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Wednesday, September 12, 2007

तांत्रिक क्रियाओ तथा आत्माओं का सपनों पर प्रभाव

आदमी के मन को तथा आत्मा को जानना एक अध्यात्मिक विषय है।अभी विज्ञानिकों ने मात्र शरीर के बारे में ही जाना है।इस लिए बहूदा यह भ्राँति बनी रहती है कि क्या जो हमारे वेद शास्त्र या धर्म-ग्रंथ कहते हैं ,वह अकारण ही कहा गया है? इस वि्षय पर आज का आधुनिक कहे जानें वाला समाज विश्वास क्यूँ नही कर पाता?उसे क्यों लगता है कि यह अंधविश्वास है? हम आयुर्वेद में कही बातों को तो मान लेते हैं,लेकिन अध्यात्मिक विषय पर कही बातों को स्वीकारनें से हम क्यों इंन्कार करते हैं?...इस विषय पर किसी अन्य पोस्ट पर चर्चा करेगें।पहले हम तांत्रिक क्रियाओं तथा आत्माओं का सपनों पर क्या प्रभाव पड़ता है इसके बारे में जानें।
जो लोग धर्म-कर्म पर विश्वास रखते हैं वह जानते हैं कि हम जैसे धर्म भीरू कहे जाने वाले लोग जरा -सी परेशानी आ जाने पर झट से किसी भी देवी-देवता या अपनें इष्ट देव के प्रति मन्नत मान लेते हैं, कि यदि हम इस से निजात पा गए तो आप को प्रसाद चड़ाएंगें।या फिर किसी कार्य के पूरा होनें पर जागरण,कीर्तन,या भोजन आदि करवाएंगें।
लेकिन इस भाग -दोड़ की जिन्दगी में कई बार,जो मन्नत हम मानते हैं वह भूल जाते हैं।उस समय हम में से कुछ लोगों को सपनें आनें लगते हैं।हमारे पूर्वज सपनों में आ आ कर किसी चीज की माँग करते हैं।या फिर डरावनें सपनें आनें लगते हैं।कुछ लोग यह कह सकते हैं कि यह इस लिए होता है की हमारे अचेतन मन में वह बात बैठी रहती है, जो अवसर पा कर सपनों के रूप में हमें दिखाई देनें लगती है।यह बात भी सही हो सकती है,लेकिन अध्यात्मिक विज्ञान बहुत जटिल है इस लिए कुछ भी दावे के साथ नही कहा जा सकता।
एक दूसरा कारण किसी तांत्रिक द्वारा किया गया कोई टोना-टोटका जो की अकसर आप चौराहों पर या किसी अंधेरी जगह,पीपल के या किसी अन्य पेड़ के नीचे,किया हुआ देखते हैं।उन किए हुए टोटकों पर गलती से पैर पड़ जानें या किसी प्रकार से निरादर हो जानें के कारण उस टोट्के के प्रभाव के कारण भी रात को डरावनें या अजीबों गरीब सपनें आनें लगतें हैं।
तीसरा कारण यह भी हो सकता है कि किसी द्वारा आप पर कोई तांत्रिक क्रिया की गई हो तो ऐसे में भी आप को इस तरह के सपनें आ सकते हैं। तथा अतृप्त आत्माओं के आस-पास होनें पर भी ऐसे सपनें आते हैं।
कई बार पूर्व जन्म के किए कृत्यों के कारण भी ऐसे सपनें आते हैं।बहुत से लोग इस बात को भी मानते हैं।ज्यादा तर देखा गया है कि अध्यात्मिक व बहुत अधिक संवेदनशील व्यक्तियों को ही अधिकतर ऐसे सपनें आते हैं।इस तरह से और भी बहुत कारण हो सकते हैं जिस का अभी हमें बिल्कुल भी पता नही है,जो हमारी नींद मे सपनॆ बन कर आते हैं।

इस शहर में .........

इस शहर में कोई नहीं अपना नजर आत। ।


कोई परिंदा गीत यहाँ, क्यूँ नही गात।।




बस आसूँओं की बरसात हैं, तन्हाईयां मेरी,


कोई भी शख्स दिल को मेरे, क्यूँ नही भाता।




आया था मैं तेरे लिए, इस शहर में यार,


ढूंढा मैनें बहुत मगर, नजर तू नही आता।




जाऊँ कहाँ बता मैं, भटक रास्ता गया,


कोई रिश्ता है दिल का, या कोई नही नाता।


Tuesday, September 11, 2007

स्वप्न-विचारः सपने क्यूँ आते हैं?

इन्सान मे यह गुण है कि वह सपनों को सजाता रहता है या यूँ कहे कि भीतर उठने वाली हमारी भावनाएं ही सपनो का रूप धारण कर लेती हैं । इन उठती भावनाओं पर किसी का नियंत्रण नही होता । हम लाख चाहे,लेकिन जब भी कोई परिस्थिति या समस्या हमारे समक्ष खड़ी होती है,हमारे भीतर भावनाओं का जन्म होनें लगता है । ठीक उसी तरह जैसे कोई झीळ के ठहरे पानी में पत्थर फैंकता है तो पानी के गोल-गोल दायरे बननें लगते हैं । यह दायरे प्रत्येक इन्सान में उस के स्वाभावानुसार होते हैं । इन्हीं दायरों को पकड़ कर हम सभी सपने बुननें लगते हैं ।यह हमारी आखरी साँस तक ऐसे ही चलता रहता है ।

इसी लिए हम सभी सपने दॆखते हैं ।शायद ही ऐसा कोई इंसान हो जिसे रात को सोने के बाद सपनें ना आते होगें । जो लोग यह कहते हैं कि उन्हें सपनें नही आते, या तो वह झूठ बोल रहे होते हैं या फिर उन्हें सुबह उठने के बाद सपना भूल जाता होगा । हो सकता है उन की यादाश्त कमजोर हो । या फिर उनकी नीदं बहुत गहरी होती होगी । जैसे छोटे बच्चों की होती है । उन्हें आप सोते समय अकसर हँसता- रोता हुआ देखते रहे होगें , ऐसी गहरी नीदं मे सोनें वाले भी सपनों को भूल जाते हैं और दावा करते हैं कि उन्हें सपनें नही आते । लेकिन सपनों का दिखना एक स्वाभाविक घटना है । इस लिए यह सभी को आते हैं ।

लेकिन हमें सपने आते क्यूँ हैं ?
इस बारे में सभी स्वप्न विचारकों के अपने-अपने मत है । कुछ विचारक मानते हैं कि सपनॊं का दिखना इस बात का प्रमाण है कि आप के भीतर कुछ ऐसा है जो दबाया गया है । वहीं सपना बन कर दिखाई देता है । हम कुछ ऐसे कार्य जो समाज के भय से या अपनी पहुँच से बाहर होने के कारण नही कर पाते, वही भावनाएं हमारे अचेतन मन में चले जाती हैं और अवसर पाते ही सपनों के रूप में हमे दिखाई देती हैं । यह स्वाभाविक सपनों की पहली स्थिति होती है ।
एक दूसरा कारण जो सपनों के आने का है,वह है किसी रोग का होना। प्राचीन आचार्य इसे रोगी की "स्वप्न-परिक्षा" करना कहते थे ।
हम जब भी बिमार पड़ते हैं तो मानसिक व शरीरिक पीड़ा के कारण हमारी नीदं या तो कम हो जाती है या फिर झँपकियों का रूप ले लेती है । ऐसे में हम बहुत विचित्र-विचित्र सपने देखते हैं । कई बार ऐसा भी होता है कि बहुत डरावनें सपने आने लगते हैं । जिस कारण रात को कई-कई बार हमारी नीदं खुल जाती है और फिर भय के कारण हमे सहज अवस्था मे आने में काफी समय लग जाता है ।

इस बारे में प्राचीन आयुर्वेदाचार्यों का मानना है कि रोगी अवस्था मे आने वाले सपनें अकसर रोग की स्थिति की ओर संकेत करते हैं । वे आचार्य रोगी के देखे गए सपनों के आधार पर रोग की जटिलता या सहजता का विचार करने में समर्थ थे । वह इन का संम्बध , उन रोगीयों की मानसिक दशाओ की खोज का विषय मानते थे और उसी के परिणाम स्वरूप जो निष्कर्ष निकलते थे , उसी के अनुसार अपनी चिकित्सा का प्रयोग उस रोग का निदान करने मे करते थे । उन आचार्यों के स्वप्न विचार करने के कुछ उदाहरण देखें-

