जब वासना ही प्रेम कहलाएंगी।
तब रिश्तों मे टूटन तो आएगी॥
किससे शिकायत करे आदमी,
जब धन आदमी की पहचान हो।
नंगे होनें में क्या शर्म है,
जब धन आदमी का ईमान हो।
इज्जत की रोटीयां जल गई,
जब चाहिए सभी को पकवान हो।
जब रहे दो-दो आदमी एक में,
आदमी की कैसे, पहचान हो।
जो अपनें लिए साधू बन गया
दूसरे के लिए, वही शैतान हो।
देख-देख मुझे आज यह है लग रहा
कही बदला हुआ ना भगवान हो।
अब ढूंढेगा प्यार यहाँ कहाँ,
बातें यह किताबों में रह जाएगी।
जब गरीब को भूख सताएगी
रो-रो के दुखड़ा सुनाएगी
जब वासना ही प्रेम कहलाएंगी।
तब रिश्तों मे टूटन तो आएगी॥
किससे शिकायत करे आदमी,
ReplyDeleteजब धन आदमी की पहचान हो।
नंगे होनें में क्या शर्म है,
जब धन आदमी का ईमान हो।
Bahut sunder rachna hai. Last stanza bhi kaafi prashanshiy hai. Bilkul sahi and simple shadon mei present kiya hai aapne! Shukriya!