वह सड़क
जहाँ भागम भाग
रूकती ना थी।
कोई शै किसी दूसरे के लिए
झुकती ना थी।
एक दिन उसी सड़क पर
एक अन्धा
सड़क पार करने की चाहत में
बार-बार पुकार रहा था-
"कोई सड़क पार करा दो"
लेकिन उस शोर में
उसकी आवाज दब जाती थी।
उस अन्धे की आवाज
किसी को ना भाती थी।
तभी किसी का हाथ
उसके हाथ से टकराया
उसने झट उसका हाथ
अपनें हाथों मे थाम लिया।
फिर दोनों ने
वह रस्ता पार किया।
अन्धे ने कहा-
"बहुत धन्यवाद तुम्हारा"
"तुमने सड़क पार करा दी"
वह व्यक्ति हँस कर बोला-
"धन्यवाद तो मै तुम्हें कहना चाहता हूँ"
"तुमने मेरा हाथ थामा"
"मै भी एक अन्धा हूँ।"
मुझे तुम्हारा सहारा मिला
तभी तो आज यह गुल खिला।
आज एक अन्धा
दूसरे अन्धें को सड़क पार कराता है।
तभी तो कोई अपनी मंजिल तक
पहुँच नही पाता है।
मुझे यह पंक्तियां पसंद आयीं -दीपक भारतदीप
ReplyDeleteआज एक अन्धा
दूसरे अन्धें को सड़क पार कराता है।
तभी तो कोई अपनी मंजिल तक
पहुँच नही पाता है।
परमजीतजी.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से लिखा है
आज एक अन्धा
दूसरे अन्धें को सड़क पार कराता है।
तभी तो कोई अपनी मंजिल तक
पहुँच नही पाता है।
"आज एक अन्धा
ReplyDeleteदूसरे अन्धें को सड़क पार कराता है।"
कहीँ ये आंखों वाले अंधों पर व्यंग्य तो नही....?
विकास जी आप ठीक सोच रहे हैं।
ReplyDeleteबहुत खूब. चुभती हुई रचना है.
ReplyDeleteपरमजीतजी, बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteसटीक प्रहार है आज के समाज पर ,
ReplyDeleteअन्य लोगों की तरह मूझे भी अन्तिम पंक्तियां बहुत ही उत्तम लगी।
सटीक और यथार्थ
ReplyDeleteपर अच्छा है की अँधा ही अँधा को रास्ता पार करवाये
कम से कम रास्ता पार तो होगा
अंधेर नागरी, अँधा राजा,
ReplyDeleteसब आँखों वाले, पर न दिखता कोई बन्दा,
सब अंधे! रब अंधा!
संसार है एक गोरखधंधा!
बहुत ख़ूब! कटाक्क्ष बहुत पैना है ।