हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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Thursday, September 10, 2009
वक्त से आगे वक्त से पीछे
बहुत भागा ...... वक्त के साथ हो लूँ। लेकिन हमेशा पीछे छूट जाता हूँ। वक्त से हारने पर, अपने को सताता हूँ। लेकिन अब मैने वक्त के पीछे दोड़ना छोड़ दिया है। उस से मुँह मोड़ लिया है। अब वक्त पर बिछोना बिछा कर उस पर लेट गया हूँ। वक्त जहां चाहता है , मुझे ले जाता है। अब मुझे वक्त नही सताता है।
SACH KAHA ..... VAQT KI PEECHE BHAAGNE SE KUCH NAHI HAANSIL HOTA .... SANAY KE SAATH SAATH, USKE BAHAAV MEIN BAHNAA HI JEEVAN KI SAARTHAKTA HAI ,........ SUNDAR KAVITA HAI
कमाल कर दिया बाली.....नहीं...बल्ले बल्ले. यार, बहुत दमदार रचना है. मन नाच उठा. इतनी जबर्दस्त मनोवैज्ञानिक कविता है की तारीफ के लिए शब्द नहीं मिल रहे हैं. मुझे लगता है यह आपसे हुई नहीं, आप पर उतरी है.
barhi mushkil se tippani ka column mila to hindi bhasha ka tool nahi mila. Kavit itni sunder hai ki Hindi pakhwada jo jagah jagah nazar aata hai , main shaamil hote to yakinan pratham puruskar milta. Abhi to sarvotam kavita ki badhayee sweekar kijie.
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great efforts, good words...
ReplyDeleteक्या बात है..बहुत उम्दा!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteAB MUJHE WAQT NAHI SATATA HAI..
ReplyDeletewah!
bahut sundar baali sahab ...
अब मैंने वक्त के पीछे दोड़ना छोड़ दिया है,
ReplyDeleteउससे मुंह मोड़ लिया है।
बहुत बढ़िया परमजीत भाई, बहुत खूब।
SACH KAHA ..... VAQT KI PEECHE BHAAGNE SE KUCH NAHI HAANSIL HOTA .... SANAY KE SAATH SAATH, USKE BAHAAV MEIN BAHNAA HI JEEVAN KI SAARTHAKTA HAI ,........ SUNDAR KAVITA HAI
ReplyDeleteवक्त को आगे से पकड़ो मित्र! दास बन जायेगा!
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना है......
ReplyDeleteवहुत सुंदर रचना,आप का धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !!!!!!!!1
ReplyDeletewaah waah...........lajawaab.
ReplyDeletewaqt ko kar mutthi mein
jisko jeena aa gaya
samjho wo hi zindagi ko
paa gaya
behad dil ko choone wali rachna.
read my new blog--http://ekprayas-vandana.blogspot.com
बहुत बडिया रचना है वक्त के बिछैने पर तो बैठना ही पडता है कितना भी भाग लो इस से आगे नहीं निकल सकते शुभकामनायें
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeleteकमाल कर दिया बाली.....नहीं...बल्ले बल्ले. यार, बहुत दमदार रचना है. मन नाच उठा. इतनी जबर्दस्त मनोवैज्ञानिक कविता है की तारीफ के लिए शब्द नहीं मिल रहे हैं. मुझे लगता है यह आपसे हुई नहीं, आप पर उतरी है.
ReplyDeletewaqt ke upar aapne bahut achcha likha hai.......
ReplyDeleteअब मुझे वक्त नहीं सताता है,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
कितना सहज हो गया सब कुछ.
ReplyDeleteबहुत अच्छे.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
Bali ji,
ReplyDeletebahut hee sundar aur arthapoorna kavita hai apakee.badhai sveekaren.
HemantKumar
बहुत ही सुन्दर सरल और सहज शब्दों में लिखी गयी कविता----
ReplyDeleteपूनम
barhi mushkil se tippani ka column mila to hindi bhasha ka tool nahi mila. Kavit itni sunder hai ki Hindi pakhwada jo jagah jagah nazar aata hai , main shaamil hote to yakinan pratham puruskar milta. Abhi to sarvotam kavita ki badhayee sweekar kijie.
ReplyDeletewah wah !!
ReplyDeletenishabd kar diya aapki rachna ne...