१.यदि रोगी सिर मुंडाएं ,लाल या काले वस्त्र धारण किए किसी स्त्री या पुरूश को सपने में देखता है या अंग भंग व्यक्ति को देखता है तो रोगी की दशा अच्छी नही है ।

२. यदि रोगी सपने मे किसी ऊँचे स्थान से गिरे या पानी में डूबे या गिर जाए तो समझे कि रोगी का रोग अभी और बड़ सकता है।

३. यदि सपने में ऊठ,शेर या किसी जंगली जानवर की सवारी करे या उस से भयभीत हो तो समझे कि रोगी अभी किसी और रोग से भी ग्र्स्त हो सकता है।

४. यदि रोगी सपने मे किसी ब्राह्मण,देवता राजा गाय,याचक या मित्र को देखे तो समझे कि रोगी जल्दी ही ठीक हो जाएगा ।

५.यदि कोई सपने मे उड़ता है तो इस का अभिप्राय यह लगाया जाता है कि रोगी या सपना देखने वाला चिन्ताओं से मुक्त हो गया है ।

६.यदि सपने मे कोई मास या अपनी प्राकृति के विरूध भोजन करता है तो ऐसा निरोगी व्यक्ति भी रोगी हो सकता है ।

७,यदि कोई सपने में साँप देखता है तो ऐसा व्यक्ति आने वाले समय मे परेशानी में पड़ सकता है ।या फिर मनौती आदि के पूरा ना करने पर ऐसे सपनें आ सकते हैं।

ऊपर दिए गए उदाहरणों के बारे मे एक बात कहना चाहूँगा कि इन सपनों के फल अलग- अलग ग्रंथों मे कई बार परस्पर मेल नही खाते । लेकिन यहाँ जो उदाहरण दिए गए हैं वे अधिकतर मेल खाते हुए हो,इस बात को ध्यान मे रख कर ही दिए हैं।

ऐसे अनेकों सपनों के मापक विचारों का संग्रह हमारे प्राचीन आयुर्वेदाचार्यों ने जन कल्याण की भावना से प्रेरित हो , हमारे लिए रख छोड़ा है । यह अलग तथ्य है कि आज उन पर लोग विश्वास कम ही करते हैं ।

यहाँ सपनों के आने का तीसरा कारण भी है ।वह है सपनों के जरीए भविष्य-दर्शन करना ।

हम मे से बहुत से ऐसे व्यक्ति भी होगें जिन्होंने सपनें मे अपने जीवन मे घटने वाली घटनाओं को, पहले ही देख लिया होगा । ऐसा कई बार देखने मे आता है कि हम कोई सपना देखते हैं और कुछ समय बाद वही सपना साकार हो कर हमारे सामने घटित हो जाता है । यदि ऐसे व्यक्ति जो इस तरह के सपने अकसर देखते रहते हैं और उन्हें पहले बता देते हैं , ऐसे व्यक्ति को लोग स्वप्न द्रष्टा कहते हैं ।

हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी कई जगह ऐसे सपने देखनें का जिक्र भी आया है , जैसे तृजटा नामक राक्षसी का उस समय सपना देखना,जब सीता माता रावण की कैद मे थी और वह सपनें मे एक बड़े वानर द्वारा लंका को जलाए जाने की बात अपनी साथियों को बताती है । यह भी एक सपने मे भविष्य-दर्शन करना ही है ।

कहा जाता है कि ईसा मसीह सपनों को पढना जानते थे । वह अकसर लोगो द्वारा देखे सपनों की सांकेतिक भाषा को सही -सही बता देते थे । जो सदैव सत्य होते थे ।

आज की प्रचलित सम्मोहन विधा भी भावनाऒं को प्रभावित कर,व्यक्ति को सपने की अवस्था मे ले जाकर, रोगी की मानसिक रोग का निदान करने में प्रयोग आती है । वास्तव मे इस विधा का संम्बध भी सपनों से ही है । इस मे भावनाओं द्वारा रोगी को कत्रिम नीदं की अवस्था मे ले जाया जाता है ।

कई बार ऐसा होता है कि हम जहाँ सो रहे होते है, वहाँ आप-पास जो घटित हो रहा होता है वही हमारे सपने में जुड़ जाता है । या जैसे कभी हमे लघुशंका की तलब लग रही होती है तो हम सपने भी जगह ढूंढते रहते हैं। हमारा सपना उसी से संबंधित हो जाता है।

पुरानी मान्यताओं के अनुसार कईं बार अतृप्त आत्माएं भी सपनों मे आ-आ कर परेशान करती हैं...ऐसे में अक्सर रात को सोते में शरीर का भारी हो जाना...और सपने मॆ भय से चिल्लानें में आवाज का ना निकल पाना, महसूस होता है। दूसरों द्वारा किए गए तंत्र-मंत्र या जादू टोनों के प्रभाव के कारण भी रात को डरावने सपनें आते हैं। इस विषय पर फिर किसी पोस्ट में लिखूँगा।




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Monday, September 10, 2007

भीतर का सैलाब

आँधियों के चलने की खबर
अक्सर झूठ होती है
समय कब ठहरा है
अपने मन से पूछो
वह हमेशा झूठा साबित होता है
लेकिन फिर भी तुम्हें
उस की सच्चाई पर कभी
संदेह नही होता है
तुम हमेशा व्यापारियों की तरह
उस से व्यापार ही करने की सोचते हो
तभी तो हर बार उसे
फायदे की जगह नुकसान का
सौदा कर के अक्सर घर लौटते हो
लेकिन तुम्हारा यह अपने आप को
समझाने का ढंग
कि तुम हमेशा सही होते हो
तुम्हारे मन को तो सांत्वना देता है
लेकिन बाहर की जग हँसाई
तुम्हें भी तो विचलित कर जाती होगी
भले ही तुम इसे ना स्वीकारो
ना मानो इस सच्चाई को
इस से दुनिया की सोच पर
क्या फरक पड़ेगा
तुम्हारी सोच सिर्फ तुम्हारे लिए है
मत हठ करो बच्चों की तरह
तुम्हारी हठधर्मिता
बहुत दूर तक तुम्हें ही परेशान करेगी
तुम्हारे जीवन में स्याह रंग भरेगी
आनंद पाने की अभिलाषा
प्रत्येक मन में होती है
इसे कौन अस्वीकार करेगा
जिस ने भी आनंद की जगह
अपनी पीड़ाओं को उजागर किया
वही जीवन के समर में
पराजित कहलाया है
उसी ने कभी कवि बन
कभी रचनाकार बन
अपने आप को
अपने ही आँसूओं से
एकांत मे नेहलाया है
मन के भीतर कि मेरी पीड़ा
शायद तुम्हें कोई मार्ग सुझा दे
अनूठी दुनिया का कोई
जलता हुआ पाप बुझा दे
इसी कोशिश मे अक्सर
मै बहुत भटकता रहता हूँ
अपने आप को अपने भीतर
सटकता रहता हूँ
क्यूँकि दुनिया की भीड़
यहाँ हरिक अभिलाषा को
लील लेती है
आप की जुबान को
सील देती है
मत सुनना मेरी बात
मै तो स्वयं ही
कितनी बार
धोखा खा चुका हूँ
अब तक जो भी जीया
मुझॆ लगता है
मै वह गँवा चुका हूँ
मै वह लुटा चुका हूँ
अपने ही बोध में
बहुत अन्तर होता है
वह जो तुमनें मुझ मे देखा
और वह जो तुमने मुझ मे जाना
आपस मे बहुत विपरीत है
इन दोनों के बीच
एक बहुत बड़ी भीत है ।
जिसे पाट्ना ना तुम्हारे बस मे है ना मेरे
हम सभी तो बना कर बैठे हैं अपने-अपने घेरे ।
तुमने जो मुझ मे देखा
क्या वह वही होता है जो मैने जाना था ?
मै जानता हूँ मेरी बात तुम तक पहुँचते-पहुँचते
मेरे रंग की जगह
तुम्हारे रंग में रंग जाएगी
तभी तुम को भाएगी ।
हम सभी जानते हैं
हमने सत्यबोध को
तभी स्वीकारा है
जब हमें किसी ने दुत्कारा है।
हम अक्सर भय के कारण
स्वीकारते हैं उसे
क्यूँकि भय का त्रास
अक्सर उड़ा जाता है हमारा मखौल
उतार देता है हमारा
ओढा हुआ खोल
भीतर का सैलाब
सभी के भीतर बहता है
इसी लिए हमारे
हर प्रश्न के साथ प्रश्न रहता है।





