अब और क्या कहे जब एतबार न हो।
किस से करें शिकायते जब बेवफा वो हो।
बस! निभाते चले गये जिन्दगी के दिन,
वो साथ थे हमारे... जैसे कोई ना हो।
इस लिए मौजूदगी उनकी नही खली,
खुद गिरे खुद उठ गये थामे भला क्यों वो।
हर बार थी उम्मीद मुझको ना जाने क्यों,
दिल में छुपे बैठें हो शायद कहीं पे वो।
जब हमने दिल की बात बताई यार को,
देखा उसने ऐसे जैसे कोई अजनबी वो हो।
अजनबी शहर में, अजनबी रास्ते।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चित्रण्।
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति , आभार
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें .
लाजवाब गजल.. अक्सर ऐसा ही होता है
ReplyDeletekam shabdo me hi apar dard ka aabhas ho jata hai. umda gazal.
ReplyDeleteऐसा ही क्यूं होता है?
ReplyDeletebali ji
ReplyDeletebahut hi badhiya v bahut hi shandaar prastuti.ke liye badhai
bahut dino baad aapke blog par aai hun aswsthta ke karan xhama kijiyega
dhnyvaad sahit
poonam
वाह! दिल की बात बताते ही अजनबी हो गये.सुंदर रचना.
ReplyDeleteबस ! निभाते चले गए जिन्दगी के दिन
ReplyDeleteवो साथ थे हमारे...जैसे कोई न हो !
बहुत सुन्दर...
"किसी का साथ भी ऐसा हो तो क्या बात है
कोई साथ न हो के भी साथ हो तो क्या बात है.."
बहुत बढ़िया...परमजीत...सॉरी...देर से आ पाया.
ReplyDeletebaali ji
ReplyDeletebahut hi behtreen dhang se aapne apne mano -bhavo ko abhivykt kiya hai.har panktiyan bahut hi achhi lagin.
bahut abhut badhai
poonam
bahut badhiyaa ....
ReplyDeleteखूबसूरत प्रस्तुति ||
ReplyDeleteनवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं