उसका पता मालूम है
फिर भी भटकता रहता हूँ।नदी नालों में जल धार-सा,
ना जानें बन क्यूँ बहता हूँ ?
ये तलाश जन्मों जन्म से
हर शख्स देखो कर रहा ,
खुद से ही हो कर बेखबर ,
ये विरह कैसा सहता हूँ ?
____________________________________
विरह की आग हर हाल में जलायेगी,
कुछ तो ऐसा है जो खाली रहता है।
दुनिया की सारी खुशीयां चाहे बटोर लो,
दिल का इक कोना दर्द सहता है।
____________________________
हरिक दर्द की दवा नही होती ।
हरिक आँख विरह में नही रोती ।
हर तरह के लोग हैं जमाने में,
पत्थरों की मूरतें कहाँ नही होती।
__________________________________________
bahut khub .......
ReplyDeleteआभार।
ReplyDeleteढूढ़ रहा हूँ, ढूढ़ रहा था,
ReplyDeleteयाद अभी भी, यहीं मिला था।
बहुत खूब ,बहुत खूब..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ...
:-)
बेहतरीन मुक्तक.
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति.
हर तरह के लोग हैं जमाने में,
ReplyDeleteपत्थरों की मूरतें कहाँ नही होती।...........सुंदर प्रस्तुति.
हर तरह के लोग हैं जमाने में । सही कहा ।
ReplyDeleteबहुत भावप्रवण प्रस्तुति ।
hi
ReplyDeletezindgi ke rang hazaar duniya hai amir logo ki isliye humne apna name pankaj kathuria amir rakh liya hai
ReplyDeleteसच कहा आपने हमारा जीवन एक अनंत व अतृप्त तलास ही तो है. सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteउम्दा मुक्तक..
ReplyDelete