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Sunday, September 9, 2007

भूख और नेता

१.
हरिक नेता,
पाँच साल बाद
आता है।
मेरे गाँव में,
शब्द बाँट जाता है।
उन्हीं शब्दों को
गाँव वाला,
पाँच सालों तक
चबाता है।
.
अब क्यूँ रोता है?
उस का गर्भाधान
तुमनें किय।।
जब अपना मत,
एक बोतल के लिए
मत पेटी में
डाल दिया।
तभी तो यह नेता
पैदा हुआ।




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जीवन-सार


बूढे़बरगद की छईयां में

पत्तों का टूट-टूट गिरना

जीवन को दर्पण,

दिखा-दीखा जाता है।

पड़े-पड़े सूखते हैं पत्ते

हवा के झोकों संग

लुड़क-पुड़क जाते हैं

दूर कही छितराए से

गुम हो जाते हैं

फिर खॊजता हूँ मैं

जहाँ वह नही होता

बरगद के पेड़ पर

लिपटी अमर बेल तकता हूँ

पेड़ मुझ पर हसँता है

मैं हसँता पेड़ पर

सदियॊ से हम दोनों

यही करते आए हैं।





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नदिया के गीत

१.


बहती है नदिया

चलते रहो तुम

चलते रहो तुम

कहती है नदिया


आएं जो खाई

उसको तुम पाटो

शंख-सीपियां

दुनिया को बाँटों

हसँती है नदिया

मध्य धाराओं के

बसती है नदिया

दो किनारों में

चंचल-सी इठलाती

अपना-सा स्वर गाती

लहराती साँपो-सी

अपनी ही मस्ती मे

चलती है नदिया

२.

इक नदिया भीतर है

मन के भावों संग

लहर -बहर चलती है

कविता बन फलती है।

Saturday, September 8, 2007

तू समझा रे


रात अंधेरी चाँद ना तारे,


मन के मितवा खो गए सारे।


अब तन्हा ही चलना होगा


धारा बन तू बहता जा रे।


जिनको अपना मानके बैठा,


ना जाने कब राह बदल लें।


विश्वासों की कडि़याँ टूटी


संभल-संभल कर कदम बढ़ा रे।


जानके सच को मन ना मानें


मोह-माया का जाल बड़ा रे।


अपने को, खोजा नही हमनें,


बाहर बनाए महल मीनारें।


अब जो बोया खुद ही काटो,


रोप बबूल, अब आम कहाँ रे।


दूजों को उपदेश ना देना,


अपने मन को तू समझा रे।




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Thursday, September 6, 2007

ठहराव


कब से देख रहा हूँ ।
टूटन ही टूटन है ।
सब धीरे-धीरे बिखरा है ।
एंकाकीपन बस निखरा है ।
भीतर कुछ भी नही बचा है ।
लेकिन शोर बहुत है बाहर के परिवर्तन का।

बन गई हैं ऊँची-ऊँची मीनारें,
हरिक घर में हैं,
मन बहलाव के साधन,
क्यूँकि आपस का विशवास
मर चुका है तड़प-तड़प कर
जैसा मरना हो जल बिन मछली का।

अब रातों को माँ लोरी नही सुनाती
दादी तो कभी नजर नही आती
पापा हरदम थके-थके से
अपने ही भीतर रहते गुम हैं
अक्सर माँ की आँखें दिखती नम हैं
जैसे प्रतिक्षा करता हो बादल बरसने का।

सब दोड़ रहे हैं दिशाविहीन,
पथ पर बस चलना सीखा है।
मंजिल की किस को चिन्ता है।
प्रतिस्पर्धा है आपस की
पराजय किसी को स्वीकार नही
क्यूँकि भीतर अब प्यार नही।

यही चित्र उभरा है अब जीवन का।



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Tuesday, September 4, 2007

सावधान रहे ऐसी लड़कीयों से...

