हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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Monday, June 7, 2010
कुछ लघु कविताएं- क्षणिकाएं
अबला
जब तक तुम
अपने आप को
दूसरों के दर्पण मे
देखना चाहोगी।
तुम अबला ही कहलाओगी।
*******************
प्रेम या कर्ज
तुम को सँवारनें मे
मैने अपना जीवन
होम कर दिया।
अपनी खुशीयां देकर
तुम्हारा गम लिआ।
वह प्रेम था तो.....
इस बात को भूल जाओ।
कर्ज था तो....
अपनी गलती पर पछताओ।
*****************************
चालाकी
सच
कड़वा या मीठा
नही होता।
भाव उन्हें बना देते हैं।
सच कड़वा हो तो...
दूसरों के लिए।
मीठा हो तो...
अपना समझ खा लेते हैं।
************************
आपने निःशब्द कर दिया....
ReplyDeleteअच्छी क्षणिकाएं !!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर व सारगर्भित कवितायें ।
ReplyDeleteवाह वाह बहुत सुंदर जी
ReplyDeleteक्या बात है..उम्दा क्षणिकायें!! कम शब्दों में पूरी और बड़ी बात!
ReplyDeleteसुन्दर क्षणिकाएँ
ReplyDeleteकम शब्दों में सटीक वास्तविकता बयान की बाली साहब ! हार्दिक शुभकामनायें !!
ReplyDeleteक़र्ज़ और प्रेम.. क्या बात है
ReplyDeleteसुन्दर क्षणिकाएं...
ReplyDeleteसुन्दर.
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति बहुत गहरी बातें अच्छी क्षणिकाएं
ReplyDeleteबढिया क्षणिकाएं....
ReplyDeletesach meetha ho to apna samajh kha lete hain........:)
ReplyDeletesaari ki saari ek se badh kar ek...!!
तल्ख लेकिन ईमानदार. बधाई.
ReplyDeleteमहफ़ूज़ भाई नि:शब्द ही नहीं स्तब्ध भी
ReplyDeleteपर मेरी ओर से वाह वाह वाह वाह
जब तक तुम
ReplyDeleteअपने आप को
दूसरों के दर्पण मे
देखना चाहोगी।
तुम अबला ही कहलाओगी।
gagar me sagar.badhai.
अच्छी प्रस्तुति........बधाई.....
ReplyDeleteParamjeet bhai, blogchintan men shanivar ko aap ka blog shamil kar rahe hain
ReplyDeleteतीनो क्षणिकायें एक से बढ कर एक हैं पहली ने तो निश्बद कर दिया
ReplyDeleteशुभकामनायें
तीनोंक रचनायें बहुत सुन्दर और अर्थपूर्ण हैं.
ReplyDeleteयह जानकर बहुत खुशी हुई कि आप देर से सोते हैं और देर से उठते हैं। अति उत्तम। मैं भी इसी श्रेणी का निशाचर हूं।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर क्षणिकाएँ..
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