कुछ दिनों पहले हमारे घर के सामने वाला गटर बन्द हो गया था। मै अपने पड़ोसी के साथ उस की रिपोर्ट लिखाने उन के दफतर गया।उन्होने कहा कि हम अभी अपना आदमी भेजते हैं।उन्होने हमारे सामने ही उस व्यक्ति को हमारे साथ जाने को कहा। वह "जी साहब अभी जाता हूँ"कह कर बाहर आ गया और बैठकर बड़े इतमिनान के साथ बिड़ी सुलगा कर पीनें लगा। हम उससे बार-बार चलनें की विनति करते रहे और वह बार-बार हमे "अभी चलते हैं साहब" का वाक्य बोल-बोल कर टालता रहा।इसी तरह टाल-मटोल करते-करते उसे पौना घंटा हो गया। तभी मेरे पड़ोसी ने अपनी जेब से बीस का नोट निकाल उस के हाथ पर धरा और कहा" भाई.चलो भी। बहुत परेशानी हो रही है हमे ।"नोट हाथ मे आते ही वह उठ खड़ा हुआ।घर पहुँच कर गटर देखने के बाद वह फिर बोला- "साहब यह तो बड़ा लम्बा काम है। मेरे अकेले के बस का नही।"कुछ देर रूक कर वह फिर बोला" आप भी कुछ चाय- पानी का जुगाड़ करिए।" अपनी भी मजबूरी थी सो एक बीस का नोट हमने भी उस की हथेली पर धर दिया और उसने भी पाँच-दस मिनट मे अपना काम निपटाया और चल दिया।संयोग से अगले दिन ही उनके अफसर को हमारी गली मे किसी काम से आना पड़ा । मैने मौका देख उस व्यक्ति की शिकायत आफीसर से की।उसने उसी समय उस को बुला कर पूछा। तो उसने बड़ी सादगी से अपनी सफाई मे कहा-"साहब लोगो ने खुद ही खुश हो कर दिए थे ।"उस समय मुझे स्वर्गीय काका हाथरस जी का यह पद याद आ गया।उन से क्षमायाचना करते हुए उन का यह पद आप के लिए प्रेषित कर रहा हूँ।
प्रभू मेरे मै नहीं रिश्वत खाईं।
जबरन नोट भरे पाकिट में , करके हाथापाई।
मोहि फंसाइके,सफा निकसि गयॊ,सेठ बड़ो हरजाई।
भोजन-भजन न कछू सुहावै, आई रही उबकाई।
देउ दबाय केस को भगवन, कर लो आध बटाई।
कहं काका तब बिहंसि प्रभू ने, लियो कंठ लपटाई।
प्रभू मेरे मैं नहीं रिश्वत खाई।
-कवि स्वर्गीय काका हाथरसी जी- काका से क्षमायाचना सहित)
आप तो उसका बीस रूपये लेते हुए फोटो निकल लेते और अपने ब्लोग पर चाप देते
ReplyDeleteभईया परमजीत जी काका के अन्श के लिये धन्यवाद, आपकी कहानी पूरे देश की व्यथा है, रिश्वत दो तो मुश्किल (क्योकि एसा करके हम भ्रस्टाचार को बढावा दे रहे है ) न दो तो और भी मुश्किल (नाली जाम, अब भुगतो ) लिखते रहे . . . .
ReplyDeleteआपने आज दीपक बापू पर जो कमेन्ट दीं वह १००वी थी उसके लिए आपका धन्यवाद । आप अपनी रचनाओं में जिस तरह अपने भाव भर रहे हैं उसे मैं जानता हूँ और उनकी प्रशंसा करता हूँ ।
ReplyDeleteदीपक भारत दीप
परमजीत जीं
ReplyDeleteगुरू आप टॉप का लिखते हो। बहुत अच्छ कोशिश है। एक बात और मैं कभी कभी मजाक भी करता हूँ पर लिखने में कतई नहीं । आप वाकई अच्छा लिखते हैं
मस्तराम
परमजीत जीं
ReplyDeleteगुरू आप टॉप का लिखते हो। बहुत अच्छ कोशिश है। एक बात और मैं कभी कभी मजाक भी करता हूँ पर लिखने में कतई नहीं । आप वाकई अच्छा लिखते हैं
मस्तराम
भाई मेरा मानना है कि रिश्वतखोर से बड़ा अपराधी रिश्वत देने वाला होता है…मगर क्या किया जाए इस देश में यह भी एक तरह का नियम है जो आम जीवन का एक हिस्सा बन गया है।
ReplyDeleteपरमजीत जी,"सब "टीवी पर आने वाला सिरियल "ओफिस औफ़िस "मे इस तरह का भ्रश्टाचार का रूपान्तर देखा था,आज आपके साथ गठित हुआ देख लगा कि कैसा कड्वा सच हे भ्रश्टाचार हमारे समाज का
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