हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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Saturday, June 4, 2011
उम्मीद....
बीती बातों का फिर .... सिलसिला चला। करें शिकायतें किससे जब अपनों ने हो छला।
उधार खुशीयां ले कर जीये तो क्या जीये। कसक दिलको तड़पाती रही.खुद को यूँ छला।
हरिक आदमी देखता है ...दूजों का चहरा। नजर बचाता है खुद से...बचा है कौन भला।
मुझे उम्मीद थी मैं भी जानूँगा एक दिन। उम्मीद का क्यूँ इतनी देर सिलसिला चला।
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nice poetry
ReplyDeletehttp://shayaridays.blogspot.com
sahi kaha aapne...
ReplyDeleteexcellent..!
उम्मीद का क्यूं इतने दिन सिलसिला चला........
ReplyDeleteक्योंकि शायद उसी पर दुनिया कायम है।
सुंदर अभिव्यक्ति।