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Tuesday, May 8, 2007

बराबरी का हक

आधुनिक युग की
महिलाऒ
नितन्तर
संर्घष करती रहो।
नये-नये कानूनों को
ईजाद कर
पुरूषों पर गढती रहो।
कानूनों की मार से
नराधम पुरूष
कभी तो डरेगा।
युगों से अत्याचार करने वाला
खामियाजा तो भरेगा।
अब तो सांईस का जमाना है-
तुम्हें बराबरी का हक
जरूर मिलेगा।
वह दिन दूर नही
जब पुरूष भी
तुम्हारी तरह
बच्चा जनेगा।

6 comments:

  1. अच्छा लिखा है । हमें प्रतीक्षा है उस दिन की ।
    घुघूती बासूती

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  2. कविता पर तो मैं कुछ नहीं कह सकता मगर एक बात मेरा मानना है कि एक के हाथ से लाठी छिनकर दूसरे के हाथ में थमाना भी कोई नैतिकता नहीं है…मात्र इस द्रेश को जलाना है…महिलाओं स्तर काफी बढ़ा है मेट्रो मे तो साफ नजर आता है पर अभी गाँव में इसका सामान्य प्रसार बाकी है…।

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  3. अच्छा लिखा है आपने नहले पर दहला,..मगर फ़िर भी मै इस बात से सहमत नही हूँ मेरे देश की जो संस्कृति है हमे ये नही कहती औरत को अपनी मर्यादा को त्याग देना चाहिए,..अगर ऐसा होगा तो भारत कभी भारत नही रहेगा वैसे भी आधा भारत तो पाश्चात्य सभ्यता का शिकार हो ही चुका है,..औरत पेर मर्दों ने सदीयों से बहुत जुर्म कीये है मगर एक सच ये भी है कि किसी हद तक इसकी जिम्मेदार खुद औरत भी है,क्यूँकि औरत ही औरत की दुश्मन है,..मेरे भाई इतना जुर्म ना करो,.प्रकृति के साथ खिलवाड़ की मत सोचो,..कम से कम हमसे माँ का ओहदा तो मत छिनो,..कम से कम पुरूष औरत के आगे माँ कह कर तो सर झुकाता है,...
    सुनीता(शानू)

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  4. 'जब पुरूष भी ... बच्चा जनेगा।' विज्ञान इसे बहुत ज्लद ही, शायद अगले दस साल में सच कर देगा।

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