अपने-अपनें
मजहबों के लिए
एक आम आदमी
कब लड़ता है।
जब कोई
बड़ा नेता या मौलवी
उलटा-पुलटा
भड़काऊं
फतवा गड़ता है ।
आंतकवादियों की औलाद
ऎसे लोग ही पैदा करते हैं।
जिसका खामियाजा
हम सब भरते है।
जब तक
एक आम आदमी
इनके फतवों पर
अविश्वास नही करेगा।
तब तक
आदमी के भीतर का
आंतकवादी नही मरेगा।
सही लिखा है, भाई.
ReplyDeleteबहुत सही, सटीक व सुन्दर कविता लिखी है आपने । ऐसे ही लिखते रहिये ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
स्वागत है कविता के साथ. बढ़िया लिखा गया है. बधाई.
ReplyDelete