सच तो मैं भी बोल रहा हुँ।
सच तो तुम भी बोल रहे हो।
अपने अपने सच दोनों के,
दोनों को क्यों तौल रहे हो ?
जो मैने भुगता, उस को गाया।
जो तूने भुगता, उसे सुनाया।
दोनो अपनी अपनी कह कर,
अपना सिर क्यों नोंच रहे हो।
सुन्दर फूलो के संग अक्सर,
काँटे मिल ही जाते हैं।
काँटों मे भी फूल खिले हैं,
कह कर क्युँ , शर्माते हैं।
फूलों पर भँवरें मंडराएं, या
तितलीयां अपना नेह लुटाएं।
इक दूजे के पूरक बनकर
क्युँ ना ये संसार सजाएं।
बदली के संग पानी रहता।
फूलो संग गंध महक रही है।
शिव शक्ति से बनी सृष्टि ये,
फिर क्युँकर अब बहक रही है ?
जिस पथ पर चलना चाहता मैं।
उसी पथ के तुम, अनुगामी हो।
आगे रहने की अभिलाषा मे,
क्युँ काँटो को बिखराते हो।
आओ मिल कर साथ चलें हम।
अपने को कब खोल रहे हो?
सच तो मैं भी बोल रहा हुँ।सच तो तुम भी बोल रहे हो।
सबका सच होता अलग कही पते की बात।
ReplyDeleteसाथ रहे काँटे सुमन करे नहीं प्रतिघात।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत सही!! वाह!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना---प्रकृति के माध्यम से जीवन का सन्देश देती हुयी।
ReplyDeleteहेमन्त कुमार
nice
ReplyDeletebबाली जी बहुत ही अच्छी कविता है
ReplyDeleteबादल संग पानी रहता है फूलों संग महक
शिव शक्ति से बनी सृ्ष्टी से फिर क्यों मुह मोड रहे हो
बहुत सुन्दर और सही संदेश देती कविता। वैसे भी औरत और पुरुष एक गाडी के दो पहिये हैं मिल कर चलने मे ही सुख है धन्यवाद
पहली पंक्तियों ने ही दिल को छू लिया....
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता....
वाह... वाह... बाली साहब!
ReplyDeleteबहुत ही दिलकश गजल पेश की है जी!
बधाई!
जो मैंने भुगता उसको गाया
ReplyDeleteजो तूने भुगता उसे सुनाया !
दोनों अपनी अपनी कहकर
अपना सिर क्यों नोच रहे हो ?
बहुत खूब !
सच तो मैं भी बोल रहा हूँ --बहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteसच्चा संदेश , दिल की बात सीधे शब्दों में
ReplyDeleteअति सुन्दर...
ReplyDeleteशिव शक्ति से बनी सृष्टि ये..........
ReplyDeleteवाह सुंदर
न बोले तुम न मैंने कुछ कहा ........
ReplyDeletesach me sach kah diya apne..
ReplyDeleteShubhakamnaye..
सही बिल्कुल सही : आगे निकलने की अभिलाषा में क्यों कांटे बिखराते हो
ReplyDeleteअहिंसा का सही अर्थ
बहुत लाजवाब रचना है ...... अच्छी लगी .........
ReplyDeleteमै भी सच ही बोल रहा हूँ........
ReplyDeleteलाजवाब लिखा है आपने.......
हर पंक्ति एक रिश्ते के आशय को समाहित किये हुए है..
Bahut umda.Prakriti aur bhavon ka achchha samanjasya.
ReplyDeletePoonam
वाह बहुत सुन्दर रचना,
ReplyDeleteबधाई स्वीकारिये
bohot badiyaaaa
ReplyDeleteपसंद आई आपकी यह रचना शुक्रिया
ReplyDeleteबहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में
ReplyDeleteसच बहुआयामी होता है! बढ़िया सोच।
ReplyDeleteपरम जीत जी बहुत ही सुंदर ओर भाव से भरी है आप की यह रचना.
ReplyDeleteधन्यवाद
सच कहा आपने। सबके अपने अपने सच होते हैं। बहुत अच्छी अभिव्यक्ति है
ReplyDeletekitni sundar aur saral abhivyakti....waah.....
ReplyDeleteSahi kaha, har vyakti ka sach alag alag hota hai.
ReplyDelete--------
2009 के श्रेष्ठ ब्लागर्स सम्मान!
अंग्रेज़ी का तिलिस्म तोड़ने की माया।
bahut sarthk lgi aapki yah rachna
ReplyDeleteमन के टूटे तारो को
ReplyDeleteछूटे हुए सहारों को
बादल राग भी
जुड़ा नही पाता
बस अब
एक कतरा
जिन्दगी कि धूप दे दो |
प्रिय ब्लॉगर बंधू,
ReplyDeleteनमस्कार!
आदत मुस्कुराने की तरफ़ से
से आपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
Sanjay Bhaskar
Blog link :-
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
बहुत सुंदर बाते कही आपने .. अच्छी रचना है !!
ReplyDeletepunha: padha.nice
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव, बाली जी!
ReplyDeleteबहुत खूब ...अच्छा है ।
ReplyDeleteबदली संग पानी रहता है
ReplyDeleteफूलों संग गंध महक रही है
शिव शक्ति से बनी सृ्ष्टी ये
फिर क्यूँकर ......
बहुत सुंदर भाव बाली जी .....!!
बहुत सुंदर परमजीत जी..
ReplyDeleteकाट देना ये ज़बान सच तो मुझे कहने दो...
बहुत सुंदर...आपकी ये कविता हर मकान में भेजी जानी चाहिए..
ReplyDelete
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता....