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Saturday, November 3, 2007

मुक्तक-माला-८



जख्म पर जब कोई मरहम लगाता नहीं।
प्यार से जब कोई अपना सहलाता नहीं।
ताकता है वह शख्स,अपने चारों ओर,
दर्द बढता है,वह भूल पाता नहीं।


तारीखें आँखों में आसूँ, भर जाती है।

आजाद शैतानों को देख डर जाती है।

जब तक ना आजाद यह शैतान मरेगा,

नामालूम किसकी फिर बारी आती है।




2 comments:

  1. बहुत सुन्दर भाव-पूर्ण!

    जख्म पर जब कोई मरहम लगाता नहीं।
    प्यार से जब कोई अपना सहलाता नहीं।
    ताकता है वह शख्स,अपने चारों ओर,
    दर्द बढता है,वह भूल पाता नहीं।२

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  2. तारीखें आँखों में आसूँ, भर जाती है।
    आजाद शैतानों को देख डर जाती है।
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    सत्य का बयान करती हुईं कवितायेँ

    दीपक भारतदीप

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