जिस यारकी तलाश थी साथी नही मिलें ।
उम्र गुजरी उम्मीदमें वो गुल नही खिले ।
राह पे बैठ इंतजार, अब क्या कीजिए ।
यहाँ छोड़ धूल पैर की, गुम कही गए ।
कहाँ जाइएगां अब, कहाँ ढूंढिए ऐ दिल ।
दफन करके वो मेरे, अरमान चल दिए ।
थर-थराते लबों से, दास्तां-ए-दिल कही ।
सब मुस्करा दिए और हँस के चल दिए।
थर-थराते लबों से, दास्तां-ए-दिल कही ।
ReplyDeleteसब मुस्करा दिए और हँस के चल दिए।
वाह !! क्या बात कही !!
बहुत बढ़िया भाई-
ReplyDeleteथर-थराते लबों से, दास्तां-ए-दिल कही ।
सही है!!
शायद मैने पहले आप को नहीं बताया
ReplyDeleteखुशियां बांट ली और गम तनहा सहे
हम से दीवाने तो बस यूंही जिया करते हैं
अब किसी के आगे कभी मत रोना
रो रो के उनकी याद मे, आंसू के टब भरे
ReplyDeleteवो आये बेरहम और नहा के चल दिए। :D
बाली जी हमे तो आपकी कविता मे हास्य व्यग नजर नही आया जैसा विकाश जी ने लिखा विकाश जी ने जो वो मौके पर लिखा वो तो कबिल ए तारीफ है, आपने सन्जीदगी से कविता लिखी है लिखते रहे . . .
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