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Sunday, June 26, 2011

तारीख...



कुछ तारीखे 
पहचान बन जाती है।
जो बहुत प्यारे होते हैं
जिन्हें हम असमय खोते हैं।
उन के जाने का समय
ना जाने क्यो ....
भूल नही पाता ये मन।
अपने भीतर बहुत खोजा
बस! जानना चाहता हूँ-
यह क्यूँकर होता है।
जब भी वह दिन आता है-
मन भीतर ही भीतर रोता है।
जानता हूँ.....
एक दिन सभी को जाना है।
सभी को विदाई का गीत गाना है।
फिर भी मन इस से बचना चाहता है-
यह दिन किसी को नही भाता है।
लेकिन सभी के जीवन में
यह दिन जरूर आता है।
जो आँखें भिगों जाता है।


ऐ मेरे मन! तू सच को स्वीकार ले।
नियम किसीसी के लिये नही बदलते विधान के,
क्यूँ अनजान बन कर दुखी होता है
अकेला बैठ क्यूँ रोता है?
लेकिन मैं जानता हूँ-
ये मन मेरी नही सुनेगा...
सब कुछ जान कर भी आँसू बहायेगा।
जब भी वह दिन आयेगा।
मुझे फिर बहुत सतायेगा।
फिर कोई दुख भरा गीत गायेगा।
सभी को यादें ऐसे ही सताती हैं-
कुछ तारीखे 
पहचान बन जाती हैं।

Saturday, June 4, 2011

उम्मीद....


बीती बातों का फिर .... सिलसिला चला।
करें शिकायतें किससे जब अपनों ने हो छला।

उधार खुशीयां ले कर जीये तो क्या जीये।
कसक दिलको तड़पाती रही.खुद को यूँ छला। 

हरिक आदमी देखता है ...दूजों का चहरा।
नजर बचाता है खुद से...बचा है कौन भला।

मुझे उम्मीद थी मैं भी जानूँगा एक दिन।
उम्मीद का क्यूँ इतनी देर सिलसिला चला।