बाला की मनभावन बोली
उड़ते बाल पवन संग चोली
संध्या पर अंम्बर की लाली
बाला हँसती,मुख पर लाली
कैसी मुदित साँझ संग आली
ओ माँ,तुम भी हो मतवाली।
आओ आँगन मे हम खेलें
माँ का प्यार मुदित हम लेलें
माँ तुम दॊडों मै पकडूँगी
अथवा तुम संग मै झगड़ूँगी
खेलो ना इक बाजी
ओ माँ,तुम भी हो मतवाली।
किल-किल निनाद मेरा तुम देखो
चंचलता मेरी मन की पेखो
तुम हसँती तो लगता मुझको
सृष्टि सब हसँ जाती
ओ माँ,तुम भी हो मतवाली।
बचपन की यादों मे भूला
हाथ बना तेरा, मेरा झूला
थक जाती, कभी हार ना मानी
रहती सदा मुस्काती
ओ माँ,तुम भी हो मतवाली।
घर, आँगन, बर्तन और रोटी
काम खतम कर कब माँ सोती
जान ना पाई मै थी छोटी
बस रहती थी तुतलाती
ओ माँ तुम भी हो मतवाली।
बहुत सुन्दर कविता ! लिखने का ढंग सीधा सरल और सुन्दर !
ReplyDeleteघुघूती बासूती
अति सुंदर, बधाई.
ReplyDeleteबचपन की यादों मे भूला
ReplyDeleteहाथ बना तेरा, मेरा झूला
थक जाती, कभी हार ना मानी
रहती सदा मुस्काती
ओ माँ,तुम भी हो मतवाली।
बहुत सुन्दर
वाह ! बहुत अच्छी लगी आपकी ये कविता !
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