हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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Wednesday, August 4, 2010
दिल लगा के समझे....
दिल लगा के समझे गम है क्या बला
मगर बस मे कहाँ किसी के दिल कभी रहा।
आईनों के शहर मे वो सूरत करें तलाश
हर आईना अलग है ,यहाँ कौन कब मिला।
जिसे मानते थे अपना हमको गरूर था
वही छोड़ हमको चल दिए सदा कोई कब रहा।
सोचा था याद अब ना तुमको कभी करेगें
किस से करें शिकायत दिल बस मे कब रहा।
कहने को जी रहा है हर शख्स यहाँ खुश है
परमजीत उनसे पूछो कैसे खुश कभी रहा।
अच्छी व भावपूर्ण रचना |बधाई
ReplyDeleteआशा
आईनों के शहर मे वो सूरत करें तलाश
ReplyDeleteहर आईना अलग है ,यहाँ कौन कब मिला।
वाह बाली साहब बहुत सुंदर गजल कही आप ने धन्यवाद
आईनों के शहर मे वो सूरत करें तलाश
ReplyDeleteहर आईना अलग है ,यहाँ कौन कब मिला।
बहुत अच्छी लगी आपकी ये पोस्ट
कितनी सहजता से कह दिया कितना कुछ
आईनों के शहर मे वो सूरत करें तलाश
ReplyDeleteहर आईना अलग है ,यहाँ कौन कब मिला।
आइनो को आइने दिखाते हैं आइने
दिल लगा के समझे गम है क्या बला
ReplyDeleteमगर बस में कहाँ किसी के दिल है कभी रहा
हा...हा.....हा......!!
अब इसक किया है तो सब्र भी कर
इसमें यही कुछ होता है ...........!!
भावपूर्ण रचना |
ReplyDeletebahut khub............kya rachna hai..:)
ReplyDeleteआईनों के शहर मे वो सूरत करें तलाश
ReplyDeleteहर आईना अलग है ,यहाँ कौन कब मिला।-----------------वैसे तो पूरी गजल ही बड़ी खूबसूरती से रची गयी है पर इन पक्तियों की बात ही निराली है।
बहुत खूब बाली जी,
ReplyDeleteआनंद आ गया ! शुभकामनायें
wah wah kya bat hai sundar rachna
ReplyDeleteBhaut sundar bhav ..bahut2 badhai..
ReplyDeleteपहले तो बहुत दिनों बाद आने के लिये क्षमा चाहती हूँ। अक़पकी रचना दिल को छू गयी
ReplyDeleteआईनों के शहर मे वो सूरत करें तलाश
हर आईना अलग है ,यहाँ कौन कब मिला।
वाह लाजवाब। शुभकामनायें
जिसे मानते थे अपना हमको गरूर था
ReplyDeleteवही छोड़ हमको चल दिए सदा कोई कब रहा।
बहुत खूब !
yeh dil gar vash mein kambhaqt ho jaye to itni bhav pun rachanye kon karega .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
ReplyDeleteबहुत खूब ....
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