बिना कारण कुछ भी तो नही होता.....समस्याए पैदा ही तभी होती हैं जब कोई कारण हो।..यदि समय रहते उस कारण को दूर कर दिया जाए तो यह अंसभव है कि वह समस्या ज्यादा देर टिक पायेगी।क्यों कि कोई बाहरी दुश्मन तभी किसी देश मे हस्तक्षेप कर सकता है जब उसको वहाँ कोई छिद्र नजर आता है.......लेकिन यहाँ तो छिद्र ही नही पूरा हिस्सा ही गायब है......ऐसे में अपनी गलती को दूसरों के सिर मड़ कर हम पाक साफ नही हो सकते। आज जो पुरानी बुझी चिंगारीया फिर से सुलगती नजर आ रही हैं...उस का कारण भी यही है.....हम ऐसा मौका ही क्यों दे कि कोई हमारे घर मे आग को भड़काने का काम कर सके।अपने घर की अखंडता को कायम रखने के लिए यह बहुत जरूरी है कि सभी को निष्पक्षता के साथ न्याय प्राप्त हो।तभी बाहरी ताकतो को अपने घर मे दखल देने से रोका जा सकेगा।वर्ना उन्हें हमारे घरवालों को उकसाने का एक बहाना मिल जाएगा।वे कह सकते हैं कि देखो तुम्हारे साथ कैसा सौंतेलापन किया जा रहा है......तुम्हे इस के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। ऐसे मे किसी को बरगलाना कितना आसान होता है यह आसानी से समझा जा सकता है।लेकिन हम क्या कर रहे हैं?....असली कारण को समझे बिना टहनीयों को काटने मे लगे हुए हैं या हमेशा टहनीयों को ही काटते रहते हैं। यदि हम अपने घर को मजबूत कर ले तो बाहर से पत्थर मारने वालों के पत्थर हमारा कुछ भी नही बिगाड़ सकते।इस लिए सब से जरुरी है कि अपने घर वालो को उन के साथ हुई ज्यादतीयों को निष्पक्ष हो कर सुलझाया जाए। उन्हें निष्पक्ष न्याय मिले।हमारे देश की न्याय प्रणाली में कोई खामी नही है.....लेकिन राजनैतिक दखलांदाजी उसे इतना अधिक प्रभावित कर देती है.कि..न्याय मिलने तक, न्याय पाने वाला, न्याय मिलने की उम्मीद ही छोड़ देता है....या फिर जब न्याय मिलता है तो इतने देर से की उसका कोई महत्व ही नही रह जाता।
दूसरी ओर अपने निहित स्वार्थो के कारण ऐसे मामलो को अपने राजनैतिक लाभ के लिए इस्तमाल करने की प्रवृति के कारण देश को बहुत नुकसान उठाना पड़ता है। देश को जाति और भाषा के नाम पर बाँटना और अपने वोट बैंक को बनाये रखने की खातिर सही समय पर उचित कदम ना उठाना जैसी प्रवृति को दूर किए बिना देश सुरक्षित नही रह सकता।अत: जब तक ऐसी बातों पर अंकुश नही लगेगा तब तक बाहरी दुश्मनों को अपने देश के अदंर घुसपैठ करने से रोकने की कोशिश पूरी तरह कामयाब होनी बहुत असंभव लगती है। ऐसी प्रवृतियों के चलते देश के भीतर ही हम ऐसा माहौल तैयार कर रहें है जो अतंत: देश के लिए अहितकर साबित होगा।समय रहते ही सचेत हो जाने मे समझदारी है।
आप सोच रहे होगें कि कवितायें लिखते लिखते यह सब क्या लिखने लगा....लेकिन यह सब लिखने का कारण एक खबर है जिस कारण यह सब लिख मारा।सुना है कि सिख आतंकवाद को सीमा पार से शह दी जा रही है। यह बयान गहलोत जी ने दिया है।
इन्ही बातों को पढ़्ते पढ़ते कुछ पंक्तियां मन मे मडरानें लगी ।अत: यहाँ लिख दी।
बुझी चिंगारीयों को
फिर से हवा मिल रही है..
जंगलो मे फिर से
जहरीली घास खिल रही है।
मगर यह हो रहा है क्यों...
सोचना ही नही चाहते,
न्याय जिसको मिला ना हो
चोट वही उभर रही है।
मिलता है दुश्मनो को बहाना
अपना बन उकसाने का।
किये अन्याय को अपने
दुनिया से छुपाने का।
ना कोई दोष दो दूजों को
बीज तुमने ही बोये हैं,
तुम्हे भाता बहुत है खेल ये
सब को सताने का।
समझदारी इसी मे है
अपने स्वार्थ को छोड़ें।
देश हित सबसे पहले हो
बाकी बातें सब छोड़ें।
हो व्यवाहर ऐसा आपस मे
स्वयं से करते हैं जैसे,
चलो बुरे लोगो के मिलकर
आज दाँत हम तोड़ें।
....संदेशपूर्ण रचना,बधाई !!!
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति, परमजीत..आनन्द आ गया.
ReplyDeleteबहुत अच्छी उद्देश्यपूर्ण रचना !!
ReplyDeleteहर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeletesamyik rachna.
ReplyDelete"अच्छा लिखा...."
ReplyDeleteप्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com
वट एन आडिया सर जी... सुन्दर संदेश
ReplyDeletepahli baar aapke blog par aaya hun, or bahot hi achha lag padhkar, ab koshish rahegi ki hamesha hi aata rahun, dhnyabad
ReplyDeleteसर्वथा सार्थक बात कही है। बढ़िया।
ReplyDeletesarthak rachana...............Bahut acchee lagee ...........
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सन्देश दिया है आपने अपनी रचना के माध्यम से शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा है आपने. बात सही है, सोने से ये बिल्ली चली नहीं जाने वाली, सरकार को समय रहते चेतना होगा.
ReplyDeleteअपना स्वार्थ छोड़ कर देश के हित की बात आज कौन सोचता है ...... अगर हर भारत वासी देश की बात करने लगे तो कोई भी हमारा बॉल बांका नही कर सकता .... अच्छी रचना है आपकी ... दिल की आवाज़ है .......
ReplyDeleteआदरणीय बाली जी, बहुत सामयिक बातें उठायी हैं आपने अपने लेख में ----और आपकी कविता भी बहुत सुन्दर लगी। हार्दिक शुभकामनायें। पूनम
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