हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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Monday, November 2, 2009
यह अंधविश्वास नही है.....
(गुगुल से साभार)
भूत होते हैं....
कोई भी विश्वास बिना कारण नही बनता।यदि ऐसा होता है तो संभव है वह विश्वास कभी ना कभी कमजोर साबित हो ही जाएगा। जब आप बीमार होते हैं तो किसी चिकित्सक को खोजते हैं...आप को जो ठीक कर देता है वही योग्य चिकित्सक हो जाता है।भले ही जिसने आपको ठीक किया है वह वास्तव में झोला छाप चिकित्सक ही क्यों नाहो।आप की नजर मे वह एक योग्य चिकित्सक की छवि बना लेता है। कहने का मतलब यह है कि यह जरूरी नही है कि आप जो बात विश्वास से कहते हैं वह सही हो....क्योंकि हम निरन्तर कुछ नया सीखते रहते हैं...जब हमे पता चलता है कि हम जिस पर विश्वास कर के बैठे हुए थे...वह वास्तव में सही नही था....तो आपको फिर नये ढंग से विचार करना पड़ता है पुन: अपनी बात पर गौर करना पड़ता है।यह सब इस लिए कह रहा हूँ की संभंव है आज जो लोग तंत्र-मंत्र, भूत-प्रेत आदि के अस्तित्व को नकारते है,उसे अंधविश्वास कहते हैं। भविष्य मे वही इस की खोज में जुट जाए....दूसरी और जो इस पर विश्वास करते हैं संभव है वह इसे भविष्य में अपनी नासमझी मानने लगें। इस बात का निर्णय होनें में बहुत लम्बा समय लगने वाला है। सत्य क्या है यह अभी भविष्य के गर्भ मे छुपा हुआ है।लेकिन आज जिसे अंधविश्वास माना जाता है वह तंत्र मंत्र व भूतो के जानकारों का विश्वास बना हुआ है।
मेरी पिछली पोस्ट भूत होते हैं.... पर मैनें लिखा था कि इस विषय पर बाद मे लिखूँगा। वास्तव में बहुत से लोग ऐसी बातों को अंधविश्वास के रूप मे ही देखते हैं। लेकिन यहाँ पर यह बात देखने वाली है कि क्या आप ऐसे जानकार लोगो से कभी मिले हैं ?....आप ऐसे जानकार कितनें लोगों से मिले हैं ?....संभव है ज्यादातर ऐसे लोग होगें जो ऐसे लोगो से मिले ही नही होगें।....बस उन्होने सुनी सुनाई बाते दोहराना शुरू कर दिया है कि यह सब बेकार के ढ्कोसले हैं। इन बातों का कोई सार नही है। उन मे एक ही चाह है कि कोई उन्हें अंधविश्वासी या मानसिक रोगी ना मानले।लेकिन जो लोग ऐसी समस्याओ से पीड़ित रहे हैं ,भुगत भोगी है। उन्हें ऐसी बातों पर पूरा विश्वास है। भले ही आधुनिकता व अपने आप को बुद्धिमान मानने वाले इन्हें किसी ना किसी मानसिक रोग से ग्रस्त मानते रहे। यहाँ यह नही कहना चाहता कि मानसिक रोग नही होते.....वह भी होते हैं जो दवा दारू से ही ठीक होते हैं......लेकिन इसबात से इंन्कार भी नही किया जा सकता कि कुछ समस्याएं मात्र मंत्र-तंत्र या भूतादि से संबधित भी होती हैं। जिनका ईलाज इन विधाओ के जानकारों के पास ही संभंव होता है।
यहाँ एक बात कि ओर और ध्यान दिलाना चाहूँगा...जिस प्रकार आज असली चिकित्सकों के साथ झोलाछाप चिकित्सकों की भरमार है....उसी तरह ऐसे जानकारों में बहुधा ऐसे लोग हैं जो इस विषय की कोई जानकारी नही रखते....लेकिन उन की दुकानें उसी तरह चल रही हैं जैसे हमारे यहाँ झोलाछाप चिकित्सकों की चलती हैं। इस कारण से भी कई लोग ऐसी बातो पर विश्वास नही करते।लेकिन ऐसी बातों से चिकित्सक व ऐसे जानकारों की विश्वसनीयता कम नही हो जाती।
