कौन कहाँ से आया है ?
कौन कहाँ पर जाएगा ?
जिसने बनाई दुनिया सारी,
उत्तर वही दे पाएगा।
आस का पंछी तन्हा उड़ता
काली अंधियारी हैं रातें
दिशा ज्ञान नही है कोई
रूकती नही फिर भी ये बातें
मुँह में आस का तिनका लेकर
दूर कहीं पर ठौर तलाशे
उड़ते रहना, नियति इसकी
ठौर कहाँ ये पाएगा ?
कौन कहाँ से आया है ?
कौन कहाँ पर जाएगा ?
जिसने बनाई दुनिया सारी,
उत्तर वही दे पाएगा।
इस नगरी में बैठके सोचा
घर आँगन फुलवारी हैं,
सपनों की दुनिया है अपनी
सपनों-सी ही बाड़ी हैं।
ऊँचे-ऊँचे महल बना कर
अपनी आँखों को भरमाएं।
खुद से जनमा,हँसना-रोना
खुद को ही फिर गा के सुनाएं।
कैसे गीत सुनें कोई तेरा
वह तो अपना गाएगा।
कौन कहाँ से आया है ?
कौन कहाँ पर जाएगा ?
जिसने बनाई दुनिया सारी,
उत्तर वही दे पाएगा।
जिसको साथी मान रहा तू
वह तो अपनी धुन मे चलता।
मन के प्रेम को ढूँढ रहा तू
यहाँ प्रेम बस तन का फलता।
इस बगिया के मालिक सब हैं
महक सभी के लिए बहेगी।
यह तो सृष्टी का इक सच है
कैसे झुठला पाएगा।
कौन कहाँ से आया है ?
कौन कहाँ पर जाएगा ?
जिसने बनाई दुनिया सारी,
उत्तर वही दे पाएगा।
्परमजीत जी,आप की कविता मे रहस्यवाद की झलक मिलती है। जो अपने ही भीतर अपने आप को खोज रहा है।बहुत अच्छा लिखा है-
ReplyDelete"आस का पंछी तन्हा उड़ता
काली अंधियारी हैं रातें
दिशा ज्ञान नही है कोई
रूकती नही फिर भी ये बातें
मुँह में आस का तिनका लेकर
दूर कहीं पर ठौर तलाशे
उड़ते रहना, नियति इसकी
ठौर कहाँ ये पाएगा ?"
यह तो आनन्द आनन्द है .
ReplyDeleteparamjeet very good bhai lage raho bahut accha likha hai agar aapne jud racha hai to . umeed hai chori ka nhin hoga.
ReplyDeleteबहुत बढिया, बाली जी धन्यवाद
ReplyDeleteparamjeet jee
ReplyDeletebahut rahrsyvaad hai is kavitaa mein.
deepak bharatdeep
कौन कहाँ से आया है ?
ReplyDeleteकौन कहाँ पर जाएगा ?
जिसने बनाई दुनिया सारी,
उत्तर वही दे पाएगा।
--बहुत बढ़िया.
बहुत सारगर्भित कविता है…अद्वैतवाद में डूबा रहस्य के पटों को टटोलता और प्रतीक्षा करता निहारता तत्वों को…साक्षी!!!!
ReplyDeleteकविता अच्छी लगी ...बधाई
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