हम से होकर अनंत दिशाएं चारों ओर जाती हैं....लेकिन सभी दिशाएं वापिस लौटनें पर हम में ही सिमट जाती हैं...हम सभी को अपनी-अपनी दिशा की तलाश है..आओ मिलकर अपनी दिशा खोजें।
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अति सुंदर !
ReplyDeleteमेरे लिए तो यह कल्पना की उड़ान नही है. क्योंकि मेरे आस पास ये महक हरदम रहती है. बहुत अच्छी कविता. सुंदर.
ReplyDeleteयथार्थ की पथरीली धरती से टकराकर चूर होते सपनों की कहानी है आप की ये रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर ..बधाई
नीरज
मन को छूती कविता
ReplyDeletebahut sundar hai, kya baat kahi hai
ReplyDeleteहवाओं मे बहतीखुशबू लगता हैबहुत दूर से आ रही हैशायद कहीं फूल खिले हैंया फिर दो दिल मिले हैं।