पता नही मै जब भी गध में लिखने की कोशिश करता हूँ । वह लेख कभी पूरा नही हो पाता । लिखते-लिखते बीच में ही मन उचट जाता है और वह अधूरा ही रह जाता है । ऐसा एक-दो बार नही कई बार हो चुका है । ऐसे लेख ना मालूम मैने कितनी बार आरंभ किए और फिर पूरा ना करने के कारण मुझे डिलीट करने पड़े । लेकिन आज मैने ठान लिया कि कुछ भी हो जाए , आज मै अवश्य लिखूँगा । मेरे भीतर ना मालूम कितनें अनोखे और विचित्र प्रसंग व घटनाएं मन मे उधम मचाते रहते हैं कि मै उन्हें किसी से बाँटू । आज मै जो घट्ना बताने जा रहा हूँ वह एक प्रेम-प्रसंग से संबधित है ।

यह घट्ना पन्द्रह-बीस साल पुरानी है । हमारी कालोनी मे एक *** परिवार का नौजवान लड़का रहता था । वैसे तो वह बहुत चंचल स्वाभाव का ,दिल फैक किस्म का लड़का था । उसे हमेशा नारी-मित्र बनानें की धुन लगी रहती थी । इस काम में वह अक्सर कामयाब हो जाया करता था, क्यूँकि एक तो वह अच्छी कद-काठी का हट्टा-कट्टा सुन्दर गौरा व आकर्षित व्यक्तित्व का स्वामी था । दूसरा वह एक कमाऊ पूत था । अच्छी- खासी कमाई कर लेता था । जिस कारण वह दूसरो को सहज ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता था । लेकिन एक बात जो सभी उसके बारे में जानते थे कि उसने कभी किसी को नुकसान नही पहुँचाया था, बल्कि वह किसी जरूरतमंद की मदद करने को एकदम तैयार रहता था । उसे बस उनके साथ घूमने_फिरने का शोक था । लेकिन एक दिन उस के इसी शोक ने उसे एक मुसीबत मे डाल दिया ।

हमारी कालोनी से कुछ दूर एक परिवार रहता था । यहाँ मै यह बताना नही चाहूँगा कि वह किस धरम से संबध रखता था । उस परिवार में तीन बहनें अपने माता-पिता के साथ व अपने मामा के साथ रहती थी । कुछ दिन पहले ही उस नौजवान की उस परिवार से मैत्री-संबध बने थे । उन की मैत्री का कारण कोई प्रेम-प्रसंग नही था, बल्कि उस ने उन्हें अपनी बहन बनाया था । यह बात उस नौजवान की माँ ने ही हमें बताई थी । क्यूँकि उस की माँ हमारी माँ की पक्की सहेली थी । सो अक्सर उन के घर की बातें हमें पता चल ही जाती थी । यह भाई-बहन का सिलसिला लगभग चार-पाँच महीने तक ऐसे ही चलता रहा । लेकिन एक दिन अचानक उस नौजवान की माँ ने हमारे घर आ कर एक धमाकेदार खबर सुनाई कि जब से उस का उस घर मे आना-जाना शुरू हुआ है, उस नौजवान ने अपनी कमाई अपने घर देनी बन्द कर दी है । जबकि वह पहले अपनी कमाई का एक-एक पैसे का हिसाब अपनी माँ को देता था । इस खबर के महीनें भर बाद ही उसकी माँ अपनी रौनी -सी सूरत लेकर हमारे घर आई और उसने बताया कि उन के लड़के ने उसी से शादी कर ली जिसे वह अपनी बहन बताता रहा था । उस की माँ बेहद परेशान थी । वह हमारी माँ के सामने फूट-फूट कर रोनें लगी । उसे यकीन ही नही हो पा रहा था कि यह सब कैसे हो गया । इस बात की खबर कालोनी में भी फैलते देर ना लगी । जिसने सुना, वही आश्चर्यचकित हो गया । क्यूँकि सभी जानते थे कि वह नौजवान अपने माता-पिता का बहुत आदर करता था । उस की माँ ने ही बताया था कि उस के लड़के ने कभी कोई बात अपनी माँ से नही छुपाई थी, वह अच्छी-बुरी जो भी बात होती थी हमेशा अपनी माँ को जरूर बता देता था । एक दूसरी बात जो किसी को हजम नही हो पा रही थी वह यह कि जिस लड़की के साथ उसने शादी की थी वह उस की शकल-सूरत के बिल्कुल विपरीत थी । वह एकदम काली व बिगड़ेल किस्म की लड़्की थी । उस को अक्सर अवारा लड़को के साथ ही ज्यादातर घूमते देखा जाता था । वह काफि बदनाम लड़्की थी, इस लिए ज्यादातर लोग उसे जानते भी थे । उन्हे यह समझ नही आ रहा था कि वह उस लडकी के साथ शादी करनें को आखिर कैसे राजी हो गया ?

