१.
बहती है नदिया
चलते रहो तुम
चलते रहो तुम
कहती है नदिया
आएं जो खाई
उसको तुम पाटो
शंख-सीपियां
दुनिया को बाँटों
हसँती है नदिया
मध्य धाराओं के
बसती है नदिया
दो किनारों में
चंचल-सी इठलाती
अपना-सा स्वर गाती
लहराती साँपो-सी
अपनी ही मस्ती मे
चलती है नदिया
२.
बहती है नदिया
चलते रहो तुम
चलते रहो तुम
कहती है नदिया
आएं जो खाई
उसको तुम पाटो
शंख-सीपियां
दुनिया को बाँटों
हसँती है नदिया
मध्य धाराओं के
बसती है नदिया
दो किनारों में
चंचल-सी इठलाती
अपना-सा स्वर गाती
लहराती साँपो-सी
अपनी ही मस्ती मे
चलती है नदिया
२.
इक नदिया भीतर है
मन के भावों संग
लहर -बहर चलती है
कविता बन फलती है।
"इक नदिया भीतर है
ReplyDeleteमन के भावों संग
लहर -बहर चलती है
कविता बन फलती है। "
बहुत सही कहा
आपकी प्रस्तुति वेहद -वेहद प्रशंसनीय है. शब्द और बिंब में ग़ज़ब का तालमेल. बहुत -बहुत वधाईयाँ .
ReplyDeleteइक नदिया भीतर है
ReplyDeleteमन के भावों संग
लहर -बहर चलती है
कविता बन फलती है।
वाह बाली जी बहुत दिनों के बाद आपको पढ़ा है, बहुत अच्छा लगा
इक नदिया भीतर है
ReplyDeleteमन के भावों संग
लहर -बहर चलती है
कविता बन फलती है।
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अच्छा लगा
दीपक भारतदीप
सुंदर कविता...
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