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Saturday, March 5, 2011

किस से कहे कोई......




किस से कहे कोई यहाँ आज दिल की बात को।
हर कोई छुपा करके बैठा है.. दिल मे  घात को।


जिसको पुकारा वह सुनके, आज तक आया नही।
देख कर दुख होता है..... ईमान की इस मात को।


हर तरफ सियार, भेड़िये, पिशाच यहाँ  दिख रहे।
दिन को अगर ये हाल है क्या होगा काली रात को।


अपने को ही आज यहाँ ....हर कोई समझा रहा।
दोष सब दूजों का है यहाँ ,समझ सारी बात को।



किस से कहे कोई यहाँ आज दिल की बात को।
हर कोई छुपा करके बैठा है.. दिल मे  घात को।

25 comments:

  1. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द ...।

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  2. हर तरफ सियार, भेड़िये, पिशाच यहाँ दिख रहे।
    दिन को अगर ये हाल है क्या होगा काली रात को।
    bahut sahi

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  3. अपने को ही आज यहाँ ....हर कोई समझा रहा।
    दोष सब दूजों का है यहाँ ,समझ सारी बात को।

    सही कहा है । उत्तम विचार ।

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  4. नहीं ज्ञात, मन में सब अपने,
    कितने गहरे भाव छिपा कर बैठें हैं।

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  5. अपने को ही आज यहाँ ....हर कोई समझा रहा।
    दोष सब दूजों का है यहाँ ,समझ सारी बात को।


    kya kahne hain....bahut pyari soch..!

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  6. बहुत ही सुंदर जी धन्यवाद

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  7. किस से कहे कोई यहाँ आज दिल की बात को।
    हर कोई छुपा करके बैठा है.. दिल मे घात को।

    यही ज़िन्दगी के सच हैं।

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  8. अपने को ही आज यहाँ ....हर कोई समझा रहा।
    दोष सब दूजों का है यहाँ ,समझ सारी बात को।

    bahut hi achchi rachna ! badhai sweekaren !

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  9. अपने को ही आज यहाँ ....हर कोई समझा रहा।
    दोष सब दूजों का है यहाँ ,समझ सारी बात को।

    सुंदर अभिव्यक्ति..... बेहतरीन रचना

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  10. किस से कहे कोई यहाँ आज दिल की बात को।
    हर कोई छुपा करके बैठा है.. दिल मे घात को।

    बहुत ही सुंदर रचना.

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  11. हर तरफ सियार, भेड़िये, पिशाच यहाँ दिख रहे।
    दिन को अगर ये हाल है क्या होगा काली रात को ..

    सच कहा है आपने ... दिनदहाड़े ही कोहराम नचा रखा है आज ... रातें तो भयानक होती हैं ...

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  12. बदलते हुए समाज का व्याथापूर्ण चित्रण....!!

    बहुत सही शब्दों का चयन किया आपने....

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  13. किस से कहे कोई यहाँ आज दिल की बात को।
    हर कोई छुपा करके बैठा है.. दिल मे घात को।
    सच कहा
    सब दुनिया आज के युग मे मतलव की है।

    सब से कर ली दोस्ती किया न सोच विचार
    मतलव की दुनियाँ यहाँ कौन किसी का यार।

    शुभकामनायें।

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  14. हर तरफ सियार, भेड़िये, पिशाच यहाँ दिख रहे।
    दिन को अगर ये हाल है क्या होगा काली रात को।
    सभी पंक्तियाँ सुंदर .........
    आभार !

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  15. बहुत ही उम्दा रचना है.
    सलाम.

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  16. बहुत दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ...ग़ज़ल बहुत सुंदर लगी... अब वापस आ गया हूँ तो ........अब आता रहूँगा.......

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  17. ki baat hai, first 2 lines me hi aapne fod diya....cngrts.

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  18. बहुत ही सुंदर शब्दों में आज के दूषित मोहोल का ज़िक्र किया है बधाई

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  19. paramjeet ji
    bilkul shat -pratishat sahi aur yatharthparak prastuti.
    sant kabeer ji ne bhi kaha tha-----
    doshh parayadekh kar chale hasant hasant
    aapno yaad na aavai jaako aadi na ant.
    aabhar
    poonam

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  20. हर तरफ सियार, भेड़िये, पिशाच यहाँ दिख रहे।
    दिन को अगर ये हाल है क्या होगा काली रात को।
    वाह! क्या बात कही है आपने. शुभकामनाएं.

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  21. अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....

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  22. खुब सुरत शब्‍दों को पिरोया है एक अनमोल हार बन गया। आभार

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  23. परमजीत बाली जी -
    हर तरफ सियार भेड़िये पिशाच यहाँ दिख रहे
    दिन को अगर ये हाल है क्या होगा काली रात को
    बहुत ही सुन्दर रचना बेबाकी से भरी समाज को बयां करती हुयी -बधाई हो
    सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५

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