उस नौजवान की माँ अब इतनी ज्यादा परेशान रहने लगी थी,कि वह जब भी हमारे घर आती ,अपने लड़के के लिए रोने लगती थी । क्यूँ कि अब उस का लड़का अपने घर का कीमती सामान भी उठा-उठा कर उस लड़्की के घर पहूँचानें लगा था । जिस को लेकर उन के घर अक्सर झगड़े होनें लगे थे । उस की परेशानी को देख माँ ने उसे किसी सयानें से पूछने के लिए सलाह दे डाली । लेकिन क्यूँकि वह किसी ऐसे आदमी को जानती ना थी ,सो उसने बात माँ पर ही छोड़ दी कि आप ही किसी से पूछ कर इस मुसीबत से निजात दिलाएं ।


उन दिनों हमारे घर एक पंडित जी आया करते थे ,जो हाथ व जन्म-पत्री बनाने व बांचने का काम करते थे । उन्हे जो भी कोई खुशी से दान आदि देता वह वही ले लेते थे । वह स्वयं किसी से कभी कुछ माँगते भी नही थे । सो इस कारण लोग उनकी इज्जत भी बहुत करते थे और दूसरी बात उन की कही बाते व भविष्य-वाणीयां अधिकतर सत्य निकलती थी । सो यह समस्या उन्हीं के समक्ष रखी । उन्हें सारी बातों से अवगत कराया गया । सारी बातें सुन कर वे ध्यान की मुद्रा में बैठ गए । कुछ देर बाद आँखें खोल कर बोले कि वह नौजवान अपने आप मे नही है,उसे उस लड़्की के परिवार वालों ने तंत्र-विधा से अपनें कंट्रोल मे कर रखा है । इस लिए वह ऐसा व्यवाहर कर रहा है । जब हमने पंडित जी से उस से बचनें का उपाय पूछा तो उन्होनें मात्र इतना ही कहा कि जो भी उसे बचाने की कोशिश करेगा वह भी मुसीबत में फँस सकता है । लेकिन हम तो उन से उपाय जानना चाहते थे सो पूछा कि आप बस उपाय बताईएं , जैसे भी होगा हम उसे करेगें । उन्होनें कहा कि उस नौजवान की कलाई में एक धाँगा बँधा हुआ है बस उसे उसके हाथ से किसी तरह अलग कर दो वह उन के चुंगल से आजाद हो जाएगा और उस लड़की को छोड़ देगा । हमारे घर वालों ने कहा यह कौन-सी बड़ी बात है । यह काम तो कोई भी कर लेगा । लेकिन पंडित जी ने हम सब को फिर चेताया कि जो भी यह काम करेगा वह मुसीबत मे फँस सकता है,इस बात का ध्यान रखे । कुछ देर ठहर कर पंडित जी तो चले गए । लेकिन हमारी माता जी ने तुरन्त यह खबर अपनी सहेली तक पहुँचा दी ।


उस नौजावान की माँ ने सब से पहले तो यह देखा कि उस के लड़्के के हाथ में कोई धाँगा बंधा भी है या नही । लेकिन जब उसने देखा कि उस के हाथ में धाँगा बंधा हुआ है तो उसे आश्चार्य के साथ यकीन हो गया कि पंडित जी की बातें शायद सही ही होगीं कि उस के लड़्के पर जरूर कोई तंत्र-मंत्र कराया गया होगा । अतः उसने उसी समय अपनी बहन की लड़्की को बुलवा लिआ और उसे सारी बातें समझा कर, अपने भाई के हाथ मे बंधे धाँगे को उतारने के लिए कहा कि वह कैसे भी करके उस के हाथ का धाँगा उतार दे ।


