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Wednesday, July 18, 2007

सच किस को भाता है


सच किसको भाता है?
इस का किससे नाता है?
प्रश्न डोह रहा कब से ना जानें
मन समझ नही पाता है।
जो भट्क रहे अंधियारों मे
अपने ही चौबारों मे
बडे़-बड़े सपनो को लेकर
भीड़ के साथ मजबूर हुए
उन्हें विरोध नही भाता है।
सच किसको भाता है?
इस का किससे नाता है?
प्रश्न डोह रहा कब से ना जानें
मन समझ नही पाता है।

मेरा सच तेरा ना होगा
तेरा सच मेरा ना होगा
अपनी-अपनी सीमाएं हैं
अपनी-अपनी आशाएं हैं
फिर भी सच गाता है।

सच किसको भाता है?
इस का किससे नाता है?
प्रश्न डोह रहा कब से ना जानें
मन समझ नही पाता है।

झूठ खड़ा रह्ता वैसाखी पर
सच के दोनों पाँव नही हैं
सच तन्हाई में जीता है
झूठ के दसियों गाँव बसे हैं
यही गड़बड़ झाला है।

सच किसको भाता है?
इस का किससे नाता है?
प्रश्न डोह रहा कब से ना जानें
मन समझ नही पाता है।

आज का सच वही मन मानें
जो तेरे सपनें ना तोड़ें
भले यहाँ अपनोंसे मुख मोड़ें
हरिक प्याले मे यही हाला है।
ना मालूम किसने डाला है।

सच किसको भाता है?
इस का किससे नाता है?
प्रश्न डोह रहा कब से ना जानें
मन समझ नही पाता है।

खोज इसी ने भटकाया है।
सच को वेदों ने गाया है
सच को बापू ने समझाया है
अपने-अपनें तर्क सभी के
सब के पास यही छाता है।

सच किसको भाता है?
इस का किससे नाता है?
प्रश्न डोह रहा कब से ना जानें
मन समझ नही पाता है।

9 comments:

  1. बहुत खूब, भाई!!

    सच किसको भाता है?
    इस का किससे नाता है?
    प्रश्न डोह रहा कब से ना जानें
    मन समझ नही पाता है।


    -वाह!

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  2. परमजीतजी
    सुंदर भावाभिव्यक्ति है

    अर्थ, विश्वास के दायरों में घिरे
    सत्य को सर्वथा भ्रम में डाले रहे
    मोमबत्ती जला ढूँढ़ता सूर्य था
    पर अंधेरों में डूबे उजाले रहे.

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  3. बहुत अच्छा गीत लिखा है भाई. सच्चाई का चित्रण बखूबी किया है।

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  4. मेरा सच तेरा ना होगा
    तेरा सच मेरा ना होगा
    अपनी-अपनी सीमाएं हैं
    अपनी-अपनी आशाएं हैं
    सच हैं

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  5. सत्‍य है बाली जी सच किसी को नहीं भाता, सुन्‍दर

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  6. सच कहते हैं आप.. सब कहते हैं सच बोलो .. पर सुनना कौन चाहता है सच...

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  7. aapee rachnaon mein mujhe bahut anand aataa hai.
    deepak bharatdeep

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  8. अति सुंदर कविता ....बधाई

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  9. सच है सच किसी को नही भाता पर आजकल तो सबका अपना-अपना सच है। ऐसे मे शाश्वत सत्य की किसे परवाह।

    ऐसे ही लिखते रहे। बधाई।

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