हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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Saturday, June 26, 2010
एक भीगी - सी याद..- पिताजी की पुण्य तिथि पर...
नींद उड़ जाती है जब जिक्र तेरा होता है।
अकेला जब होता है दिल, बहुत रोता है।
उदास रातों मे अक्सर नजर आता है तू,
ये हादसा क्यूँ बार बार, मेरे संग होता है।
कौन देगा जवाब अब ,मेरे सवालों का,
तू अब चैन से बहुत दूर कहीं सोता है।
मेरे हरिक दुख को सुख मे बदलने वाले,
इतना नाराज कोई, अपनो से होता है।
या खुद आ या बुला मुझको पास अपने,
परमजीत से अब नही इन्तजार होता है।
Monday, June 7, 2010
कुछ लघु कविताएं- क्षणिकाएं
अबला
जब तक तुम
अपने आप को
दूसरों के दर्पण मे
देखना चाहोगी।
तुम अबला ही कहलाओगी।
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प्रेम या कर्ज
तुम को सँवारनें मे
मैने अपना जीवन
होम कर दिया।
अपनी खुशीयां देकर
तुम्हारा गम लिआ।
वह प्रेम था तो.....
इस बात को भूल जाओ।
कर्ज था तो....
अपनी गलती पर पछताओ।
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चालाकी
सच
कड़वा या मीठा
नही होता।
भाव उन्हें बना देते हैं।
सच कड़वा हो तो...
दूसरों के लिए।
मीठा हो तो...
अपना समझ खा लेते हैं।
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