कुछ ही दिनों बाद एक दिन मौका पाकर उस की मौसी की लड़की ने वह धाँगा अपने भाई के हाथ से तोड़ कर निकाल दिया । लेकिन जैसे ही उसनें वह धाँगा तोड़ा वह उसी समय बेहोश हो कर गिर पड़ी । यह देख उस का भाई उसे उठा कर सीधे अपने घर की ओर दोड़ा । यह सब देख कर उस की माँ भी भयभीत हो गई । वह अपने आप को कौसनें लगी कि क्यूँ उसने अपनी बहन की लड़की को यह सब करने को कहा । लेकिन अब क्या हो सकता था जो होना था सो हो चुका था । सो लड़्की को तुरन्त अस्पताल ले जाया गया जहाँ उसे होश में आने में पूरे दस घंटें लग गये । लेकिन इस के साथ एक और चमत्कार भी हुआ कि वह नौजवान जो बात -बात पर अपने माँ-बाप से उलझ पड़ता था । अब पहले की तरह ही सहज हो गया था और उसी दिन लड़की को छोड़ अपने घर लौट गया था । लेकिन लड़की के घर वालों ने जब उसे परेशान करना शुरू किया तो वह देश छोड़कर विदेश चला गया और वही बस गया ।


आप सोच रहे होगें कि क्यों मैने यह घटना यहाँ प्रेषित की ? वह इस लिए की यदि कभी आप के बच्चों के साथ कभी ऐसी परिस्थिति आए तो आप सावधान रहें और इस बात की जाँच कर ले की कही कोई तांत्रिक प्रयोग तो आप के बच्चे या बच्ची पर तो नही कर रहा । जब भी कोई व्यक्ति अनायास अपने स्वाभाव के उलट आचरण करने लगे तो आप को इस बात की सावधानी अवश्य बर्तनी चाहिए । मै जानता हूँ कि मेरे कुछ भाई-बहन मेरी इस बात से सहमत नही होगें और कुछ भाई-बहन मुझे अंधविश्वास फैलानें का दोषी भी ठहराएगें । मेरी अलोचना भी करेगें। लेकिन मैने यहाँ सिर्फ अपनें सामनें घटी एक सत्य-घटना का ही ब्यान किया है । (सिर्फ इन के असली पात्रों का परिचय नही दिया ) उसे आप अपने विवेकानुसार चाहे तो मानें, या ना मानें, यह आप पर निर्भर करता है ।



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Monday, September 3, 2007

छोटी-छोटी बातें

१.


छोटे लोगों की
छोटी चोट भी
बड़ी होती है ।
इसी लिए
अपनी आँख सदा
ज़ार-ज़ार रोती है।


२.


छोटेपन का एहसास
मुझे तब हुआ ।
जब मेरे सच पर भी,
उन्हें शक हुआ।


३.


इक छोटी-सी बात थी
पर रात भर चली।
बिन शब्दों के, बिन दीये के,
रात भर जली ।
सुबह उसी जगह पर
राख थी पड़ी ।


४.


बड़ी बात भी
छोटी हो जाती है।
जब वह बात भी
हरिक मन को भाती है।

Sunday, September 2, 2007

कौन हो ?


अन्जानी राहों में,
खो जाता,
मन मेरा,
देखता रहता है
भीतर से कोई ।
जान ना पाया
बस पूछता रहा हूँ

कौन हो,
कौन हो,
कौन हो ?

वह हँसता होगा,
मुस्कराता होगा,
देखता होगा
जब बेबसी मेरी।
क्या करूँ,
समय,
ठहरता नही।

कभी इन्तजार उसने,
ना मेरा किया।
ना जाने कब तक
ये रॊशन करेगा
कमजोर जलता हुआ ये दीया।
तूफान बन जो,
दीया बुझाए
किस के कहने से,
तुम यहाँ आए?
क्यों मौन हो?

कौन हो,
कौन हो,
कौन हो?
बरसो से प्रश्न ये
प्रश्न ही रहा है,
किसी ने कहाँ,
कब,
इसका
उत्तर दिया है।
जिसने भी जाना
उस को पहचाना
हो जाता है
मौन क्यों?

कौन हो
कौन हो
कौन हो?