हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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Wednesday, May 20, 2009
मुक्तक माला - १७
जलेगी शंमा जो परवाने भी आएंगें, आपके लिए साकी हम भी संग गुनगुनाएगें रात कितनी है बाकि किसी को खबर नही- सहर होने तलक शायद ही ठहर पाएंगें ।
जिस राह पर चले हम, उसपर वीरांनियाँ हैं, यहाँ हरिक की, अपनी-अपनी कहानियाँ हैं। हसरत थी इस दिलको, कोइ रह्बर मिलेगा- इसी ख्वाइशमें यहाँ गई कितनी जवानियाँ हैं|
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सुन्दर मुक्तक..दोनों ही!!
ReplyDeleteparamjeet jee, sundar muktak ke liye badhai....
ReplyDeleteपरमजीत जी शुक्रिया इन सुन्दर मुक्तकओ के लिए ...
ReplyDeleteक्या बात है बाली साहेब दोनों मुक्तक लाजवाब...बेहतरीन....
ReplyDeleteनीरज
क्या बात है.........दोनों ही लाजवाब हैं ...........जोरदार रचनाएं
ReplyDeletebahut hi shandar,behtreen.
ReplyDeleteआपने शमा जलाई और देखिये परवाने आ गए.
ReplyDeleteसाभार
हमसफ़र यादों का.......
... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति ... बधाईयाँ ।
ReplyDeleteaarnya baali saheb
ReplyDeletekya baat kahi hai aapne dono muktakh , bus kaamal ke hai ..
meri dil se badhai sweekar kariyenga
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
सहर होने तक ठहर के देखो.
ReplyDeleteरहबर मिलेगा तुम्हारे इंतज़ार में.
वाह वाह जनाब छु लिए.
ReplyDeleteदिल के एहसासों को..
अभी तक तो महसूस करते थे लेकिन आज छु लिए.....
अक्षय-मन