हर चीज़ बिखर जाती है यहाँ
इस वक्त की जालिम ठोकर से
तुम झरना अपनें को मानों
पर रहते हो बस पोखर से।
जो एक जगह पर खड़ा-खड़ा
मोसम की मार से सूख गया
क्षण-भर मे खोता है खुद को
जब साँस का डोरा टूट गया।
फिर क्यूँ ना तज नफरत को इस
दिल मे ये प्यार सजाते नही
इन सपनों को नयनों मे भर
इक प्यार की दुनिया बसाते नही।
चुपचाप से क्यूँ यूँ बैठे हो
संग मेरे तुम क्यों गाते नही
ये वक्त गुजर जाए ना कहीं
बीते पल लौट के आते नही ।
मै भी ना यहाँ कल होऊंगा
तुम भी ना यहाँ रह पाऒगे
मिलकर बैठे तो झूम लेगें
व्यथित अकेले गाऒगे।
मै भी ना यहाँ कल होऊंगा
ReplyDeleteतुम भी ना यहाँ रह पाऒगे
मिलकर बैठे तो झूम लेगें
व्यथित अकेले गाऒगे।
bahut badhiyaa.
deepak bharatdeep
हर चीज़ बिखर जाती है यहाँ
ReplyDeleteइस वक्त की जालिम ठोकर से
तुम झरना अपनें को मानों
पर रहते हो बस पोखर से।
अच्छी कविता है।
अच्छए भाव हैं..बधाई..
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