हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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Saturday, March 5, 2011
किस से कहे कोई......
किस से कहे कोई यहाँ आज दिल की बात को।
हर कोई छुपा करके बैठा है.. दिल मे घात को।
जिसको पुकारा वह सुनके, आज तक आया नही।
देख कर दुख होता है..... ईमान की इस मात को।
हर तरफ सियार, भेड़िये, पिशाच यहाँ दिख रहे।
दिन को अगर ये हाल है क्या होगा काली रात को।
अपने को ही आज यहाँ ....हर कोई समझा रहा।
दोष सब दूजों का है यहाँ ,समझ सारी बात को।
किस से कहे कोई यहाँ आज दिल की बात को।
हर कोई छुपा करके बैठा है.. दिल मे घात को।
बहुत ही सुन्दर शब्द ...।
ReplyDeleteहर तरफ सियार, भेड़िये, पिशाच यहाँ दिख रहे।
ReplyDeleteदिन को अगर ये हाल है क्या होगा काली रात को।
bahut sahi
अपने को ही आज यहाँ ....हर कोई समझा रहा।
ReplyDeleteदोष सब दूजों का है यहाँ ,समझ सारी बात को।
सही कहा है । उत्तम विचार ।
नहीं ज्ञात, मन में सब अपने,
ReplyDeleteकितने गहरे भाव छिपा कर बैठें हैं।
अपने को ही आज यहाँ ....हर कोई समझा रहा।
ReplyDeleteदोष सब दूजों का है यहाँ ,समझ सारी बात को।
kya kahne hain....bahut pyari soch..!
बहुत ही सुंदर जी धन्यवाद
ReplyDeleteकिस से कहे कोई यहाँ आज दिल की बात को।
ReplyDeleteहर कोई छुपा करके बैठा है.. दिल मे घात को।
यही ज़िन्दगी के सच हैं।
अपने को ही आज यहाँ ....हर कोई समझा रहा।
ReplyDeleteदोष सब दूजों का है यहाँ ,समझ सारी बात को।
bahut hi achchi rachna ! badhai sweekaren !
अपने को ही आज यहाँ ....हर कोई समझा रहा।
ReplyDeleteदोष सब दूजों का है यहाँ ,समझ सारी बात को।
सुंदर अभिव्यक्ति..... बेहतरीन रचना
किस से कहे कोई यहाँ आज दिल की बात को।
ReplyDeleteहर कोई छुपा करके बैठा है.. दिल मे घात को।
बहुत ही सुंदर रचना.
हर तरफ सियार, भेड़िये, पिशाच यहाँ दिख रहे।
ReplyDeleteदिन को अगर ये हाल है क्या होगा काली रात को ..
सच कहा है आपने ... दिनदहाड़े ही कोहराम नचा रखा है आज ... रातें तो भयानक होती हैं ...
बदलते हुए समाज का व्याथापूर्ण चित्रण....!!
ReplyDeleteबहुत सही शब्दों का चयन किया आपने....
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकिस से कहे कोई यहाँ आज दिल की बात को।
ReplyDeleteहर कोई छुपा करके बैठा है.. दिल मे घात को।
सच कहा
सब दुनिया आज के युग मे मतलव की है।
सब से कर ली दोस्ती किया न सोच विचार
मतलव की दुनियाँ यहाँ कौन किसी का यार।
शुभकामनायें।
हर तरफ सियार, भेड़िये, पिशाच यहाँ दिख रहे।
ReplyDeleteदिन को अगर ये हाल है क्या होगा काली रात को।
सभी पंक्तियाँ सुंदर .........
आभार !
बहुत ही उम्दा रचना है.
ReplyDeleteसलाम.
बहुत दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ...ग़ज़ल बहुत सुंदर लगी... अब वापस आ गया हूँ तो ........अब आता रहूँगा.......
ReplyDeleteki baat hai, first 2 lines me hi aapne fod diya....cngrts.
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर शब्दों में आज के दूषित मोहोल का ज़िक्र किया है बधाई
ReplyDeleteparamjeet ji
ReplyDeletebilkul shat -pratishat sahi aur yatharthparak prastuti.
sant kabeer ji ne bhi kaha tha-----
doshh parayadekh kar chale hasant hasant
aapno yaad na aavai jaako aadi na ant.
aabhar
poonam
हर तरफ सियार, भेड़िये, पिशाच यहाँ दिख रहे।
ReplyDeleteदिन को अगर ये हाल है क्या होगा काली रात को।
वाह! क्या बात कही है आपने. शुभकामनाएं.
बहुत अच्छा!
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....
ReplyDeleteखुब सुरत शब्दों को पिरोया है एक अनमोल हार बन गया। आभार
ReplyDeleteपरमजीत बाली जी -
ReplyDeleteहर तरफ सियार भेड़िये पिशाच यहाँ दिख रहे
दिन को अगर ये हाल है क्या होगा काली रात को
बहुत ही सुन्दर रचना बेबाकी से भरी समाज को बयां करती हुयी -बधाई हो
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५