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Monday, March 19, 2012

मन की तरंग



जब रोशनी होती है
मै तुम्हें भूला रहता हूँ
जब अंधेरा होता है 
तुम याद आते हो।
क्या तुम हरेक को- 
ऐसे ही सताते हो? 
या तुम ऐसे ही आते हो 
और 
ऐसे ही जाते हो ?
बस! यही बताते हो ?
और 
हर बार की तरह
बिना मिले ही
लौट जाते हो ?
तब तो तुम मत आया करो।
मैं प्रतिक्षा करता रहूँगा।
समय तो गुजर जायेगा।


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तलाश तो सभी रहे हैं तुम्हें
अपने आस-पास
लेकिन
अपने भीतर जाने को 
कोई तैयार नही।
डर लगता है-
कहीं "मैं" ना खो जाये।
इस "मैं" ने मुझे -
कहीं का नही छोड़ा।
अजीब है ये "मैं" का घोड़ा-
कोई इससे नीचे
उतरना ही नही चाहता।

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