जब आपने जान ही लिया है तो हमें और अच्छी अच्छी गज़लें पढने को मिलेंगी उम्मीद है .....!!
बालीजी बहुत सुन्दर अभिव्यक्ती है शु्भका् मनायें
ReplyDeleteबहुत सही परमजीत जी सुंदर रचना...बधाई हो !
ReplyDeleteपत्थर मिला फिर भी दीवानगी तो देखिए,
आख़िरी साँसों तक तेरी याद संभाले रखा.
तमाशा बना तुझे, रिझाता रहा हर पल,
तेरी हँसी का ख्वाब, अपने दिल मे पाले रखा.
वाह भई!! बहुत उम्दा रचना!! आनन्द आया/
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण रचना....बधाई
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति के लिए बधाई
ReplyDeleteपहले तो मै आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हू कि आपको मेरी शायरी पसन्द आयी !
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत लिखा है आपने ! आप एक बहुत ही अच्छे कलाकार है !
paramjit ji ,
ReplyDeletesundar rachna ke liye badhaai.