भूतादि व तंत्र-मंत्र पर विश्वास मात्र हमारे देश में ही नही सारी दुनिया मे ऐसे लोग आप को मिल जाएगें जो इन पर विश्वास करते हैं। हमारे कुछ बुद्धिजीवी भाई बहन ऐसा भी मानते है कि ऐसी बातों पर विश्वास करने वाले अधिकतर अनपढ़ या गरीब तबके के लोग ही ज्यादा होते हैं। लेकिन विदेशों में पोप या सम्मानित फादर को भी आप इनसे पीड़ित लोगों का ईलाज करते पा सकते हैं और यह देश विकसित देश हैं।बाइबल हिन्दू धर्म ग्रंथों व कुरआन में इन से छुटकारा पानें के लिए अनेक प्रार्थनाएं व कलमे मौजूद हैं। ऐसे में आप क्या इन्हें अंधविश्च्वास कहेगें। अपने विचार जरूर बताएं। शेष फिर किसी पोस्ट मे लिखूँगा।
भूत हों या न हों हां, ये बात है कि इनपर विश्वास पूरी दुनिया में चारों तरफ किया जाता है
ReplyDeleteपरमजीत जी - मेरा मानना है कि भूत होता है अगर नहीं तो हमारे एक ब्लागर साथी अपना नाम भूतनाथ कैसे लिखते? -- हा-हा-हा--।
ReplyDeleteतर्क संतुलित है यहाँ अच्छा लगा प्रयास।
भूत-प्रेत अस्तित्व में अलग अलग विश्वास।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
क्या सच है और क्या अंधविश्वास ये सब अपनी व्यक्तिगत सोच होती है..परंतु ज़्यादातर हमने अंधविश्वास देखा है..बढ़िया चर्चा..धन्यवाद!!
ReplyDeleteमुjझे लगता है कि ये विषय केवल आस्था से जुदा हुया है और आस्था एक ऐसी चीज़् है कि जो आप देखना महसूस करना चाहें वो आपको उसी तरह की अनुभूतियाँ देती है। जैसे हम किसी के गम मे शामिल होने जायें तो हमारा मन उस तरह के सूक्षम अनुओयों को हवा से ग्रहण कर लेता है खुशी मे जायें तो उदास होते हुये भी मन ब्रह्मण्द से खुशी के अणुओं को पा लेता है इसी तरह हर आस्था हम मे उस तरह के विचार पैदा करती है। आस्था हम मी आत्मविश्वास की भावना पैदा करती है और आत्मविश्वास हमे उस काम के लिये सकारात्मक ऊर्जा देती है। बाकी बाद मे धन्यवाद्
ReplyDeleteभूत न कहकर यह कहे कि आत्माए होती है और मैं भी उनपर विश्वास करता हूँ !
ReplyDeleteअंधविश्वास के पीछे व्यक्ति की सामाजिक सोच सक्रिय रहती है ..
ReplyDeletesahi kaha aapne..........bahut badhiya lekh.
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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क्या बात है परमजीत जी !
इस मुद्दे पर तर्क नहीं हो सकता है क्योंकि भूत होने या न होने के निष्कर्ष पर किसी इन्सान के पहुंचने में आस्था, विश्वास, परिवेश, शिक्षा, व्यक्तिगत अनुभव, मानसिक स्थिति आदि आदि अनेक वेरियेबल्स होते हैं जो उसके नतीजे को प्रभावित करते हैं।
व्यक्तिगत तौर पर मैं भूत को भगवान से जोड़कर देखता हूँ...या तो दोनों का अस्तित्व है...या फिर दोनों ही झूठी परिकल्पना हैं...
parmjeet ji aapka lekh pad ka achchha lga
ReplyDeletemere agle lekh ko avshy padiega dhanyvaad
मैं अंधविश्वास नहीं मानती,आत्मा है तो उसे आप भूत कहें या आत्मा....
ReplyDeleteहाँ , बहुत लोग इसका गलत फायदा उठाते हैं और उसके तहत ना मानने वाली बातों को
मनवाते हैं ..........
अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान मैंने जाना की वो लोग भूत प्रेत में कितना विश्वाश करते हैं...हम तो उनके सामने कुछ भी नहीं...भूत होते हैं या नहीं ये नहीं पता लेकिन अगर वो होते हैं तो कम से कम मुझे ना मिलें...ये दुआ कीजिये...
