जब रोशनी होती है
मै तुम्हें भूला रहता हूँ
जब अंधेरा होता है
तुम याद आते हो।
क्या तुम हरेक को-
ऐसे ही सताते हो?
या तुम ऐसे ही आते हो
और
ऐसे ही जाते हो ?
बस! यही बताते हो ?
और
हर बार की तरह
बिना मिले ही
लौट जाते हो ?
तब तो तुम मत आया करो।
मैं प्रतिक्षा करता रहूँगा।
समय तो गुजर जायेगा।
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तलाश तो सभी रहे हैं तुम्हें
अपने आस-पास
लेकिन
अपने भीतर जाने को
कोई तैयार नही।
डर लगता है-
कहीं "मैं" ना खो जाये।
इस "मैं" ने मुझे -
कहीं का नही छोड़ा।
अजीब है ये "मैं" का घोड़ा-
कोई इससे नीचे
उतरना ही नही चाहता।
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ध्यान तुम्हारे साधन से अब हट न सके।
ReplyDeleteअनुपम भाव लिए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteवाह वाह वाह ……………दोनो ही शब्द रचनायें अति उत्तम और विचारणीय्। एक मे मान मनुहार तो दूजे मे सत्य के दर्शन्।
ReplyDeleteदोनों रचनाएं कमाल की हैं ...जीवन का सत्य सीधे शब्दों में कह रही हैं ...
ReplyDeleteअजीब है ये 'मैं' का घोडा ..
ReplyDeleteसटीक प्रस्तुति !!
सही कहा आपने.....
ReplyDeleteबाहर तलाशने से वो कहाँ मिलेगा जो भीतर छुपा हुआ है....!!
सुन्दर रचना और तस्वीर भी....दिल मोहने वाली..!!
क्या बा...त है ...
ReplyDeleteआपका आभार भाई जी !
बहुत सुन्दर.......
ReplyDeleteसच कहा...मैं से बाहर निकले तब तो उसको पायें...
सादर.
बहुत सच..इस मैं से बाहर कोई निकलना नहीं चाहता...सुंदर प्रस्तुति..नव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteनव संवत्सर की आपको भी शुभकामनाएं।
Deleteइस "मैं" से बाहर निकलना इतना आसान नहीं.
ReplyDeleteउत्कृष्ट रचना.
यही है आज की बात .आज का सच .कुछ अलग बात है कुछ हटके बात है इस रचना में .एक नया राग है इस रचना में
ReplyDeletesach kaha... yahi hai aaj ka sach..!
ReplyDeletebehtareen!
सचमुच अजीब है यह मै का घोडा । अंदर झांके गहरे तब तो जानें कि मै भी वही हूँ । बहुत सुंदर आध्यात्मिक रचना ।
ReplyDelete'अहम'ही दिल दिमाग पर 'मै' कहते हुए कब्जा कर बैठा है!...बहुत सुन्दर रचना!
ReplyDeleteअति सुन्दर .
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