(by shiknet)
दिल कहीं पर जल रहा और कहीं दीप है,
तेरी मेरी कोई ना जानें ये कैसी प्रीत है।
तू हमेशा प्रश्न मुझ पर दागता रहता सदा,
मै हमेशा बहता हूँ जिस ओर चलती है हवा।
बस मे मेरे अब नही, चलता नही कोई जोर है,
मै गुलामी कर रहा चारों तरफ यह शोर है।
वक्त के हाथों बिका हूँ जानता हूँ मैं यहाँ,
छोड़ दूँ कैसे तुम्हें कोई नही मेरा यहाँ।
हर कोई फिरता अकेला जिन्दगी की रीत है।
दिल कहीं पर जल रहा और कहीं दीप है,
तेरी मेरी कोई ना जानें ये कैसी प्रीत है।
सोचता होगा जमाना बात किस की कर रहा,
किस की चाहत में यहाँ कोई अकेला मर रहा।
हर किसी का है कोई इक दिल में अपने झाँक ले,
कर प्रतीक्षा आ ही जाएगा पास तेरे साँझ में।
वैसे तो वो पास ही तेरे रहता है सदा,
हँसता रहता है वो तुझ पर, देख खोजी की अदा।
पास है जो, दिखती नही इन्सान को वह चीज है।
दिल कहीं पर जल रहा और कहीं दीप है,
तेरी मेरी कोई ना जानें ये कैसी प्रीत है।
दिल का जलना तो अँधेरा बढ़ाता है ।
ReplyDelete"बहुत शानदार पँक्तियाँ ....."
ReplyDeleteबहुत बढिया जी,
ReplyDeleteकुंवर जी,
क्या बात है आज तो कुछ एकदम अलग आध्यात्म की दुनिया की सैर करा दी. एक प्रेरणा दायक पोस्ट अच्छी लगी. सकारात्मक उर्जा के लिए धन्यवाद
ReplyDeletebaali ji
ReplyDeleteaaj aapki rachan padhkar man apne hi bheetar ki khoj me lag gaya .. bahut hi adhayatmik si rachna lagi mujhe ... mera naman aapko ..
vijay
...बेहतरीन रचना!!!
ReplyDeleteये तो दुनिया की रीत है ... बहुत अच्छा लिखा है ...
ReplyDeletevery nicely written
ReplyDeleteबहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर। ऊपर वाले को याद करने के भाव में रचना उत्तम ही बनती है।
ReplyDeletebahut achhi kavita hai. Jari rakhen
ReplyDeleteइंसान के वश में कुछ भी नहीं फिर भी वो सोचता है की वो सबकुछ कर सकता है....
ReplyDeleteबहुत ही संदर कविता आपकी ...अपने वजूद के बारे में कुछ सोचने को विवश कर रही है..
सुन्दर प्रस्तुति...
बाली जी क्या बात है ......आज तो दिल की बात हो रही है .....???
ReplyDeleteदिल जलता है तो जलने दे आंसू न भा फ़रियाद न कर ......
बहुत ह्रदय स्पर्शी रचना...बधाई
ReplyDeleteनीरज