ReplyDeleteनीरज
har muh ki apni baat hoti he,bhoot hote he yaa nahi is par yakeen karke kuchh kahna kathin hota he...prashn..hi prashna he...
ReplyDeleteमुझे आपकी दोनों पोस्ट पढ़कर तो यही लग रहा है कि आप किसी बात का विश्लेषण करने के बजाय अपनी जमी-जमाई धारणाओं की पुष्टि चाहते हैं बस !
ReplyDeleteप्रतिक्रियाएं भी सतही और निराशाजनक हैं !
अगर आप वाकई में सत्यान्वेषी हैं तो कृपया मेल के द्वारा संपर्क करें !
क्या बतायें जी, बहुत कुछ है जिसे हमारी तर्क शक्ति या विज्ञान नहीं सलटा पाया।
ReplyDeleteअजी भुत जेसा कुछ नही होता, वरना जिन का कत्ल होता है, वो बदला क्यो नही लेते भूत बन कर? मै नही मानता ऎसी बातो को.
ReplyDeleteधन्यवाद
हर व्यक्ति की अपनी एक सोच है...जिसे आप चाह कर भी बदल नहीं सकते । जो लोग हर वस्तु, हर विषय को विज्ञान की नजर से देखने के आदि हो चुके हैं । उन्हे ये समझ लेना चाहिए कि विज्ञान की अपनी एक सीमा हैं....यदि वो उसे लाँघना चाहे तो भी नहीं लाँघ सकता ।
ReplyDeleteमेरे विचार से सबसे बडे अन्धविश्वासी तो यही लोग हैं जो कि अपने मन की धारणाओं को ही विज्ञान का सच मान रहे हैं । मान लीजिए कल को विज्ञान ये कह दे कि पृ्थ्वी नहीं बल्कि सूर्य पृ्थ्वी के चक्कर लगा रहा है तो क्या इनमें से कोई व्यक्ति इसे निजि तौर पर प्रमाणित कर सकता है । नहीं...तब भी ये लोग स्वयं अनुभूति न करके सिर्फ वैज्ञानिकों के कथन पर ही तो विश्वास करेंगें । तो फिर अन्धविश्वासी कौन हुआ ?
प्रिय वत्स जी
ReplyDeleteआग्रह है कि कृपया अपने कथन पर मनन करें !
आपकी कही बात ही विज्ञान की श्रेष्ठता सिद्ध करती है !
वैसे भी तंत्र-मन्त्र, ज्योतिष से जुड़ा व्यक्ति बात-बात में विज्ञान का सन्दर्भ अवश्य देता है, क्यूंकि उसे हमेशा विज्ञान की बैसाखी की जरूरत होती है जबकि इसके उलट विज्ञान को आपके अटकल शास्त्र की आवश्यकता कभी नहीं पड़ती !
विज्ञान का आधार ही तर्क और संदेह है ... इसीलिये वो श्रेष्ठ है ! पुरानी लकीर को मिटाकर नए लकीर खींचने की सहमति और तत्परता ही उसकी श्रेष्ठता का प्रमाण है ! ऐसा नहीं है कि हमारे परदादा और लकड़दादा एक लकीर खींच गए थे, बस हम बैल की भाँती उसी पर चले जा रहे हैं बगैर अपना दिमाग खर्च किये ... एक इंच भी उसके दायें-बाएँ नहीं हट सकते !
और आपने जो बाल्य सुलभ बात कही है कि विज्ञान के सिद्धांतों को हम प्रमाणित नहीं कर सकते .....ठीक है .. हम नहीं कर सकते .. उसके लिए एक बहुत बड़ा समूह ... रात-दिन विभिन्न देशों में लगा हुआ है ! वो जिम्मेदार लोग हैं ... उनकी जवाबदेही होती है ! तभी हम और आप उनकी कही बातों पर यकीन करते हैं ! तभी आप दवाईयां खाते हैं ... तभी आप सर्जरी करवाते हैं ... तभी आप उनकी लेटेस्ट टेक्नोलाजी प्रयोग में लाते हैं !
प्रमाणित तो आपकी बिरादरी नहीं कर सकती अपनी कही एक भी बात ! तब आप आस्था और श्रद्धा की दुहाई देने लगते हैं !
हड्डियों के ढांचे से निर्मित और चमड़ी से सुशोभित मनुष्य से बड़ा भूत और कौन हो सकता है....
ReplyDeleteTantra andhvisvash hota hai na ki mantras
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