हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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Monday, October 25, 2010
Monday, October 11, 2010
काश! ऐसा हो सकता..............
हम वहीं हैं हम जहाँ थे इक कदम बढ़ पाये ना।
आँख का पानी तो सूखा सुख के बादल छाये ना।
हक के लिये जिसके, यहाँ इंसान देखो लड़ रहा,
दिल मे रहता है सभी के ये समझ उसे आये ना।
*********************************
जब भी
आकाश की ओर देखता हूँ
उसे मुस्कराता ही पाता हूँ
ना मालूम किस बात पर
वह इस तरह मुस्कराता है ?
जरा तुम भी सोचना....
मैं भी सोच रहा हूँ.......
वह किस घर मे समा सकता है??
यहीं सोच-सोच कर
अपना सिर नोंच रहा हूँ।
*************************
यदि मेरे बस मे होता
ये मंदिर,मस्ज़िद,
गिरजे ,गु्रूद्वारे।
इस धरती से हटवा देता।
उस राम का,खुदा का,
निरंकार और जीसस का,
एक सुन्दर -सा घर
तेरे दिल मे बनवा देता।
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आँख का पानी तो सूखा सुख के बादल छाये ना।
हक के लिये जिसके, यहाँ इंसान देखो लड़ रहा,
दिल मे रहता है सभी के ये समझ उसे आये ना।
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जब भी
आकाश की ओर देखता हूँ
उसे मुस्कराता ही पाता हूँ
ना मालूम किस बात पर
वह इस तरह मुस्कराता है ?
जरा तुम भी सोचना....
मैं भी सोच रहा हूँ.......
वह किस घर मे समा सकता है??
यहीं सोच-सोच कर
अपना सिर नोंच रहा हूँ।
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यदि मेरे बस मे होता
ये मंदिर,मस्ज़िद,
गिरजे ,गु्रूद्वारे।
इस धरती से हटवा देता।
उस राम का,खुदा का,
निरंकार और जीसस का,
एक सुन्दर -सा घर
तेरे दिल मे बनवा देता।
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